माना कि पुलिस गधा है, तो भी उसके गधत्‍व का लाभ चंचल-भूजी जी को कैसे मिल जाए

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: सच बात तो यही है कि चंचल-भूजी खुद ही चाहते थे जेल जाना : जो पुराने समाजवादी साथी-संगी आज धचक-धचक कर चलते हैं, वह उसी पुलिस-लाठीचार्जों की देन है जिन्‍हें भूजी ने पुलिस को उकसा कर निपटाया : चंचल की गिरफ्तारी, यानी अक्षम पुलिस बनाम चंचल की गोटियां :

कुमार सौवीर

लखनऊ : हालांकि महामना मदनमोहन मालवीय ने अपने बीएचयू की वसीयत नहीं लिखी, लेकिन इसके बावजूद चंचल जी अपने नाम के बाद बीएचयू लिखते हैं। इसी गफलत वाली चक्‍करघिन्‍नी बन चुके लोग उन्‍हें चंचल-भू समझते हैं। जबकि मैं उनके नाम के बाद पूरे सम्‍मान के साथ डबल-जी मारता हूं। मतलब चंचल-भूजी जी। मस्‍त खिलंदड़ई में मेरे गुरू, लेखन और पत्रकारिता में मेरे अग्रज, जीवन्‍तता में मित्र-सखा और तपाकपन-चुटीलापन में मेरे गुरू-घण्‍टाल।

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लेकिन चंचल जी उतना शरीफ नहीं हैं, जितना लोग समझते हैं। करीब 15 साल पहले मुझसे एक इंटरव्‍यू में चंचल-भूजी जी ने कुबूला था कि चालीस साल पहले से लेकर आज तक जो भी समाजवादी साथी-संगी आज जितना लंगड़ा कर चलते हैं, उसकी यह दुर्दशा पुलिस-लाठीचार्ज से हुई है, जिन्‍हें उन्‍होंने पुलिस को उकसा कर कराया था। नतीजा, यह कि वे सारे आज भी धचक-धचक कर जिन्‍दगी की बैलगाड़ी की मानिन्‍द हुई-पुई वाली आवाज-अआवाज चिंहुक-मार कर चलते हैं और सर्दियों में नियमित रूप से मलहम की मालिश कर जहां-तहां आग सेंकते दिख जाते हैं। भूजी-जी को मिलावट सख्‍त नापसंद है, इसलिए वे शराब में भी पानी नहीं मिलाते। लेकिन अब दौर बदल चुका है। जिस तरह इमरर्जेंसी और नसबंदी कराने वाली जिस कांग्रेस को अब आज अपना माई-बाप बनाते घूमते रहते हैं, ठीक उसी तरह पैग में पानी भी मिलाने की आदत पाल चुके हैं।

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कल वे अपनी ही करतूतों के चलते जेल में भित्‍तर कर दिये गये थे, लेकिन आज जमानत पर फिर नमूदार हो गये। हालांकि यह करतूतें भी खालिस नहीं रहीं, उसमें राजनीति की मिलावट ही मिलावट भरी थी। सच तो यही है कि भूजी-जी खुद ही चाहते थे कि वे कैसे भी जेल के भित्‍तर हो ही जाएं। इसीलिए उन्‍होंने सील-चुके अपने पुराने कारतूस में नया राजनीतिक बारूद भर दिया और दोपहर बाद अदालत पहुंच कर धांय करने की कोशिश की। आधे दिन से भी ज्‍यादा वक्‍त तक धकाधक दस्‍तखत करते-करते बेहाल चुका मैजिस्‍ट्रेट ने यह तो माना कि पुलिस इस मामले में लापरवाह रही है, लेकिन उसने चंचल को जेल भेजने का आदेश कर दिया। मन्‍तव्‍य था कि पुलिस की शक्‍ल, दिमाग और उसकी सिफत अगर खालिस गधे जैसी ही है, तो भी पुलिस के गधत्‍व का लाभ चंचल को नहीं मिल सकता है।

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नतीजा, भूजी जी भित्‍तर हो गये।

मामला है 2 जून-82 का। एक प्रशिक्षु आईएएस था शायद तुलसी गौड़। जौनपुर के मछलीशहर का एसडीएम। सवंसा ब्‍लॉक के निरीक्षण पर निकला था। कि एक बजे दोपहर हंगामा हो गया। गौड़ ने पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करायी कि बदलापुर स्थित उसके दफ्तर में चंचल कई लोगों के साथ घुसे और हंगामा किया, बोले कि कोई भी काम नहीं करने दूंगा क्‍योंकि मैं बीएचयू का छात्रनेता हूं। सवा घंटों तक हंगामा चला, और कई कर्मचारियों को बेइज्‍जत किया गया। मामले में चंचल भूजी ने 13 अप्रैल-84 को अपना जमानत-बांड भर दिया और जमानत पर छूट गये, लेकिन उसके बाद से नदारत, जैसे गधे के सिर पर सींग। कोर्ट ने कुर्की का आदेश किया, जो अब तक लागू नहीं हुआ। आखिरकार कल 8 नवम्‍बर को भूजी जी अदालत में हाजिर हो गये, तो जेल में भित्‍तर कर दिये गये।

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लेकिन अब आज मैजिस्‍ट्रेट भी मजबूर, और भूजी जी मजबूर। भूजी पर लगी धाराएं ऐसी संगीन ही नहीं हैं, जिन पर उसे जेल भेजा जा सके। लेकिन चूंकि उन्‍होंने बेल-बांड की शर्तों का उल्‍लंघन किया था, और ऐसा करना अपराध है, इसलिए मैजिस्‍ट्रेट करता तो क्‍या करता। अगले दिन उसने भूजी के नये बेल-बांड पर मंजूरी दी, और भूजी जी भित्‍तर से बाहर आ गये। उधर मौसम के तेवर तेजी से बदलते जा रहे थे, सुबेरा कुड़कुडी मारने लगता है। उमिर सत्‍तर के फेटे में धंस चुकी है। ऐसे में सर्दी-फर्दी अन्‍दर घुस गयी, तो उनके शरीर की अन्‍तरात्‍मा चिर सकती थी, जैसे भाजपा का खुला कमल। हर पत्‍ती-कोमल किर्च-किर्च हो सकता था। जैसी बेशर्म नोटबंदी का हश्र, फेंकूलाल का फेंकू-वादा और तड़ीपार की सेंधमारी। वैसे भी भूजी जी का मिशन तो कामयाब हो ही चुका था। असल बात यह कि उनका मकसद था जेल जाना, सो हो चुका। ऐसे में भित्‍तर रह कर वे क्‍या उखाड़ लेते। सो, आनन-फानन उनकी ओर से वकील ने बांड पर दस्‍तखत किया, और मुंसिफ ने इशारा किया:- जाओ बेटा, चुनाव डेढ़ साल बचा है। जितना बिखेर सकते हो, बिखेर लो, नोंच लो, उखाड़ लो। लेकिन चाहे कुछ भी हो जाए, कांग्रेस तुम्‍हें घास हर्गिज नहीं देगी।

चंचल-भूजी जी एक, लेकिन उनकी कथा अनन्‍ता। अगली कड़ी में उनकी जेल-भित्‍तरगिरी का खुलासा होगा। अगली कडियों को बांचने के लिए निम्‍न लिंक पर क्लिक कीजिएगा:-

चंचल भूजी जी

बहुत सहज जिला है जौनपुर, और वहां के लोग भी। जो कुछ भी है, सामने है। बिलकुल स्‍पष्‍ट, साफ-साफ। कुछ भी पोशीदा या छिपा नहीं है। आप चुटकियों में उसे आंक सकते हैं, मसलन बटलोई पर पकते भात का एक चावल मात्र से आप उसके चुरने का अंदाजा लगा लेते हैं। सरल शख्‍स और कमीनों के बीच अनुपात खासा गहरा है। एक लाख पर बस दस-बारह लोग। जो खिलाड़ी प्रवृत्ति के लोग हैं, उन्‍हें दो-एक मुलाकात में ही पहचान सकते हैं। अपना काम बनता, भाड़ में जाए जनता। जो ज्‍यादा बोल रहा है, समझ लीजिए कि आपको उससे दूरी बना लेनी चाहिए। रसीले होंठ वाले लोग बहुत ऊंचे दर्जे के होते हैं यहां। बस सतर्क रहिये, और उन्‍हें गाहे-ब-गाहे उंगरियाते रहिये, बस।

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राग-जौनपुरी

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