:चंद महिलाएं भी यदि अपना पल्लू कस लेतीं तो न्याय मिल जाता इस बच्ची को :अगर ऐसे लोग ही डीएम-एसपी और आईजी हैं, तो मैं उनकी निन्दा करता हूं:अपनी बला टालने के लिए अब उसे बनारस के पागलखाने में भेजने की तैयारी: अफसर लढऊ-जगधर, समाजसेवी पाखंडी और पत्रकार बिलकुल दल्ले निकले:
कुमार सौवीर
लखनऊ: बहुत शर्मनाक हो चुकी है जौनपुर की मिट्टी। आठ दिन पहले सामूहिक बलात्कार के बाद अस्पताल के बाहर सड़क पर बेहोशी में मिली एक बच्ची को न्याय मिलाने के लिए जौनपुर का एक भी मर्द सामने नहीं आया। चाहे वह जिलाधिकारी रहे हों, या फिर एसपी अथवा आईजी, सब के सब नपुंसक ही निकले। डीएम फलाने गोस्वामी ने अपने कैम्प से बाहर निकलने की जहमत नहीं उठायी, पुराने एसपी ढमकाने राजू बाबू ने पल्ला झाड़ा कि कोई रिपोर्ट दर्ज कराने ही नहीं आया। यही हरकत नौटंकीबाज कोतवाल ने की। आईजी जगधर भगत और ताजा एसपी आश्वासन-गुरू यादव ने यह वादा तो किया, लेकिन उनके आश्वासन के 48 घंटों बाद भी रिपोर्ट दर्ज नहीं की गयी। अौर तो अब इस मामले पर राख डालते हुए इस बच्ची को बनारस के मनोरोग अस्पताल में भेजने की तैयारी शुरू हो चुकी हैं, जहां यह मामला हमेशा-हमेशा के लिए खत्म हो जाएगा।
तो साहब, इसके बावजूद अगर आप यह चाहते हैं कि मैं ऐसे निकृष्ट, संवेदनहीन और केवल बाबूगिरी पर आमादा अफसरों को सर, महोदय या श्रीमान जी कह कर पुकारूं, तो बेहतर होगा कि यह काम आप ही कह दीजिए। मैं एेसा नहीं कर सकता। वजह यह कि मैं उन्हें सिरे से निर्लज्ज और बेहूदा और कलंक का धब्बा ही मानता हूं। बेशर्मी की रजाई ओढे हैं जौनपुर के अफसर। और खास कर यहां के पत्रकार और सामाजिक दायित्वों का ढोंग करने वाले तथाकथित समाजसेवी। लायंस क्लब और जेसीज जैसे सामाजिक संगठन अपने पैसों की रंगीनियों में मस्त रहे, लेकिन इस बच्ची को न्याय मिलाने के लिए इन लोगों ने कोई भी कोशिश नहीं की। पत्रकार तो सिर्फ तीन मरे, छह घायल से ऊपर ही नहीं सरक पाते हैं। निजी घटिया स्वार्थों का सैलाब उनके नाक से नीचे ही नहीं उतरता।
किस्सा एक बार फिर समझ लीजिए। 17 फरवरी की रात को महिला अस्पताल के बाहर सड़क पर बेहोश मिली थी एक बच्ची। उम्र रही होगी वही कोई 17 बरस। स्थानीय नागरिकों ने पुलिस को खबर दी। लेकिन पुलिस वाले नहीं आये। अस्पताल वालों को खबर मिली तो उन्होंने उस बच्ची को लाकर भर्ती कर दिया।
जिला अस्पताल में चीफ फार्मासिस्ट कौशल त्रिपाठी उस वक्त मौके पर थे। उन्होंने वहां मौजूद नर्सों से कह कर उसका चेकअप कराया और पाया कि उस बच्ची के गुप्तांग में गहरी चोटें थीं। तब तक डॉक्टर भी पहुंचे, उन्होंने पुलिस को लिखित सूचना भेजी। लेकिन अब तक पुलिस ने कुछ भी नहीं किया। न एसपी न डीएम। बाद में मैंने खुद आईजी से बात की, लेकिन कोई भी नतीजा नहीं निकला।
एक वरिष्ठ अधिकारी ने मुझे बताया कि प्रशासन नहीं चाहता है कि प्रदेश में कोई जघन्य अपराध की खबर पुलिस कागजों में दर्ज हो सके, क्योंकि उससे सरकार के सामने प्रशासन की हालत कमजोर हो सकती है। और खास कर तो तब जब प्रदेश सरकार महिलाओं की सुरक्षा पर प्रतिबद्ध का संकल्प ले चुकी हो। उस अधिकारी ने मुझे बताया कि उस बच्ची के साथ सामूहिक बलात्कार हुआ था और उसमें उसकी हालत बदहवास हो चुकी है। उसकी इसी हालत को ध्यान में रखते हुए अब उसे बनारस के मनोरोग अस्पताल में भेजा जा रहा है।
उस अधिकारी ने यह भी आशंका जतायी है कि हो सकता है कि इस बच्ची के साथ बलात्कार करने वालों में दरिंदे किसी बड़े रसूखदार परिवार से सम्बद्ध हों,जिन्हें बचाने के लिए पुलिस और प्रशासन ने एफआईआर तक दर्ज नहीं की।
हैरत की बात है कि जौनपुर में आठ दिनों से तिल-तिल मर रही इस बच्ची को अब पागलखाने की ओर रवाना किया जा रहा है, लेकिन पत्रकार और सामाजिक सरोकारों का शंख बजाने वाले समाजसेवी लोग अपनी पूंछ अपने पेट से सटाये घूम रहे हैं।
अब वह नोटिस देख लीजिए, जो जिला अस्पताल के प्रभारी चिकित्साधिकारी ने इस बच्ची को भर्ती करने के बाद पुलिस को खबर देते हुए आवश्यक कार्रवाई करने के लिए भेजा था, लेकिन जौनपुर के जिम्मेदार पुलिस अफसरों ने उस पर तनिक भी कान नहीं दिया।