: बिहार में झांकिये शशि शेखर जी, बलूचिस्तान में आपका कोई काम नहीं : अब तो समूह-सम्पादक जैसे बड़े पत्रकार भी पत्रकारिता की दुर्गति-परम्परा के महान खेवइया बन चुके : जेल से ज्यादा बदतर और ज्वलंत प्रश्न आपके दिमाग में क्यों नहीं घुमड़ा :
कुमार सौवीर
लखनऊ : बिहार की जेलें सिर्फ बेगुनाहों की मौत के लिए कालापानी बन चुकी हैं। यहां एकाध हजार या लाख नहीं, करोड़ों में निर्दोष गरीब नागरक अपनी मौत से भी ज्यादा बदतर हो चुकी जिन्दगी पर आंसू बहाते हुए किसी गन्दी नाली की तरह बिलबिला रहे हैं। बिहार सरकार ने अब तक आम बिहारियों की इस तबाही पर कोई भी नजर नहीं डाली है। ऐसी हालत में उनकी इस दुर्दति पर केवल अगर कुछ कह-सुन सकता है तो वह है न्यायपालिका और पत्रकारिता। लेकिेन स्वनामधन्य महान पत्रकारों को इसकी तनिक भी फिक्र नहीं। वे केवल उन सवालों को उठाते हैं जो या तो मूर्खतापूर्ण होते हैं, या फिर जहां उन्हें निजी लाभ की गुंजाइश दिखती है। दैनिक हिन्दुस्तान के समूह सम्पादक शशि शेखर इसी दुर्गति-परम्परा के पोषकों में से हैं।
शशि शेखर ने रविशंकर प्रसाद का एक बड़ा इंटरव्यू लिया है। यह इंटरव्यू हिन्दुस्तान दैनिक के सम्पादकीय पृष्ठ पर छपा है। इसमें दुनिया भर के सवाल तो उठा लिये हैं शशि शेखर ने, मसलन पाकिस्तान, बलूचिस्तान, आतंकवाद आदि मसले जिनका धेला भर लेना-देना रविशंकर प्रसाद के विभागों से नहीं है। कुल 16 सवालों से हुए इस बातचीत में 9 सवाल तो वाकई इसी स्तर के हैं, जिन पर शशि शेखर की बुद्धि पर तरस किया जा सकता है। उसमें कहीं भी ऐसा नहीं लगता कि यह इंटरव्यू देश के एक बड़े हिन्दी दैनिक के समूह सम्पादक ने अपने राजनीतिक सम्पादक के साथ लिया है।
दरअसल रविशंकर प्रसाद कानून और सूचना तकनालाजी विभाग के मंत्री हैं, ऐसे में उनसे सबसे पहले तो उन विभागों से जुड़े सवाल ही पूछे जाने चाहिए थे। लेकिन चूंकि इस इंटरव्यू का मकसद तो किन्हीं दीगर मकसद से लिया गया था, इसलिए उन मूल प्रश्नों को अनुपस्थित कर दिया गया। हालांकि कई पाठकों मेरी बिटिया डॉट कॉम को बताया कि बताया कि शशि शेखर ने इस इंटरव्यू में अन्यथा लाभों को साधने की रणनीति बुनी थी। आपको बता दें कि बिहार की जेलों का यह मामला कोई छोटा-मोटा नहीं है। रविशंकर प्रसाद इसी प्रदेश से हैं और हिन्दुस्तान अखबार खुद को बिहारियों का सच्चा हितैषी दिखाने की भरपूर कोशिशें में जुटा रहता है।
लेकिन शशि शेखर ने बिहार की बदहाली पर एक बार भी कोशिश नहीं की।
रविशंकर प्रसाद तो कानून मंत्री हैं, ऐसे में क्या उनसे यह नहीं पूछना चाहिए कि आखिर क्या वजह है कि बिहार की अधीनस्थ न्यायालयों में सिविल मुकदमों की तादात 2,72,75,963 है, जबकि अपराध प्रवृत्ति के मुकदमों की तादात 1,95,59,007 तक उछली हुई है। मतलब यह कि क्रिमिनल के मुकाबले 76,16,881 सिविल के मुकदमे ज्यादा हैं।
अब जरा इसका दूसरा पहलू देखिये तो आपकी आंखें चौंधियाय जाएंगी। अधीनस्थ कोर्ट से होईकोर्ट पहुंचने के बाद सिविल और क्रिमिनल के मुकदमों की तादात पर गौर कीजिए। हाईकोर्ट में क्रिमिनल के 8,25,691 मुकदमे हैं, जबकि सिविल के 32,37,058 मुकदमे हैं। यानी सिविल के मुकदमे की संख्या के सिर्फ एक-चौथाई मामले क्रिमिनल के हैं। जाहिर है कि यह हालत बिहार में प्रशासन और पुलिस की कारस्तानी की गवाही देती है, जहां केवल 9.3 फीसदी लोगों को ही सजा होती है, बाकी सब बेगुनाह साबित होते हैं। जबकि इसके ठीक उलट केरल में 87 प्रतिशत मामलों में सजा हो जाती है।
सवाल तो उठाना चाहिए था कि अब तक पूरे देश में एक-समान जेल मैनुअल क्यों नहीं लागू किया जा सका है, अधिकांश जेलें अपनी क्षमता से दस गुना तक ज्यादा भरी हुई हैं, क्यों तीन साल बाद कैदियों की चाल-चलन की समीक्षा कर उन्हें समाज से जोड़ने की प्रक्रिया नहीं शुरू की जा सकी है। क्या शशि शेखर का यह दायित्व नहीं था कि वे रविशंकर प्रसाद से ऐसे सवाल पूछते। उन्हें तो यह भी पूछना चाहिए कि देश और प्रदेशों में ऐसे कानून आज भी मौजूद हैं, जिनका कोई औचित्य नहीं है। मसलन, , सार्वजनिक स्थल पर धूम्रपान, प्लॉस्टिक-पॉलिथिन थैलियों का प्रचलन, वगैरह-वगैरह।
क्या हिन्दुस्तान के समूह सम्पादक की जिम्मेदारी नहीं थी कि वह एक कानून मंत्री से बातचीत करते वक्त ऐसे अहम सवाल पूछे, न कि ऐसे सवाल जिनका उस मंत्री से कोई लेना-देना तक नहीं। अब अगर ऐसी हालत में कुछ पत्रकारगण शशि शेखर के इस इंटरव्यू को लेकर धंधागिरी जैसे जुमले सवाल उठा रहे हैं, तो फिर हर्ज क्या है।
लेकिन असली सवाल अभी बाकी है। उसे पढ़ने के लिए कृपया निम्न लिंक पर क्लिक कीजिए :- दैनिक हिन्दुस्तान जी! राम नाम सत्त है