: लखनऊ हाईकोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता आईबी सिंह से बातचीत : सरकार से ज्यादा हताशा तो लोगों को न्यायपालिका से हुई : न्यायपालिका को बताना ही होगा कि कोरोना-काल में क्या कंट्रीब्यूशन था ज्यूडिसरी का :
कुमार सौवीर
लखनऊ : कोरोना-काल ने आम आदमी के आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक ही नहीं, बल्कि उसकी मनो-क्षमता को भी बुरी तरह घायल किया है। और तो और आम आदमी का विश्वास भी उन सभी से बुरी तरह टूटा-दरका है, जिस पर सबसे ज्यादा विश्वास लोगों द्वारा किया जाता है। सच बात तो यही है कि इस तीन महीने के दौरान सरकार से ज्यादा हताशा तो आम आदमी को न्यायपालिका से हुई है। अब यह जिम्मेदारी न्यायपालिका पर है वह अपने रवैये और उसके कारणों का खुलासा करे। ज्यूडिसरी को आम आदमी को यह बताना ही होगा कि कोरोना-काल में क्या कंट्रीब्यूशन रहा है ज्यूडिसरी का।
यह राय लखनऊ हाईकोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता आईबी सिंह की है। दोलत्ती संवाददाता से हुई एक बातचीत के दौरान उनका कहना है कि यह हालत कम्प्लीट निराशाजनक है। टोटल डिसअपाइंटमेंट। और दुख की बात तो यह है कि इस हालत का खामियाजा भविष्य में लम्बे वक्त तक भुगतना पड़ेगा।
आईबी सिंह बताते हैं कि ऐसा हरगिज नहीं है कि ऐसा टोटल डिसअपाउंटमेंट हड़बड़ाहट में हुआ। दुर्भाग्य की बात तो यही है कि यह सब जानबूझ कर ही किया गया। इसके तहत कुछ ऐसा किया जाए कि हमें कुछ भी न करना पड़े। सिस्टमेटिक सिस्टम फैल्योर
आईबी सिंह पूछते हैं कि पिछले तीन महीने में क्या किया आपने। मैजिस्ट्रेट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक को जवाब देना होगा। जब करोड़ो लोग तपती सड़क पर नंगे पांव चल रहे थे, तब कुछ भी नहीं किया। स्यू मोटो नहीं लिया। लेकिन गाजीपुर में अजान के मामले में स्वत: संज्ञान ले लिया। यह निराशा और हताशाजनक हालतहै। फेल साबित हुआ है हमारा यह न्यायिक ढांचा। एक धेला भी योगदान नहीं किया ज्यूडिसरी ने।
ऑनलाइन सिस्टम चल ही नहीं रहा था। बेल मैटर पर एक जज साहब को बिठा लिया, 15 में से 12 को फैसला दिया कि एडवोकेट अपीयर नहीं हुआ। सवाल यह है कि वह वकील कैसे अपीयर होता ? आपका ऑनलाइन सिस्टम ही काम नहीं कर रहा था। न जाने कौन सा सिस्टम लिया ? दुनिया में जितना घटिया सिस्टम्स हो सकता है, उसको अडॉप्ट किया। जो सिर्फ कमीशन से चलता है, उसकी सेवाएं लीं। एक वकील कोर्ट में खड़ा है, दूसरा वकील कहता है कि हम ऑनलाइन आयेंगे। मजाक बन गया।
कहा कि 65 बरस से उम्र के ज्यादा वकील न आयें। सवाल यह है कि क्यों ? सरकार कहती है कि ड्यूटी खत्म हो गयी है तो जाइये। कोर्ट कहती है कि आपका काम हो या न हो, आप घर बैठिये। आपका रिटायरमेंट हो गया। कमाल है भई।
आईबी सिंह की मांग है कि हाईकोर्ट प्रशासन को बंद कर दिया जाना चाहिए। उसकी जगह दूसरी व्यवस्था लागू करें। रजिस्ट्रार से लेकर चीफ जस्टिस तक।
टोटल फैल्योर। इतना फैल्योर तो किसी भी सिस्टम में आज तक नहीं हुआ होगा।
उनको शिकायत है कि सरकारी कर्मचारियों-अधिकारियों ने अपनी एक महीने की सेलरी कोरोना के खिलाफ राहत कोष में दी। जस्टिस सुधीर अग्रवाल ने प्रस्ताव दिया कि एक महीने की सेलरी राहत में दे दी जाए, लेकिन किसी भी जज ने एक धेला नहीं दिया। आईबी सिंह कहते हैं कि अरे आप तीन साल का एलटीसी ही दे देते ! लेकिन नहीं।
पूर्णत्या सहमत,यह सही है कि लोगों को सरकार से ज़्यादा न्यायपालिका पर भरोसा होता है,पर अफ़सोस यह भरोसा छिन्न-भिन्न हो गया है ।