: जुल्फी-नौकरों के प्रशस्ति-गान के चक्कर में समाज निर्माताओं का नाम बिसार दिया : बस्ती में रामचंद्र शुक्ल की नाक काटी, जौनपुर में बच्ची से सामूहिक बलात्कार। जिला खामोश : जौनपुर के आईएएसों के गांव पर खूब भांड़-भंड़ैती करते हैं पत्रकार, लेकिन करूणा पर नहीं : सबसे घटिया रवैया तो पत्रकारों का है, सच को सच तक नहीं कहते : लो देख लो, बड़ाबाबू की करतूतें- 21 :
कुमार सौवीर
लखनऊ : कुछ साल पहले की बात है। मेरे अग्रजनुमा मित्र हुआ करते थे देवव्रत दीक्षित। तब वे जिलाधिकारी थे बस्ती में। अपने चाचा के काम से मैं उनसे मिलने गया, तो पाया कि उनके आवास के पास के गोल चक्कर में एक प्रतिमा वीभत्स दिख रही है। नाम पढ़ा:- आचार्य रामचंद्र शुक्ल। लेकिन इस प्रतिमा पर कालिख पोती हुई थी, और प्रतिमा की नाक काट ली गयी थी। कहने की जरूरत नहीं कि यह काम दलितों का था जो मांग रहे थे कि आचार्य शुक्ल की प्रतिमा के बजाय वहां आम्बेडकर की प्रतिमा लगनी चाहिए। प्रतिमा की यह नाक-कटाई पिछले करीब चार साल पहले हुई थी।
हिन्दी क्षेत्र में आचार्य रामचंद्र शुक्ल का नाम अग्रगण्य महानतम साहित्यकारों में से एक माना जाता है। वे बस्ती के ही रहने वाले थे। यह प्रतिमा वाला चौराहा अति व्यस्त माना जाता है। लेकिन एक ने भी इस प्रकरण पर कोई आवाज नहीं उठायी। सब के सब खामोश रहे, मानो सांप सूंघ गया हो। बस्ती को आईएएस जनने की खेती माना जाता है।
उधर जौनपुर में एक गांव है माधोपट्टी। उसे आईएएस की महानतम उपज-खेती के तौर पर यहां के पत्रकार पेश करते हैं। मानो जौनपुर की असली उपलब्धि केवल यही है, नौकर जनना। बात-बात पर डींगे मारी जाती हैं कि यह ऐसा अफसर पैदा हुआ, वैसा अफसर पैदा हुआ। नतीजा यह हुआ कि यहां के लोग अफसरों के सामने शरणागत हो गये। अफसर के सामने आने से पहले ही उसकी ड्योढ़ी पर सिर-माथा टिकाना और अफसर के सामने साष्टांग कर उसका चरणामृत लेना अब जौनपुर की खासियत बनती जा रही है। जाहिर है कि जब चापलूसी का चकाचौंध माहौल बना दिया हो यहां के पत्रकारों ने तो ऐसे में करूणा का कोई स्थान तक नहीं। नौकरों के चरण-चुम्बन की फसल लहलहा रही है, जबकि करूणा के खेत बंजर।
अब देखिये। 17 फरवरी-16 की रात करीब साढ़े दस बजे एक किशोरी बेहोशी हालत में मिली। उसे अस्पताल ले जाया गया तो वहां मौजूद नर्सों को जांच के बाद पता चला कि उस बच्ची के साथ सामूहिक दुराचार हुआ है। पुलिस ने सूचना मिलने के बावजूद उस पर कोई कार्रवाई नहीं की। लखनऊ से जब इस मामले पर हल्ला मचा तो उस बच्ची को बनारस में पागलखाने भेजने की साजिश कर दी गयी। लेकिन वहां के डॉक्टरों ने इस साजिश में शामिल होने से इनकार कर दिया और बोले कि उसे अदालत के आदेश से ही यहां लाया जाए। यह देखते ही जौनपुर के जुल्फीे-प्रशासन के होश-फाख्ता हो गये। दो दिन फिर साजिशें बुनी जाती रहीं, और उसके बाद उस बच्ची को नारी निकेतन भेज दिया गया।
इतना ही नहीं, सरकारी प्रताड़ना से त्रस्त होकर जब एक ग्रामीण ने जौनपुर के जिलाधिकारी भानुचंद्र गोस्वामी से शिकायत की, तो इस डीएम ने उस ग्रामीण से कहा कि:- अभी दो जूते मारूंगाा, तो दिमाग दुरूस्त हो जाएगा।
मगर जौनपुर के एक भी पत्रकार या समाजसेवी ने इस मामले पर हस्तक्षेप नहीं किया। वजह यह है कि अगर वे ऐसा करते और इस बच्ची पर आवाज उठाते तो उन्हें डीएम-एसपी की कृपा से वंचित होना पड़ता। और ऐसा खतरा उठाने के लिए वे लोग कत्तई तैयार नहीं थे। आज भी नहीं। एक जिलाधिकारी एक ग्रामीण को जूते मार कर दिमाग दुरूस्त करने की धमकी दे रहा है और जौनपुर के पत्रकार खामोश हैं। उल्टे बता रहे हैं कि वह आदमी ही अभद्र है। मतलब यह कि फैसला अब पत्रकार करेंगे, डीएम के पक्ष में। उन्हे यह खबर नहीं महसूस होती है कि एक अफसर किसी ग्रामीण को जूते मारने की औकात तक पहुंच चुका है।
इतना नहीं, छत्तीेसगढ़ में एक ट्रेनी अफसर ने एक कुपोषित बच्चे और उसकी मां के बिस्तर पर अपना जूता सहित पैर टिका दे दिया, तो हंगामा मचा। लेकिन जौनपुर के पत्रकार अब भानुचंद्र गोस्वामी को संवेदनशील साबित कर रहे हैं। यह दिखा कर कि कुपोषित महिला को भोजन करते वक्ते उन्होंने मुआयना किया। इन पत्रकारों को यह नहीं दिखता है कि इसी जिलाधिकारी ने एक ग्रामीण को जूता मारने की आपराधिक हिमाकत की थी। यह नहीं दिखता है कि एक बलात्कार पीडि़त बच्ची को पागलखाने भेजने की साजिश की थी इसी जिलाधिकारी ने। और अब सद्य-स्तनपायी आईएएस के जन्म पर थाली-लोटा बजा रहा है हमारा समाज।
तो अब शर्म किसे आनी चाहिए दोस्त? (क्रमश)
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