केवल जन्म देने में पिता का सहयोग है, वह भी विश्वास के साथ नहीं कह सकता

बिटिया खबर
: सीडीओ थे। हराम का खूब खाया। बरसों बीमारी भोगी, और अब मर गये : तोहफे तो खूब मिले, लेकिन पिता की तनख्‍वाह का एक दाना मयस्‍सर नहीं हुआ : पिता का क्रिया-कर्म निपटाने अमेरिका से आये मित्र ने बताया कि क्‍या-क्‍या नहीं करते थे उसके पिता :

शैलेंद्र त्रिपाठी

फैजाबाद : मेरे एक मित्र के पिताजी बहुत वरिष्‍ठ पीसीएस अधिकारी थे। कई बरसों तक वे विभिन्‍न जिलों में सीडीओ के पद पर कार्यरत रहे । घर पर भौतिक सुख सुविधाओं के साथ ही खाने पीने की भी किसी चीज की कमी नहीं रहती थी । नौकरी में रहते हुए सारी चीजें यहाँ तक शाक सब्जी, मिठाई इत्यादि सारे सामानों की पूर्ति उनके छोटे कर्मचारियों के द्वारा होती थी । कर्मचारी करते भी क्या? आपूर्ति में थोड़ा भी कमी होने पर अधिकारी उनके कार्य में कमी निकाल कर उन्हें दंडित भी कर देता था । होली, दिवाली के त्योहारों पर तो क्या पूछना, मिठाई गिफ्ट के साथ पैसा भी त्योहार के खर्च के नाम पर आता था । फिर भी परिवार में संतुष्टि नहीं थी, हबस बनी ही रहती थी ।
एक दिन मेरे मित्र ने बताया सब कुछ होते हुए भी मुझे जितना आनन्द आपके घर पर मिलता है उतना अपने घर पर नहीं । अपने पिता के वेतन की मिठाई तक के लिए मैं तरस गया हूँ ।केवल जन्म देने में उनका सहयोग है वह भी विश्वास के साथ नहीं कह सकता । पापा जी सेवानिवृत्त होने वाले हैं, मम्मी पापा दोनों को शुगर है ,पापा जी के हार्ट का आपरेशन भी हो चुका है । बताया कि
आज कई वर्षों के बाद मेरा मित्र मुझसे मिलने आया है, बताया कि अमेरिका में हूँ । पापा मम्मी दोनों ही रिटायर्ड होने के २ वर्ष के अंदर नहीं रहे । कोई रिश्तेदार उनसे मिलने नहीं आता था, नौकरों के सहारे ही रहे । दो वर्ष बड़े कष्ट से बीते । जीवन के अंतिम समय पर कोई अपना पास नहीं था । पड़ोसियों ने सूचना दी तब मैं आया । क्रिया कर्म उन्हीं के सहयोग से हुआ, मै तो निमित्त मात्र था । इतना कहकर रोने लगा…! और रोते हुए कहा कि आप तो बड़े भाग्यशाली हैं जो आज भी पिताजी , आपके साथ हैं । मुझे तो सेवा का अवसर भी नहीं मिला ।

( शैलेंद्र त्रिपाठी फैजाबाद के डीआरडीए में सहायक अभियंता के पद पर तैनात हैं)

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