मुख्यसचिव के मामले में राज्यपाल व चीफ जस्टिस को भेजी चिट्ठी

मेरा कोना

: यह कैसे हो सकता है कि एक आला ब्‍यूरोक्रेट मानवता की हत्या करता रहे और बाकी लोग खामोश रहें : मानवाधिकार संगठन के अध्यक्ष, उप्र लोकायुक्त और थाना प्रभारी को भी मामला दर्ज करने के लिए मैंने भेजीं चिट्ठियां : कार्रवाई नहीं की गयी तो मैं दर्ज कराऊंगा सीधे मुकदमा : देख लो, बड़े बाबुओं की करतूतें- 38 :

कुमार सौवीर

लखनऊ : यूपी के मुख्य सचिव आलोक रंजन और उनकी पत्नी ने जितने भी जघन्य हरकतें कीं, वे अब सतह में आती जा रही हैं। बेशकीमती हीरों के नेकलेस-सेट की तथाकथित चोरी के मामले में जिस तरह दो सरकारी कर्मचारियों पर दो महीनों तक पुलिस द्वारा अमानुषिक अत्याचार किया गया, मैंने उसको लेकर अब सीधी हस्तक्षेप का फैसला किया है। शनिवार 21 मई-2016 को मैंने इस बारे में राज्यपाल को एक पत्र भेज कर इस मामले में हस्तक्षेप करने का अनुरोध किया है। मैंने राज्यपाल के अलावा उप्र के मानवाधिकार संगठन के अध्यक्ष, उप्र के लोकायुक्त और इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्यम न्यायाधीश को भी इस बारे में तफसील से पत्र भेजते हुए तत्काल मामले की गम्भीरता बतायी है और उस पर हस्त‍क्षेप की मांग की है।

इन पत्रों में मैंने बताया है कि किस तरह आलोक रंजन ने अपने पद का दुरूपयोग करके भ्रष्टाचार किया, मानवाधिकारों का उल्लंघन किया और पूरी नौकरशाही व पुलिस के आला अफसरों को बाध्य किया कि वे दो सरकारी कर्मचारियों पर झूठे आरोप लगा कर उन्हें लगातार दो महीनों तक गैर-कानूनी पुलिस-हिरासत में लिये रहें। किस तरह आलोक रंजन ने लगातार बारह बरसों तक नाफेड के कर्मचारी सुनील सिंह रावत को अपने घर पर निजी कामधाम के लिए रखे रखा, जबकि वे वह नाफेड के कर्मचारी भी नहीं थे। इसके अलावा आलोक रंजन ने राजेश चौधरी नामक एक कर्मचारी को अपने घर में लगा रखा था जो उप्र बीज निगम का कर्मचारी था और उसका वेतन का भुगतान उप्र बीज निगम ही करता था।

इसके अलावा आलोक रंजन ने अपने बेटे के विवाह का रिसेप्शन के लिए भव्य् आयोजन किया और उसमें करीब सात हजार बड़े हैसियतदार लोगों को आमंत्रित किया गया। इतना पैसा कैसे आया आलोक रंजन के पास? और फिर आये गये लोगों से तोहफे के नाम पर बेशकीमती चीजें हासिल की गयीं। बाद में इसी में से एक तोहफे को लेकर सुनील रावत और राजेश चौधरी को चोरी का झूठा आरोप लगाकर दो महीनों तक पुलिस से प्रताड़ना करायी गयी। जबकि आलोक रंजन ने इन तोहफों को न तो अपनी आय में दिखाया और न ही उसकी प्राप्ति की खबर राज्य सरकार को दिया। इतना ही नहीं, आलोक रंजन ने इस तोहफे की चोरी का मुकदमा दर्ज कराने के बजाय उन दोनों कर्मचारियों का इलीगल डिटेंशन करने के लिए पुलिस के अफसरों को बाध्य  किया। आलोक रंजन का यह कृत्य भ्रष्टाचार और कदाचार के साथ ही उनकी सारी सीमाओं को तोड़ देने की आपराधिक प्रवृत्तियों का परिचायक है और स्वा्भाविक है कि गम्भीर अपराध की श्रेणी में आता है। इसलिए उस पर तत्काल कार्रवाई की जानी चाहिए।

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