“लौट आ ओ धार” की गोहार लगाने वाला दूधनाथ नहीं रहा

सैड सांग

: झूंझी के फिनिक्‍स हॉस्पिटल में ली आखिरी सांस, अंतिम संस्‍कार आज : प्रोस्‍टेट में गहरे कैंसर से पीडि़त थे वयोवृद्ध साहित्‍यकार दूधनाथ सिंह : अंतिम इच्‍छा पूरी करने के लिए उनकी आंखें आज दान की जाएंगी :

मेरी बिटिया संवाददाता

इलाहाबाद : प्रसिद्ध कथाकार और जनवादी लेखक संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष दूधनाथ सिंह का गुरुवार देर रात निधन हो गया। पिछले कई दिनों से वह इलाहाबाद के फीनिक्स हॉस्पिटल में भर्ती थे। प्रोस्टेट कैंसर से पीड़ित दूधनाथ सिंह को बुधवार रात हार्टअटैक आया था। उसके बाद गुरुवार सुबह उन्हें वेंटिलेटर पर शिफ्ट कर दिया गया था जहां उन्होंने रात करीब 12 बजे अंतिम सांस ली। शुक्रवार को रसूलाबाद घाट पर उनका अंतिम संस्कार होगा।

पिछले साल अक्तूबर माह में तकलीफ बढ़ने पर दूधनाथ सिंह को अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, नई दिल्ली में दिखाया गया। जांच में प्रोस्टेट कैंसर की पुष्टि होने पर उनका वहीं इलाज चला। 26 दिसम्बर को उन्हें इलाहाबाद लाया गया। दो-तीन दिन बाद तबीयत बिगड़ने पर उन्हें फीनिक्स अस्पताल में भर्ती कराया गया था। तब से उनका वहीं इलाज चल रहा था। दो साल पहले उनकी पत्नी निर्मला ठाकुर का निधन हो चुका था। दूधनाथ सिंह अपने पीछे दो बेटे-बहू, बेटी-दामाद और नाती-पोतों से भरा परिवार छोड़ गए हैं।

भारत भारती से सम्मानित हिन्दी के वरिष्ठ कथाकार दूधनाथ सिंह नहीं रहे। बृहस्पतिवार आधी रात 12.06 बजे उन्होंने अंतिम सांस ली। वह 81 वर्ष के थे और तकरीबन एक वर्ष से प्रोस्टेट कैंसर से पीड़ित थे। वह अपने पीछे दो बेटे और एक बेटी छोड़ गए हैं। बेटी अनुपमा ठाकुर, बड़े बेटे अनिमेष ठाकुर और छोटे बेटे अंशुमान सिंह के अतिरिक्त उनके शिष्य सुधीर सिंह, भतीजे विवेक सहित कई अन्य शिष्य, करीबी मौजूद थे।

उनकी तबीयत बिगड़ने पर चार जनवरी को उन्हें टैगोर टाउन स्थित एक निजी अस्पताल में आईसीयू में भर्ती कराया गया था। तीन डायलिसिस के बाद रविवार को आईसीयू से निकालकर उन्हें प्राइवेट रूम में पहुंचा दिया गया। बुधवार की रात तबीयत ज्यादा बिगड़ने पर उन्हें फिर आईसीयू में वेंटिलेटर पर रखा गया, लेकिन उनकी हालत लगातार बिगड़ती ही गई। रात तकरीबन 11 बजे उनका ब्लडप्रेशर काफी कम हो गया और एक घंटे बाद उन्होंने अंतिम सांस ली। रात में ही उन्हें झूंसी स्थित आवास पर ले जाया गया। यहां अंतिम दर्शन के बाद शुक्रवार को दिन में दो बजे रसूलाबाद घाट पर उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा।

उत्तर प्रदेश के सर्वोच्च साहित्यिक सम्मान भारत-भारती और मध्य प्रदेश सरकार के शिखर सम्मान मैथिलीशरण गुप्त सम्मान सहित उन्हें कई सम्मान से नवाजा गया था। आखिरी कलाम, यमगाथा, सपाट चेहरे वाला आदमी, धर्मक्षेत्रे-कुरुक्षेत्रे, जलमुर्गियों का शिकार और निराला: आत्महंता आस्था जैसी कालजयी रचनाओं के रचनाकार दूधनाथ जी इलाहाबाद विश्वविद्यालय से 1994 में सेवानिवृत्त होने के बाद से निरंतर रचनारत रहे।

मूलत: बलिया के रहने वाले दूधनाथ सिंह ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से एम किया और यहीं हिन्दी के अध्यापक नियुक्त हुए। 1994 में रिटायरमेंट के बाद से लेखन और संगठन में निरंतर सक्रिय रहे। मगर पिछले एक साल से प्रोस्टेट कैंसर से पीड़ित थे। निराला, पंत और महादेवी के प्रिय रहे दूधनाथ सिंह ने आखिरी कलाम, लौट आ ओ धार, निराला : आत्महंता आस्था, सपाट चेहरे वाला आदमी, यमगाथा, धर्मक्षेत्रे-कुरुक्षेत्रे जैसी कालजयी कृतियों की रचना की। उनकी गिनती हिन्दी के चोटी के लेखकों और चिंतकों में होती थी।

वहीं, उनके तीन कविता संग्रह भी प्रकाशित हैं। इनके ‘एक और भी आदमी है’ और ‘अगली शताब्दी के नाम’ और ‘युवा खुशबू’ हैं। इसके अलावा उन्होंने एक लंबी कविता- ‘सुरंग से लौटते हुए’ भी लिखी है। आलोचना में उन्होंने ‘निराला: आत्महंता आस्था’, ‘महादेवी’, ‘मुक्तिबोध: साहित्य में नई प्रवृत्तियां’ जैसी स्थापनाएं दी हैं। उन्हें उत्तर प्रदेश के सर्वोच्च साहित्यिक सम्मान भारत-भारती, मध्य प्रदेश सरकार के शिखर सम्मान मैथिलीशरण गुप्त सम्मान से सम्मानित किया गया था।

दूधनाथ सिंह उन कथाकारों में शामिल हैं जिन्होंने नई कहानी आंदोलन को चुनौती दी और साठोत्तरी कहानी आंदोलन का सूत्रपात किया। ‘हिन्दी के चार यार’ के रूप में ख्यात ज्ञानरंजन, काशीनाथ सिंह, दूधनाथ सिंह और रवीन्द्र कालिया ने अपने जीवन के उत्तरार्द्ध में हिन्दी लेखन को नई धार दी। लेखकों की पीढ़ी तैयार की और सांगठनिक मजबूती प्रदान की। चार यार में अब सिर्फ काशीनाथ सिंह और ज्ञानरंजन ही बचे।

दूधनाथ सिंह की इच्छा के मुताबिक उनकी आंखें मेडिकल कॉलेज को दान की जाएंगी। उनके बेटों अनिमेष ठाकुर, अंशुमन सिंह और बेटी अनुपमा ठाकुर ने यह फैसला किया। निधन के बाद गुरुवार रात में ही दूधनाथ सिंह का पार्थिव शरीर प्रतिष्ठानपुरी झूंसी स्थित आवास पर ले जाया गया। शुक्रवार को दोपहर दो बजे रसूलाबाद घाट पर उनकी अंत्येष्टि की जाएगी।

हिंदी के जाने-माने रचनाकार दूधनाथ सिंह का गुरुवार की देर रात न‍िधन हो गया। बताया जाता है क‍ि वह प्रोस्टेट कैंसर से पीड़ित थे। उनका इलाज अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में चल रहा था। फिलहाल वह पिछले हफ्ते से अपने इलाहाबाद झूसी स्थित घर पर थे। हालत बिगड़ने पर घरवाले सिविल लाइन स्थित फीनिक्स हॉस्पिटल में भर्ती कराए थे, जहां उन्होंने अंतिम सांस ली। आगे पढ़‍िए

हिंदी के उन विरले रचनाकारों में से थे, जिन्होंने कविता, कहानी, नाटक, उपन्यास और आलोचना समेत लगभग सभी विधाओं में लेखन किया है।

उनके उपन्यास आखिरी कलाम, निष्कासन, नमो अंधकारम हैं। दूधनाथ सिंह के कई कहानी संग्रह भी प्रकाशित हुए हैं। इनमें ‘सपाट चेहरे वाला आदमी’, ‘सुखांत’, ‘प्रेमकथा का अंत न कोई’, ‘माई का शोकगीत’, ‘धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे’, ‘तू फू’, ‘कथा समग्र’ हैं।वहीं, उनके तीन कविता संग्रह भी प्रकाशित हैं। इनमें ‘एक और भी आदमी है’, ‘अगली शताब्दी के नाम’ और ‘युवा खुशबू’ हैं इसके अलावा उन्होंने एक लंबी कविता- ‘सुरंग से लौटते हुए’ भी लिखी है। यमगाथा नाम का नाटक भी लिखा है। आलोचना में उन्होंने ‘निराला: आत्महंता आस्था’, ‘महादेवी’, ‘मुक्तिबोध: साहित्य में नई प्रवृत्तियां’ जैसी स्थापनाएं दी हैं। दूधनाथ सिंह को भारतेंदु सम्मान, शरद जोशी स्मृति सम्मान, कथाक्रम सम्मान, साहित्य भूषण सम्मान और कई राज्यों का हिंदी का शीर्ष सम्मान मिला है।

वह झूसी के बी-7 एडीए कालोनी, प्रतिष्ठान पूरी, नई झूसी में परिवार के साथ रहते थे।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *