16 लाख में एक भी न था, जो सुशांत को समझता

दोलत्ती

: सुशांत सिंह स्‍मृति-शेष : जीवन के ऑर्गेज्‍म का सुख शायद ही किसी को मिल पाये : सेक्स, कुंठाओं के दौर में यदि प्रेम-पगा सखा है तो वह भाग्यशाली : ज़िन्दगी को चाहिए एक दोस्त जो रूह की कराह को सुन ले :
त्रिभुवन
उदयपुर : अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत ने तीन जून को माँ को याद करते हुए आईजी पर एक मार्मिक पोस्ट लिखी। इसे पंद्रह लाख अस्‍सी हज़ार तीन सौ आठ लोगों ने लाइक किया। इसमें साफ़ लिखा है, सुशांत की मौत और ज़िन्दगी में ठनी हुई थी और निगोशिएशन चल रही थी। लेकिन ये सब लोग बस यों हो थे। शून्य थे। इनका होना न होना व्यर्थ था।
इस फोटो मैसेज पर एक नजर डालिये। सारे संकेत तो सुशांत ने मौत से पहले ही जाहिर कर दिया था। जिसमें आंसू भी था, सपने भी थे, मुस्‍कुराहट भी थी, और जिन्‍दगी में आने वाले या आते जा रहे मोड़ों का भी जिक्र किया था।
ये संदेश साफ़ था, लेकिन इस वर्चुअल रियलिटी के संसार में कुछ भी तो रियल नहीं है। न आँसू, न हँसी और न दर्द। सुशांत के इन मार्मिक शब्दों को 15 लाख नहीं, ठीक से पढ़ने वाला एक भी सखा या सखी होती तो कदाचित आज वह हम सब के बीच होता और एक विस्फोटक प्रतिभा से हम इस तरह वंचित न हो जाते।
काश, हम सब की ज़िन्दगी में एक, सिर्फ़ और सिर्फ़ एक इन्सान ऐसा हो, जो हमारे अन्तर्मन की इस भाषा को पढ़ ले और प्रेम से पूछ ले कि तुम ठीक तो हो। आए बात कर ले। रूठ जाए, मान जाए और जीवन को भले इंद्रधनुष न बना सके, उसे बदरंग होने से बचा ले। मन की पीड़ा को समझ ले और क्षमा का भाव रखे। ये परस्पर हो। ऐसा नहीं कि इसका बोझ एक पर हो। ये रूह का रिश्ता रूह से पलता रहे, लेकिन ये दुनिया अब अकेलेपन का बीहड़ है। इसमें आपको सेक्स और सिगरेट तो कहीं भी मिल जाएंगे, लेकिन जीवन का ऑर्गैज़म और सुख का कोई कश शायद ही मिल पाये।
इन्सान को ज़रूरत तो प्रेम की पुलक की है, लेकिन वह फिसल जाता है देह की अंधी गुहा में। सेक्स और कुंठाओं के इस कालखंड में अगर किसी के पास प्रेम में भीगा कोई ऐसा सखा है तो वह इस धरती के सबसे भाग्यशाली लोगों में है। सुशांत सिंह के जीवन का सार इतना सा है, लेकिन बहुत गहरा और अमूल्य है।
( पत्रकार, चिंतक और लेखक ही नहीं, त्रिभुवन अपने आप में एक सम्‍पूर्ण संवेदनशील व्‍यक्तित्‍व हैं। कम से कम जग-जाहिर जगत में तो हरगिज।)

2 thoughts on “16 लाख में एक भी न था, जो सुशांत को समझता

  1. गुरूवर। सादर साष्टांग दंडवत् प्रणाम्– इंसान अपने आप से हार गया –जो लोग जिंदगी को हार जीत बना लेते है–वो अपने सुंदर जीवन को उलझा देते है —सुशांतराजपुत ने कोई नया काम न किया –मौत –से आगे भी एक नई जिंदगी है सुशांतराजपुत जैसे लोग भूल जाते है
    –सुसाईट की तह में न जिंदगी की हार है न ये जीत है –अकेलेपन मे घुटने वालो का ये जहर है –कोरोना काल मे सच कहने मे गुरेज नही हम कई बार मकड़जाल मे उलझे —मौत को महबूबा मानते है –अनेको बार सुसाईट की
    दहलीज पर खड़े होकर दिल से ठोक ठोक कर पूछा बता तेरी क्या मर्जी –ये दिल इतना बेसूंड
    है टक मना कर देता है –कहता है हारा तू है मै नहीं — मुझे न हारना आता है न जीतना –मुझे चलना है –एक छोटा सा उदर है —बस छोटा सा –और क॔चे के बराबर दिमाग —समाज क्या
    कहेगा या लोग क्या सोचेगे अपने दिल की लिस्ट
    मे नहीं —हाँ। ख्याल से बाबाजी जरूर हूं–
    जब दिल दुखा –कह दिया कि भई दिल दुख गया —मौत से डर नहीं लगता साहेब –समाज से डर लगता है –जो पट बोलता है कायर था मर गया —सुसाईट उन विचारो का करो जो आपको सूसाईट की दहलीज दिखाते है –छोड़ दिजीये ऐसे लोगो को जो आपको यहाँ लाकर खड़े कर दिये —आत्महत्या किसके लिये @समाधान जब न मिले तो कम से ईश्वर पर तो छोड़ दिजीये —जिंदगी खूबसूरत है इसे बोझ न बनाईये —हर्टलेस परसन हो जाईये अब हम नही सोचते कहते सुसाईट –अनेक राज दफन है
    वो साथ जायेगे –पृथ्वी अच्छी है जिंदगी मे भुलने की आदत नेकी कर दरिया मे डाल –नंगा आया था –नंगा जायेगा –ये तो वो दुनिया है जो सम्मान् मे शमशान मे चड्डी फाड़कर नंगा भेजेगी –और हाथ मे एक गरम सिक्का रख देगी
    –ले चल बहूत दौड़ा रूपये के पीछे —बहुत काम की है ये दिल की फकीरी — सुसाईट न कर दिल का फकीर हो जा — पृथ्वी

  2. गुरु वर।सादर साष्टांग दंडवत् प्रणाम

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