: आयोजकों ने बताया कि तीन हजार भक्त आयेंगे, और प्रशासन ने मान लिया : ऐसे मूर्ख हैं आला अफसर, तो फिर हर कदम पर होंगे ही ऐसे हादसे : सिरे से झूठ हैं सरकारी दावे, सच बात तो यह है कि यह प्रशासनिक हत्याकाण्ड है : मृतकों में 18 महिलाएं भी हैं : जितना होमगार्ड जानता है, उतना प्रशासन में आला अफसर तक नहीं समझते :
कुमार सौवीर
लखनऊ : कमिश्नर और आईजी की ओर मत ताकिये। वे तो कितने काबिल हैं, उसका प्रमाण तो आज वाराणसी में हुए हादसे से पता चल गया। मौका था बाबा जयगुरुदेव जयंती पर आयोजित कार्यक्रम के दौरान परिक्रमा का। जिस राजघाट पर भारी वाहनों की आमद-रफ्त पर बरसों से पाबंदी है, वहां आदमियों का ऐसा सैलाब भड़का कि बवाल हो गया। अब तक 24 लोगों की मौतों की पुष्टि हो चुकी है, जिनमें 18 से ज्यादा महिलाएं बतायी जाती हैं। ऐसे-तैसे अपने डाइपर्स बदल कर घटना-स्थल पर पहुंचे अफसरों ने केवल हाय-हाय का जयकारा लगाया और पूरी ताकत इस बात पर लगा दी कि वह अपनी करतूतों पर राख डाल कर उनके इस जघन्य अपराध पर से आम लोगों का ध्यान-भंग करने में सफल हो जाएं। फिलहाल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने इस हादसे पर दुख जताया है और मृतकों व घायलों के परिजनों को राहत अदा करने की घोषणा कर दी है।
आप किसी भी होमगार्ड या पीआरडी के सिपाही से जरा पूछने की जहमत कीजिए, तो आपको पता चल जाएगा कि होमगार्ड और पीआरडी के जवान की समझ आईजी और कमिश्नर जैसे आला अफसरों की बुद्धि से लाख दर्जा बेहतर और श्रेष्ठ है। बनारस में मोटी तनख्वाह और बेशुमार सुविधाएं भोगने में पूरी मस्ती के साथ कुर्सी तोड़ रहे आला अफसरों ने भले ही किताब रट कर सरकारी नौकरी हासिल कर ली, लेकिन पीआरडी और होमगार्ड के सिपाही के पास पढ़ाई से ज्यादा प्रायोगिक कढा़ई वाली बुद्धि होती है। तो ऐसे सिपाहियों से आज जब पूछेंगे कि भीड़ का मतलब क्या होता है, तो उनका सपाट जवाब होगा:- बवाल।
लेकिन काशी के अफसरों को यह समझ में नहीं आया। प्रशासन का दावा है कि आयोजकों ने उन्हें बताया था कि केवल 3 हजार लोगों की ही इस सम्मेलन में शिरकत होगी। फिर क्या था। आयोजकों ने दावा किया और प्रशासन ने आंख मूंछ कर आयोजकों के दावों पर यकीन कर लिया, और अपनी मौज-मस्ती में जुट गये। तीन हजार लोगों के आने की परमिशन प्रशासन ने दे दी। लेकिन एक बार भी प्रशासन ने यह नहीं सोचा कि हकीकत क्या और कैसी हो सकती है। भारी भीड़ ने सैलाब की शक्ल में हिलोरें लेने लगा। और यह हादसा हो गया। आज प्रशासन का दावा है कि पचास हजार लोग यहां पहुंच गये थे, जबकि जानकारों का कहना है कि यह तादात लाखों में थी।
दरअसल प्रशासन को किसी भी आयोजन की अनुमति देने के पहले उसके इतिहास-भूगोल का अध्ययन करना चाहिए और उसके बाद ही आयोजन की तैयारियां की जानी चाहिए। हैरत की बात है कि प्रशासन ने यह तक नहीं देखने की जहमत नहीं उठायी कि इसके चंद महीना पहले भी इसी समुदाय से सम्बन्धित गुट ने मथुरा में भारी तांडव मचा लिया था। उसके पहले सरकारी जमीन पर कब्जाने के लिए रामवृक्ष यादव नामक उस नेता ने प्रशासन को तीन हजार लोगों की अनुमति के लिए अर्जी लगायी थी, लेकिन पर उससे कहीं ज्यादा लोग पहुंच गए थे।
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