सात बहनों की हत्या के बाद जन्मे थे कान्हा

मेरा कोना

कृष्ण का जन्म और कन्या भ्रूण हत्या

: रास-लीला के बजाय चाहिए कि हम कन्या-हत्याओं का विरोध शुरू करें : लेकिन अब बहस छेड़ने को तैयार नहीं है हमारा समाज : आज भी हो रही हैं सालाना लाखों कन्या-भ्रूण हत्याएं :

कुमार सौवीर

विडम्बना देखिए। एक ओर महान शख्स का आज हम प्रतीकात्मक जन्म दिन मना रहे हैं। वहीं, उसकी उंचाइयों तक पहुंचाने वाली नारियों को हम नेपथ्य में भेज देते हैं। उन जैसी बनने वाली लाखों कन्याओं को जन्मने से पहले मार देते हैं।

आज जन्माष्टमी है या कल होगी या कल रही होगी। विवाद खड़ा हो चुका है। कुछ भी हो, और जब भी हो, कृष्ण जी पूजे जाएंगे। उन्हें माखनचोर नटखट नागर कान्हा श्याम रणछोड़ और बंसी बजैया जैसे नामों से पुकारा और पूजा जाएगा। होना भी चाहिए। कृष्ण तो हमारी आत्मा में रचे-बसे हैं। उनका जीवन-दर्शन स्वयं में भारतीयता का जीता-जागता प्रमाण है। लेकिन क्या आपको नहीं लगता है कि इस पूरे अनुष्ठान में देवकी यशोदा और उन गोपिकाओं का कहीं भी जिक्र और गुणगान भी होना चाहिए जिन्होंने कृष्ण को जन्मा दीक्षा दी दोस्ती की पींगें मुहैया करायीं।

इस पूरे अनुष्ठान में क्या इतनी महत्वपूर्ण महिलाएं लगभग नेपत्थ्य यानी पर्दे के पीछे नहीं भेज दी जाती हैं। यह सवाल इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि कन्याभ्रूण हत्या सर्वाधिक इसी देश में होती है। गर्भ में ही मार डाली जाती हैं बच्चियां। पता लगाने के लिए अत्याधुनिक मशीनें तो कुकुरमुत्तों की तरह हर जिले-कस्बे में फैली हैं। हम बात तो महिला सशक्तिकरण की करते हैं मगर क्या इस मसले पर हम पूरी तरह ईमानदार है। सवाल अब खुद से और अपने गिरहबान में झांककर पूछिये कि आखिर क्यों हर-घर मे जन्मेगे कृष्ण और क्यों हर घर में मारी जाएंगी निर्दोष गर्भस्थ कन्याएं।

सवाल तो यह भी है कि कृष्ण जन्म कैसे लेंगे जब देवकी ही नहीं होंगीं। कैसे जिलाये जाएंगे कृष्ण जब यशोदा ही नहीं होंगी। कैसे रासलीला करेंगे कृष्ण जब गोपिकाएं ही मार डाली जाएंगी जन्म लेने के पहले। फिर कृष्ण किस द्रौपदी का चीर हरण रोकेंगे। किस द्रौपदी को दुर्वासा के क्रोध से बचाने के लिए भोजन के कटोरे में लगे साग का टुकडा मुंह में डालेंगे और त्राण देंगे। और जब यह सब नहीं होगा तो कैसे होगा इन हालातों में परित्राणाय साधूनाम और विनाषाय च दुष्कृताम।

खैर। कृष्ण का प्रेम करना हमारे लिए गर्व का विषय है लेकिन पूरे भारत में आनर किलिंग की हम चोरी छिपे ही सही वकालत करते हैं। यह दोहरा चरित्र है और इसे छोडे बिना कृष्ण का जन्म लेना ही निरर्थक है। चलिए आज अपने कान्हा से ही पूछ लीजिए कि वे अब कैसे और किसके लिए कहेंगे कि यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत: अभ्युत्थानम अधर्मस्य तदात्मानम सृजाम्यहम

आज जन्माष्टमी है या कल होगी। विवाद खडा हो चुका है। कुछ भी हो और जब भी हो कृष्ण जी पूजे जाएंगे। उन्हें माखनचोर नटखट नागर कान्हा श्याम रणछोड और बंसी-बजैया जैसे नामों से पुकारा और पूजा जाएगा। होना भी चाहिए। कृष्ण तो हमारी आत्मा में रचे-बसे हैं। उनका जीवन-दर्शन स्वयं में भारतीयता का जीता-जागता प्रमाण है। लेकिन क्या आपको नहीं लगता है कि इस पूरे अनुष्ठान में देवकी यशोदा और उन गोपिकाओं का कहीं भी जिक्र और गुणगान भी होना चाहिए जिन्होंने कृष्ण को जन्मा दीक्षा दी दोस्ती की पींगें मुहैया करायीं।

इस पूरे अनुष्ठान में क्या इतनी महत्वपूर्ण महिलाएं लगभग नेपत्थ्य यानी पर्दे के पीछे नहीं भेज दी जाती हैं। यह सवाल इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि कन्याभ्रूण हत्या सर्वाधिक इसी देश में होती है। गर्भ में ही मार डाली जाती हैं बच्चियां। पता लगाने के लिए अत्याधुनिक मशीनें तो कुकुरमुत्तों की तरह हर जिले-कस्बे में फैली हैं। हम बात तो महिला सशक्तिकरण की करते हैं मगर क्या इस मसले पर हम पूरी तरह ईमानदार है।

सवाल अब खुद से और अपने गिरहबान में झांककर पूछिये कि आखिर क्यों हर-घर मे जन्मेगे कृष्ण और क्यों हर घर में मारी जाएंगी निर्दोष गर्भस्थ कन्याएं। सवाल तो यह भी है कि कृष्ण जन्म कैसे लेंगे जब देवकी ही नहीं होंगीं। कैसे जिलाये जाएंगे कृष्ण जब यशोदा ही नहीं होंगी। कैसे रासलीला करेंगे कृष्ण जब गोपिकाएं ही मार डाली जाएंगी जन्म लेने के पहले। फिर कृष्ण किस द्रौपदी का चीर हरण रोकेंगे। किस द्रौपदी को दुर्वासा के क्रोध से बचाने के लिए भोजन के कटोरे में लगे साग का टुकडा मुंह में डालेंगे और त्राण देंगे। और जब यह सब नहीं होगा तो कैसे होगा इन हालातों में परित्राणाय साधूनाम और विनाषाय च दुष्कृताम।

वैसे एक खुशखबरी भी है आपके लिए। फेसबुक का एक नया चेहरा और दिखा है अब। हंसी-मजाक-दिल्लगी के साथ ही साथ बेहूदा बातचीत करने वालों की फौज के बीच एक ऐसी सेना अब जन्म ले चुकी है जो सामाजिक समस्या को ना केवल पहचान रहे हैं बल्कि उसे दुरूस्त करने का हौसला-जज्बा भी दिखा रहे हैं। ताजा मामला है कन्याभ्रूण हत्या के खिलाफ उठने वाली आवाजों का। जौनपुर के डाक्टर देवप्रकाश सिंह ने जो जंग शुरू की उसे एक संस्थागत आकार देते हुए दुबई के भगवान स्वरूप सैनी ने बाकायदा एक नया एकाउंट ही बना दिया, वो ये है….

हालांकि भगवानस्वरूप इसके पहले भी आम आदमी के जीवन से जुडे अनेक मसलों पर अपना सशक्त हस्ताक्षर कर चुके हैं। लेकिन बेटी बचाओ आंदोलन पर उनका यह प्रयास मील का पत्थर बन गया। फिलहाल वे बच्चियों और महिलाओं से सम्बन्धित दो पोर्टल लांच करने की तैयारी में जुटे हैं। लखनउ के भी कुछ लोग इसमे मदद कर रहे हैं। उधर जयपुर के डाक्टर मनोज चतुर्वेदी ने आज अपनी जो पोस्ट फेसबुक पर डाली है वह लाजवाब है। ऐसे एक नहीं सैकडों उदाहरण मिल जाएंगे जो फेसबुक के करवट बदलते दौर की साक्षी देते हैं। तो आइयेए अगर हम ऐसे प्रयासों से जुडना चाहते हैं तो पहले हम ऐसे लोगां को नमन करें। और परस्पर एकजुटता की शपथ भी। बस लोग जुड़ते रहे और कारवां चलता रहे।

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