मुख्य सचिव अहंकार में चूर थे, तो एसएसपी नौकरी बचाने में

मेरा कोना

: यूपी के एनकाउंटर-स्‍पेशलिस्‍ट राजेश पाण्‍डेय अपनी नौकरी बचाने में हर कानून का कत्‍ल करते रहे: किसी शातिर अपराधिक गिरोह को मात करता है यूपी का प्रशासन ढांचा : जितनी भी नृशंसता हो सकती थी, कर डाली यूपी की ब्यूरोक्रेसी ने : तीस लाख का हार किधर गया, अब तक पता नहीं : मुख्य सचिव की ख्वाहिश थी कि हार न मिले तो उसका मुआवजा अदा करें पुलिसवाले : किसी माफिया की रोंगटे खड़ा कर देने जैसी कहानी रही है मुख्य सचिव के घर हुआ काण्ड : देख लो, बड़े बाबुओं की करतूतें- 35 :

कुमार सौवीर

लखनऊ : कोई अंडरवर्ल्ड माफिया भी ऐसी शातिर चालें नहीं चल सकता, जितनी यूपी की ब्यूरोक्रेसी के मुखिया के घर पिछले दिनों हुए बेशकीमती हार की चोरी का काण्ड को लेकर हुईं। दो निर्दोष युवकों को मार-मार कर उनका भूसा निकाल कर दिया गया। एक से लेकर दूसरे थाने तक इन दोनों से पूछताछ हुई। अनवरत और अमानवीय मार-पिटाई की गयी। इतना प्रताडि़त किया गया कि इनमें से एक युवक ने आत्महत्या तक करने की असफल कोशिश तक कर दी। लेकिन इसके बावजूद यूपी की संवेदनशील नौकरशाही टस से मस तक नहीं हुई।

यह मामला है यूपी के मुख्य सचिव आलोक रंजन के घर हुई एक चोरी का। इसमें आलोक रंजन की बहू को तोहफे के तौर पर एक बेशकीमती हीरों का नेकलेस-सेट मिला था। लेकिन यह मत पूछियेगा कि यह नेकलेस किसने मुख्य सचिव को दिया और क्योंक मुख्ये सचिव आलोक रंजन ने कानून-कायदों को धता बताते हुए वह तोहफा कुबूल भी कर लिया। मुख्यसचिव समेत सब सरकारी अफसर खूब जानते हैं कि किसी भी शासकीय व्यकक्ति को अगर पांच हजार रूपया मूल्या का कोई तोहफा दिया जाता है तो उसकी तत्काल सूचना सरकार को दिया जाना अनिवार्य होता है।

बहरहाल, मुख्य सचिव आलोक रंजन इस मामले में किसी भी कीमत पर उस हार की बरामदगी चाहते थे, जबकि लखनऊ के बड़े दारोगा यानी वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक राजेश पाण्डेय इस पूरे दौरान सिर्फ यही कवायद करते रहे कि कैसे भी हो, मुख्यसचिव का कोप शांत किया जाए। यूपी के प्रशासनिक मुखिया होने के चलते आलोक रंजन को खूब पता था कि उनके दो घरेलू नौकरों को अवैध अनाधिकृत रूप से बिना न्यायपालिका को सूचना दिये बिना हिरासत में रखना जघन्य अपराध होता है, लेकिन उन्होंने उन दोनों को जबरियन पुलिस हिरासत में रखने का आदेश दिया।

उधर लखनऊ के बड़े दारोगा यानी वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक राजेश पाण्डेय को खूब पता था कि वह कानून के रखवाले हैं, इसलिए इस तरह किसी को भी लगातार दो महीनों तक हिरासत में रखना उनकी नौकरी पर खतरा बन सकता है। लेकिन अपनी छवि एनकाउंटर-स्पेशलिस्ट के तौर पर अनेक तमगे टांगे राजेश पाण्डेय ने इस गैर-कानूनी हिरासत पर अपना न केवल अपना मुंह बंद रखा, बल्कि इस बात की भी पुख्ता व्यवस्था में जुटे रहे कि कैसे भी हो, उन दोनों युवकों को एक से दूसरे थानों तक लगातार बंद रखा जाए, उन्हें प्रताडि़त किया जाए और लगातार उनकी इतनी पिटाई कर दी जाए कि वह आजिज होकर अपनी आत्महत्या तक पर आमादा हो जाए।

हालांकि यह मामला छिप नहीं पाया। इस अवैध हिरासत और अमानवीय पिटाई का मामला कुछ बड़े अफसरों के कान तक पहुंचा तो उन्होंने आनन-फानन उन दोनों नौकरों की रिहाई करा दी। लेकिन इसके बावजूद बात नहीं बन पायी। बताते हैं कि इस रिहाई पर उन्होंने अपने अधीनस्थों  पर जम कर लताड़ा और कहा कि पुलिस को अपना काम किया जाना चाहिए। वरना इसका अंजाम बहुत बुरा होगा। मरता क्या न करता की शैली में पुलिस ने उन दोनों को फिर हिरासत में रखा और फिर नये सिरे से एक से दूसरे थानों तक उसकी हिरासत और पिटाई चलती शुरू हो गयी।

लेकिन इसके बावजूद फिर एक दिन उन युवकों को फिर रिहा किया गया तो फिर आलोक रंजन ने गुस्से में लाल-पीला होते हुए राजेश पाण्डेय के ही तबादला का आदेश जारी करा दिया। और इसके बाद ही इस बात का खुलासा हो पाया कि आलोक रंजन और उनकी पत्नी सुरभि रंजन ने उन युवकों के साथ क्या-क्या अमानवीय कृत्य किये। हालांकि अब राजेश पाण्डे‍य अपना मुंह लगातार सिले हुए हैं। (क्रमश)

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लो देख लो, बड़े बाबुओं की करतूतें

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