ढाई सौ से ज्‍यादा घोषित मौतों को लील चुका डेंगू, हजारों गुमशुदा मौतों का हिसाब कौन देगा

सैड सांग

: हैरत की बात है कि इतनी मौतों के बावजूद खामोश है लखनऊ : मोदी रावण-दहन करने आ रहे हैं लखनऊ, लेकिन असली रावण तो नगर निगम है : अपनी निजी लड़ाई में आजम खान कानून-सचिव से भिड़े हैं, महापौर डॉ दिनेश शर्मा अपनी असहायता से विकलांग-दिव्‍यांग :

कुमार सौवीर

लखनऊ : जी हां, मेघ-कुमार। मैंने आज इन अल्‍हड़ कुमारों को देखा। मेघ और मेघदूतों की तीसरी वंशज की लड़ी आज लखनऊ को तृप्‍त कर गयी। करीब 20 दिनों से गर्मी, उमस और पसीने से बेहाल कर रखा था इस मौसम ने। इस बीच चिकुनगुनिया और डेंगू ने मौत का जमकर नाच किया। अकेले लखनऊ में ही सैकड़ों लोगों को काल के गाल में समा दिया डेंगू ने। लेकिन अब गनीमत है कि इस भारी-भरकम से तापमान नियंत्रित होगा और इसके साथ ही चिकुनगुनिया और डेंगू पर अंकुश लगेगा।

मगर अब सवाल तो यह उठना चाहिये कि किसी महामारी की तरह पिछले बीस दिन में घोषित तौर पर ढाई सौ, और पूरे प्रदेश में हुई हजारों मौतों का जिम्‍मेदारी कौन लेगा। इतिहास में दर्ज है कि कोई 85 साल पहले प्‍लेग ने पूरे यूपी पूर्वोंचल, बिहार, झारखण्‍ड, उड़ीसा और बंगाल को हजारों जिन्‍दगियां मौत की नींद सुला दी थीं। और अब यह डेंगू काल बन कर लखनऊ और आसपास दहला गया। लेकिन प्‍लेग ने पूरी दुनिया को झकझोर दिया था, जबकि आज के संवेदनहीन समाज ने हमारे आसपास हुई इन मौतों पर चूं तक नहीं किया।

कोई भी दिन नहीं हुआ है, जब लखनऊ में छह से कम अर्थियां नहीं निकली हुई हों। उरी हादसे पर हमारे समाज ने खूब छाती पीटी-कूटी, लेकिन रोज-ब-रोज अकेले लखनऊ में हुई बेशुमार मौतों पर कोई भी नहीं बोला। नगर निगम हल्‍ला जरूर मचाया कि मच्‍छर-मार अभियान चलेगा, फॉगिंग मशीनों से धुंआ फैलाया जाएगा, दवायें छिड़की जाएंगी। लेकिन पूरा लखनऊ तो दूर, लेकिन मेरे मोहल्‍ले में केवल एक दिन पूरी रफ्तार से फागिंग मशीन हल्‍ला मचाती चली गयी, जिसमें नाममात्र का धुंआ निकल रहा था। लेकिन मेरा दावा है कि नगर निगम के कागजों पर डेंगू में करोड़ों रूपयों इधर-उधर जरूर कर लिया होगा।

डेंगू का प्रकोप बलरामपुर से लेकर लखीमपुर, गोंडा, महराजगंज, बलिया, वाराणसी, चित्रकूट, उन्‍नाव और आसपास के जिलों में खूब फैला। कहने की जरूरत नहीं कि इन सारे इलाकों-जिलों में डेंगू की बीमारी लखनऊ से ही भेजी गयी। कहने की जरूरत नहीं कि अगर डेंगू का केंद्र प्रकोप लखनऊ ही था, अगर उसे समय रहते थाम लिया जाता तो बाकी जिलों में यह बीमारी नहीं फैल पाती।

लेकिन ऐसा नहीं हुआ। और लाशों पर लाश बिखरती रही। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस बार रावण-दहन करने के लिए लखनऊ आ रहे हैं, लेकिन असली रावण तो लखनऊ नगर निगम और नगर विकास मंत्री आजम खान हैं। आजम खान को बुलंदशहर में अपनी बदजुबानी की राहत सुप्रीम कोर्ट से हासिल करनी है, इसलिए वे एक तरफ तो यूपी के विधायी सचिव से भिड़े हुए हैं, और दूसरी ओर सुप्रीम कोर्ट में कपिल सिब्‍बल का पांव पखारने में जुटे हैं। जबकि लखनऊ के महापौर अपने पास कोई भी प्रभावी अधिकार न होने के चलते अपनी आंखों से बह रहे आंसुओं का सार्वजनिक प्रदर्शन में जुटे हैं।

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