काश मैं शिक्षा में प्रभावी सुधार कर पाऊं: बीएल जोशी

सैड सांग

: स्‍मृति-शेष बनवारी लाल जोशी, लम्‍बी बीमारी के बाद एम्‍स में हुआ निधन : दिल्‍ली, यूपी, उत्‍तराखंड और मेघालय के भी रह चुके थे बीएल जोशी : पाली-मारवाड़ में सन-57 से शुरू की थी प्रांन्‍तीय पुलिस सेवा की नौकरी : विशिष्‍ट मेधा और कांग्रेस से निकटता ने निखार दिया व्‍यक्तित्‍व :

कुमार सौवीर

लखनऊ : यह 28 जुलाई 2009 की पसीने से लथपथ उमस-भरी शाम थी। स्‍थान था उत्‍तर प्रदेश का राजभवन। बनवारी लाल जोशी राज्‍यपाल पद की शपथ ले रहे थे। शपथग्रहण के बाद उन्‍हें उपस्थित पत्रकारों से बातचीत की। सवालों का दौर शुरू हो गया, तो मैंने भी सवाल उठा दिया:- उच्‍च शिक्षा अब घरेलू झगड़ों से बाहर सड़क पर किसी मवाली-बवालियों के झगड़ने का अड्डा बनता जा रहा है। शैक्षिक-सत्र बदहाल हैं, और शिक्षा का स्‍तर निचले पायदान पर। शिक्षक ही नहीं, कुलपति और रजिस्‍ट्रार तक परस्‍पर और शासन के मोहरों की तरह व्‍यवहार कर रहे हैं। आपको पास इसका कोई निदान है।

जोशी जी कुछ क्षण सन्‍नाटे में ही रह गये। फिर बोले:- काश, मैं शिक्षा में थोड़ा सा भी प्रभाव सुधार कर पाया, तो जीवन धन्‍य हो जाएगा मेरा। इस बारे में बेहद गम्‍भीर हूं, और इस बारे में जो भी हो सकेगा, मैं करूंगा जरूर। कोशिश होगी कि इस का फर्क जल्‍दी ही आप सब के सामने दिख ही जाए।

आज वही बीएल जोशी ब्रह्मण-व्‍यापी हो चुके हैं। लम्‍बी बीमारी के बाद जोशी ने एम्‍स में अपनी आखिरी सांस ली।

राज्‍यपाल की कुर्सी पर बैठे शख्‍स के पास अधिकार तो बेहद होते हैं, लेकिन उससे भी ज्‍यादा होती हैं भारी-भरकम सीमाएं। बीएल जोशी भी इन्‍हीं सीमाओं की चाहरदीवारी तक सिमटे रहे। मैं नहीं जानता कि जोशी का अपना यह राज्‍यपाल का कार्यकाल का यह तौर-तरीका सटीक और प्रभावी था भी, या नहीं। लेकिन इतना जरूर है कि बनवारी लाल जोशी जी अपनी राज्‍यपाल की छवि किसी वायसराय या किसी गोरे अफसर की तरह ही राजभवन के खोल में सिमटे रहे। आम आदमी से उनका जुड़ाव कभी भी नहीं हो पाया।

मुझे याद है कि शपथग्रहण के बाद उन्‍होंने अपने राजभवन के लॉन में ही हम सभी पत्रकारों, नेताओं, अधिकारियों, और समाज के प्रमुख गणमान्‍य आदि अतिथियों को जलपान पर आमंत्रित कर लिया था। मैं इस लिए भी जोशी जी से बातचीत करने का इच्‍छुक था, कि वे मूलत: राजस्‍थान से हैं। मैं भी दैनिक भास्‍कर के जोधपुर संस्‍करण में रह चुका था। और उस दौरान मेरी खबरें केवल हमारे संस्‍करण ही नहीं, बल्कि पूरे प्रदेश और देश भर के संस्‍करणों में धूम मचा चुकी थीं।

मैं जोशी जी से बातचीत करने के मूड में था। मैंने बताया कि मैं पाली-मारवाड़ में रह चुका हूं। यह पता चलते ही जोशी ने अपना हाथ मेरे कांधे पर रख दिया, बेहद आत्‍मीयता के साथ। फिर उन्‍होंने बताया कि उनकी नौकरी की शुरूआत पाली-मारवाड़ से ही हुई थी। यह सन-57 की बात है, तब मैं प्रान्‍तीय पुलिस सेवा में बिलकुल नया-नया भर्ती होकर पहली पोस्टिंग पर पाली-मारवाड़ गया था। जोशी जी ने बताया कि वे बहुत लम्‍बे समय तक वे पाली-मारवाड़ में नहीं रह पाये, लेकिन उन्‍होंने वहां के प्रमुख और दूरस्‍थ इलाकों, और पर्यटक क्षेत्रों, व किलों-नदियां का भी जिक्र जिस तरह किया, मैं जोशी जी की स्‍मरण-क्षमता का कायल हो गया।

बनवारी लाल जोशी बीएल जोशी राजस्थान के नागौर जिले के छोटी खाटू में 27 मार्च 1936 को पैदा हुए।  इन्होंने अपना स्नातक कोलकाता के स्कॉटिश चर्च कालेज से किया। उसके उपरांत विश्वविद्यालय विधि महाविद्यालय, कोलकाता से विधि में स्नातक हुए। इसके बाद विश्वविद्यालय विधि महाविद्यालय, कोलकाता से विधि में स्नातक किया। जोशी अपने करियर की शुरुआत बतौर राजस्थान पुलिस में साल 1957 में शुरु की। इसके बाद वो पुलिस सेवा में अधिकारी भी रहे। साल 1991 में पुलिस की नौकरी छोड़ उन्होंने खुद को समाजिक कार्यों से जोड़ लिया।ये उत्तराखंड के राज्यपाल रहे अक्टूबर २००७ से। इससे पूर्व ये दिल्ली के भी उपराज्यपाल रह चुके हैं, २००४ से २००७ के बीच। फिर ये मेघालय के राज्यपाल बने २००७ में।

इसके बाद साल 1993 में यूएस गए जहां उन्होंने एक एनजीओ के साथ मिलकर समाजिक क्षेत्र में अहम काम भी किए। फिर साल 2000 में वो भारत वापस लौट आए। भारत वापस लौटने के साल ही उन्हें राजस्थान राज्य मानवाधिकार आयोग का सदस्य भी बनाया गया। तो वहीं जोशी नेहरू-गांधी परिवार के साथ अपनी नजदीकियों के लिए भी पहचाने गए।

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