भक्‍क। अरे वह भगवान है, उससे क्‍यों डरते हो ?

मेरा कोना

: मैं तो नास्तिक हूं, मेरी बात अलग है। लेकिन तुम तो ठीक से आस्तिक बनो : जाओ, उससे बतियाओ, दिल हल्‍का करो उसके सामने : भगवान को भीख मांगने का उपकरण समझना बंद करो मेरे दोस्‍त :

कुमार सौवीर

लखनऊ : तुम ईश्‍वर का सम्‍मान करते हो, उनकी हां में हां मिलाते हो, उनके सामने सिर झुकाते हो, उनके घर-मंदिर में अपना सिर टिकाते हो, नाक रगड़ते हो, उसके चरणों को चाँपते हो, उसके चरणों के धुले पानी को पवित्र अमृत मानकर चरणामृत पीते हो न?

फिर तुम्‍हारे और एक सरकारी या बनिया के मुलाजिम में क्‍या फर्क हुआ?

वह भी तो अपने बॉस के सामने यही सब करते हुए अपनी जिन्‍दगी सफल समझता रहता है। उसका बॉस, अपने बॉस के सामने, और उसका बॉस अपने बॉस के सामने, और फिर उसका बॉस उसके बॉस के सामने भी तो यही सब करता रहता है। परंपरा और सनातन श्रद्धा मान कर। मकसद सिर्फ यही कि इन्‍क्रीमेंट मिल जाएं, कुछ नयी सुविधा मिल जाए, अधिकार ज्‍यादा मिल जाएं, बड़ी कुर्सी मिल जाए। सिर्फ इतना ही नहीं, बल्कि यह गिड़गिड़ाहट तो यहां तक होती है कि मेरी कुर्सी बचाये रखना साहब, डिमोट मत कर दीजिएगा माई बाप, अधिकार मत छीनियेगा, वगैरह-वगैरह

दरअसल, यह एक अंतहीन क्रिया है, जो सरकारी और बनिया की नौकरी में अपने निकृष्‍ट गिड़गिड़ाहट के तौर पर साफ परिलक्षित हो जाती है। आपको भगवान से रिश्‍ता सिर्फ इसलिए चाहिए होता है क्‍योंकि आपका जीवन सफल होता रहे। न भांग लगे और न सुहागा। मस्‍ती बने रहे, केवल भगवान को सवा पांच रूपये से ख्‍रीदते-बेचते रहो। दूकान चकाचक चलती रहे।

अरे दोस्‍त। भगवान से डरो मत। उसके सामने भिखमंगा मत बनो। उससे दोस्‍ती करो, उससे बातचीत करो। उसको समझो, उसे भीख मांगने के उपकरण के तौर पर मत समझो। उससे ध्‍यान लगाओ, उससे बतियाओ, ठहाका लगाओ उसके साथ। उसके साथ रो पड़ो। उसके भी आंसू पोंछो और अपने भी। और उसके बाद सीना तान कर खुद को बताओ कि:- आज मैंने भगवान से बातचीत की है। बहुत लम्‍बी और सर्वाधिक सार्थक।

और हां, मैं नास्तिक हूं। मेरी बात छोड़ो। लेकिन तुम तो आस्तिक हो न, तो फिर ठीक से आस्तिक बनो।

हा हा हा

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