: वोकल फॉर लोकल, 999 रुपयों में तीन मास्क : खादी अब गांधी का नहीं रहा, कुछ दिनों बाद देश भी नहीं रहेगा : खादी उद्योग ने कोरोना में अपना अवसर खोजा :
कुमार सौवीर
लखनऊ : आजादी के आंदोलन में अपनी बेमिसाल भूमिका निभाने वाले खादी के तेवर अब शोख होते जा रहे हैं। बाजार के साथ पकती खिचड़ी में राजनीति की छौंक का असर साफ दिखने लगा है। चाहे वह उत्पाद का मामला हो, माल का हो, बाजार का हो, या फिर बदलते वक्त में उसकी कीमतों के बढ़ते वोकल ग्राफ का मसला हो, खादी उत्पाद उद्योग ने अपने आप को बिलकुल नये तौर-तरीकों के साथ सजा-संवार लिया है।
ताजा मामला है कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए अनिवार्य माने जा रहे मास्क का। खादी उद्योग ने इसमें भी अपने लिए अवसर खोज लिया है। यह खोज है मास्क की। विशुद्ध खादी कपड़े से बने और तीन लेयर के हिसाब से बनाये जाने वाले मास्क को खादी ने बाजार पर धमाका कर दिया है। एक पैकेट में तीन मास्क हैं, और प्रत्येक पैकेट विभिन्न रंग-रूप में हैं। आकर्षक छटा के साथ। कीमत भी बाटा के जूतों की तरह ही है। मसलन, तीन मास्क का एक पैकेट का मूल्य सभी करों के साथ 999 रुपया रखा गया है।
लेकिन इसको लेकर भी एक नया विवाद खड़ा हो गया है। अब सवाल यह नहीं है कि यह मास्क महंगा है, बल्कि असली सवाल तो इस बात पर है कि खादी में चरखा तो जोड़ा रखा है, लेकिन उसमें सदी भर पुराने खादी एम्बेसेडर रहे महात्मा गांधी को पूरी तरह खारिज कर उनका नाम और शक्ल को ही खादी से बाहर फेंक दिया है। इतना भी होता तो कोई बात नहीं थी। लेकिन इस बार खादी ने अपनी इस पैकिंग पर गांधी जी की तरह मोदी की तस्वीर छाप दी। आपको बता दें कि करीब डेढ बरस पहले लखनऊ के इंदिरा गांधी प्रतिष्ठान में अपनी प्रदर्शनी में तैनात अपने कार्यकर्ताओं, विक्रेताओं और आने वाले मेहमानों को भी एक-एक टोपी दी थी जिसमें चरखा तो छपा था, लेकिन गांधी जी का स्थान खाली रखा गया था। लेकिन इस मास्क के पैकेट पर से गांधी जी का स्थान मोदी को दे दिया गया है।
बहरहाल, इस मास्क की बिक्री पर पहला सवाल उठाया है राष्ट्रीय जनता दल ने। राजद ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा है कि:-
खादी अब गांधी का नहीं रहा
कुछ दिनों बाद देश भी नहीं रहेगा