गजब सफर कुतिया तक का, कुटिया से

ज़िंदगी ओ ज़िंदगी

: भाषा के शब्‍द-दर-शब्‍द अनुवाद रूपांतरण के चलते अक्‍सर हो जाता है भाषा का अन्‍त्‍येष्टि-संस्‍कार : वामपंथी दर्शन के बजाय मूर्खपंथी दर्शन का प्रवेश बहुत भारी पड़ गया नामकरण पर : कुछ भी नाम रख देते, जो भी होता वह साईं की कुतिया से तो बेहतर ही होता :

कुमार सौवीर

लखनऊ : एक कम्‍युनिस्‍ट हुआ करते थे। छात्र जीवन के दौरान। खासा पढ़ा-लिखा और समझदार भी। अब उनका परिचय जान कर क्‍या करेंगे आप, बस इतना समझ लीजिए कि इस युवा कम्‍युनिस्‍ट का अचानक हृदय-परिवर्तन हुआ, तो वह मस्‍त-मौला बाबा-गिरी वाली संस्‍कृति की शरण में चला गया। अब सच तो है ही कि हर संस्‍कृति के थान-स्‍थान में समानधर्मी लोगों का जुटान हो ही जाता है। फिर क्‍या था जल्‍दी ही इस बाबा की बाबागिरी चल पड़ी और उसके प्रभावमंडल में गंजेडि़यों-चरसियों की चहलपहल शुरू हो गयी। धुआं-धक्‍कड़ तेजी पर हुआ।

इसके साथ ही एक मेधावी वामपन्‍थी ने अपनी नेतृत्‍वशीलता का चोला बदल कर बाकायदा बाबा का रंग अपना लिया। अब हमें इससे क्‍या लेना-देना कि इस चोला-परिवर्तन में हवि बन गयी थी मोहब्‍बत। प्रेम की राख यानी यूरिया के बल पर एक नये पौधे ने सिर उठाया और जल्‍दी ही लहलहा गया।

खैर, इस नये बाबा की राजनीति में खासा दखल हुआ करता था। उसका लाभ भी उठा। लखनऊ-बनारस मार्ग पर जगदीशपुर बाजार से आगे मुसाफिरखाना की ओर मोहब्‍बतपुर रेलवे-क्रासिंग के ठीक दाहिने ओर मुड़ती एक सड़क के किनारे इस बाबा ने अपना डेरा जमाया। पुराने असरदार दोस्‍तों-आसबाबों ने मदद किया, जमीन मिली। मकान बन गया। एक बड़ा आश्रम बन गया। चेला-चपाटी तो बेहिसाब आ ही चुके थे। सबने मिल कर इस बाबा का नया नामकरण कर दिया:- साईं। फिर क्‍या था, अब इस नये साईं बाबा की बाबागिरी का रंग खूब जम गया।

चेलों ने इस बाबा के प्रचार का काम सम्‍भाला। कई चेलों ने मिल कर रेलवे में दबाव डाला और रेलवे-क्रासिंग के पास ही रेलवाई और पीडब्‍्ल्‍ूयडी अफसरों से कह कर एक बोर्ड भी लगवा लिया। नाम लिखा गया:- साईं की कुटिया। हिन्‍दी में भी, और उसके नीचे अंग्रेजी में भी।

इस बोर्ड पर हिन्‍दी वाले नाम पर तो कोई भी दिक्‍कत नहीं थी, लेकिन उसकी अंग्रेजी लिपि पर हंगामा हो गया। समस्‍या यह हुआ कि यह साईं की कुटिया लिखा है, या फिर साईं की कुतिया।

ऐतराज पर ऐतराज हुए। लेकिन सरकारी कागजों पर विधाता के कागजों की तरह किसी भी तरह की फेरबदल की गुंजाइश नहीं हो सकती थी, अफसरों ने साफ कह दिया।

ऐसे पर एक नया जुगाड़ खोजा गया। इस कुटिया के अंग्रेजी कुतिया नामकरण शब्‍द पर यू अक्षर को भारतीय-संस्‍कृति के अभिन्‍न प्रेम-भाव की तरह कुचल-रगड़ कर खत्‍म कर दिया गया। सारे झगड़े-टंटे खत्‍म करने पर आमादा इन नये प्रबंधकों ने नया प्रयोग किया। अब हिन्‍दी में तो “साईं की कुटिया” की जगह “कटिया” लिखा जाता है, लेकिन अंग्रेजी में “साईं के टिया” लिख दिया गया।

इसी को ही तो कहते हैं भाषा के रूपांतरण का अन्‍त्‍येष्टि-संस्‍कार। काश इसमें वामपंथी दर्शन के बजाय मूर्खपंथी दर्शन का प्रवेश न किया गया होता, तो नजारा लाजवाब हो सकता था।  दो-चार नाम तो मैं ही सुझा सकता हूं। मसलन, साईं हैवेन, साईं का स्‍वर्ग, साईं-स्‍थान, साईं-महल, साईं का झोंपड़ा, साईं-दर्शन। कम से कम साईं की कुतिया से तो निजात मिल जाती। है कि नहीं ?

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