: मेरी जान, इस कलाबाज से बच कर रह, यह सूरमा तेरा सुरमा बना देगा : डिरेबर के अब्बा ने उन्नाव में दो कौड़ी की जमीन खरबों में खरीद डाली, नकदी में बाल तक नहीं दिया : सारे मदारी और जमूरे इस घोटाले में अब गिरफ्तारी के चलते बिल में घुस गये : कहानी राजा उड़ान-छल्लों की, जिन्होंने सपा में छेद कर दिया-तीन :
कुमार सौवीर
लखनऊ : जिन बाबू ने दिया रूपइया, मैं उनको मानूं तेरा मजनूं। सम्मान उसी का जो है मेरा असली जीजा, बाकी को खिला दूं केला। : नटी
तो फिर : नट
फिर क्या, उन्नाव मण्डी बनाने के नाम पर अरबों रूपयों का जमीन घोटाला करके हम जैसे दस-पांच रूपया देने वाले बाबू को, ठसक कर, फसक कर, लसक कर, उलीच कर, कुलीच कर सुकरिया अदा करती हूं। : नटी
नगड़-घम्म नगड़-घम्म नगड़-घम्म ढम्म ढम्म ढम्म
तो बात आज उन हरामखोरों की, जो जिन्दगी पर सरकारी पैसा पेलते रहे, हराम की रोटी खाते रहे, साधारण से लेकर प्रधिकरण, शेग्रो से लेकर एग्रो और डंडी से मंडी तक हनहनउव्वा रकम पेल लिया। आओ मेरी चुम्मा जान, आज उन हरामखोरों के पाजामा का नाड़ा सरकाया जाए, उनकी नंगई सरेआम दिखाया जाए। ढम्म दे ढम्म। तनिक मजा भी आना चाहिए। है कि नहीं। ढम्म ढम्म दे ढम्म ढम्म। : नट
और अगर मुझे शरम आ गयी, तो। और मैं बिना देखे कोई भी प्रतिक्रिया नहीं कर पाऊंगी। हां नहीं तो। : नटी
अरे कुछ भी नहीं होगा मेरी छप्पन-छुरी मैडम। यकीन न हो तो सीधे स्टाम्प पर लिखवा लो, सब के सब छक्के ही न निकलें तो जो सजा राजीव कुमार और प्रदीप शुक्ल की, वही सजा मेरी मुकर्रर कर देना। इनमें दम-भसोट ही नहीं है। जज कहे कि पादो, तो भरी मारकीट मे हग मारेंगे यह सारे टांडू लोग। मैं तो कहता हूं कि यह ससुरे अगर इत्ते बड़े मर्द होते तो अपने हराम की कमाई के लिए अपना ईमान काहे बेच देते। अब देखो न उस इलाहाबादी अफसर को, अपने दमाद खरीदने को आईआरएस लड़का के लिए दस करोड़ का ऑफर दिया था उसने, लेकिन लड़के के बाप ने हड़का दिया तो बात 17 करोड़ तक ढीला कर गया। लेकिन तब के सारे आबकारी इंस्पेक्टर थे, एक-एक ठेका से अठन्नी-चवन्नी जुटाने में लगे रहे कि बिटिया की ससुराल में नाक न कटे। साले फ्रीरा यादव और खण्ड-खण्ड प्रताप सिंह कहीं के। जहां भी रहते हैं, शौचालय गंदा ही करते रहते हैं यह ससुरे। : नट
बकलोली मत कर मेरे रजऊ। किस्सा सुना दे: नटी
किस्सा तो डिरेबर के बप्पा का है मेरी जान। तब यह मुआ डण्डी निदेशक हुआ करता था। एपीसी था फूलानाथ तिवारी और मंत्री था वह जो पीआरडी का जवान बन कर खुद को कर्नल कहलाता था, कंधा इत्ता झुका था कि मानो सडक पर पड़ी चवन्नी झपट लेगा। नाम था किधरगया सिद्दीकी, फाइल पर दस्तखत करवा लिया फूलानाथ तिवारी से। साजिश में उन्नाव में मंडी बनाने के लिए उसी डिरेबर-बप्पा ने किसानों से जमीन खरीदी। साजिश में उसी मुआवजा दिया भारी भरकम। मगर किसानों के हत्थे धेला भर ही पहुंचा। अल्टी-पुल्टी की सरकार में अगला हिस्सा जब कल्सांड़ सिंह ने हल्ला मचा। इतना ही नहीं, कल्सांडसिंह-सरकार ने डिरेबर-बप्पा और मंत्री के खिलाफ पुलिस एफआईआर दर्ज कर दी। उधर राजस्व परिषद ने भी अपनी अलग जांच शुरू की, तब तक डिरेबर-बप्पा लिटायर हो चुका था। भाग गया सुसरा कहीं और। जब जांच करने वालों ने सम्पर्क साधा तो लगा अंग्रेजी इस्टाइल बूंकने लगा। बोला :- हम तो आजकल डेलही मा राता हूं।
जांच करने वालों ने गियर पर डाला तो लगा गिड़गिड़ाने। बोला:- मैं अगर लखनऊ में आऊंगा तो पुलिस पकड़ लेगी। मेरा बयान दिल्ली में ही ले लीजिए माई-सरकार। सेवा-सत्कार में कभी कोई कमी-बेशी नहीं आयेगी। यकीन न हो तो आवास विभाग के प्रमुख सचिव से लेकर अनुभाग-पांच तक डील करने वाले सारे बाबू, अफसरों से पूछ लीजिए। पूरे खानदान तक को हवाई जहाज से लेकर सिंगापुर में थाईलैंड में वह-वह मजा दिला कि आज भी मेरे नाम के भजन गाते हैं। : नट
भक्क। बदतमीजी मत कर। ऐसे नामों से मुझे शरम आती है, जैसे थाईर्लैंड हुआ या फिर यह मुआ कश्मीरी आतंकी, क्या बेहूदा नाम था उसका, वानी। मुझे तो महान कवियित्री महादेवी वाला किस्सा सुना दे मेरे राजा। वो क्या है कि आई लव महादेवी। : नटी
वही तो बता रहा हूं। यह कहानी डिरेबर-बप्पा ने रची थी। पूरी दुनिया को चूस कर जब वह इलाहाबाद में पहुंचा तो वहां का माहौल ही सूखा था। तेरे गाल जैसे ऊबड़-खाबड़ अमरूदों जैसा। गांव प्रधान की करतूत जैसा, बिलकुल खडंजा। जमीन इंच भर न थी, लेकिन अगले ही दिन देश भर के अखबारों में तीन अट्टालिकाओं का इश्तहार छप गया। महादेवी प्रसाद की कविताओं के नाम पर बनेंगे अपार्टमेंट। नाम रखा कजरी, बदरी, और तीसरी का नी का। बेच डाला महादेवी प्रसाद की कविताओं को:- मैं नीर भरी बदरी, कजरी। सस्सुर मक्खीचूस कहीं का। लेकिन मेरी जान, उस पंडत ने माल पूरा पेल लिया। दिया गया ठेका, कमीशन वसूल लिया गया, फिर ट्रांसफर करवा के निकल गया पतली गली से।
लेकिन तब तक उसे पता चल गया कि हवाई जहाज का डिरेबर भी गजब कमाल के गोते लगवा सकता है। इत्ता उचक सकता है कि सीधे मुख्य सचिव तक उसकी चढ्ढी बदलने पर मजबूर हो जाए। : नट
तू फिर से पहुंचने लगा चड्ढी-वड्ढी उतारने-चढ़ाने : नटी
ठीक है। तू मेरी जुबान रोक सकती है, मगर उन लोगों पर नहीं जिन्होंने पूरे समाज, पूरे सरकारी खजाने, पूरे जन-विश्वास और लोक-प्रशासन को दक्खिन कर दिया। लूट लिया, तबाह कर दिया सरकारी संस्थाओं और निगमों-प्राधिकरणों को। खुद भी भ्रष्ट बने और पूरी मशीनरी को भी भ्रष्ट बना दिया। अक्लेस के भोलेपन को चूना लगा दिया, ऐसे-ऐसे हवाई गोते लगाया कि लोग भौंचक्के हो गये। सरकारी हनक के बल पर अरबों रूपयों का कमीशन बीवी के नाम कमाया। भाई को सुपाल के पाले में घुसेड़ लिया। और तू है कि मेरी ही टेक-ओवर कर रही है। लो, अब मैं भी खामोश हो जाते हैं। : नट
नहीं नहीं। मैं तो मजाक कर रही थी। आगे बोलो मेरे राजा : नटी
तो फिर एक-ठो चुम्मा दे : नट
आज नहीं, कल : नटी
तो किस्सा भी कल ही सुन लेना। कल चुम्मा देना, तो परसों सुपाल वाली सपा के सम्मेलन में तांक-झांक करने पहुंच जाऊंगा। देखूंगा कि अक्लेस आता है कि नहीं। : नट (क्रमश:)
बड़े-बड़े बिलौटे टाइप कौवे-मूस मौजूद हैं इस कहानी में, जिन्होंने अपने सपनों को पूरा करने के लिए हर चीज को खोद डाला। एक बिल से दूसरे बिल तक। जहां खोदना चाहिए, वहां भी, और जहां नहीं चाहिए था वहां भी खोद डाला इन खुदासे चूहों-मूसों-बिलौटों-सियारों ने। इन लोगों ने अपने निजी कुत्सित लाभों के लिए सपा का बण्टाढार करने में कोई भी कसर नहीं छोड़ी। इस पूरी श्रंखला-बद्ध कहानी को सुनने-पढ़ने के लिए निम्न लिंक पर क्लिक कीजिए:- कहानी राजा उड़ान-छल्लों की, जिन्होंने सपा में छेद कर दिया:- कहानी राजा उड़ान-छल्ला की
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