पत्रकार: नहीं, यह चौथे स्‍तम्‍भ के दरकन का इशारा नहीं

मेरा कोना

: मगर सवाल यह है कि अपनी भुखमरी पर विधवा-विलाप करने वाले लोग कैसे बड़े होटलों में पार्टियां आयोजित कर रहे : ऐसी हरकतें केवल उन्‍हीं चंद लोगों की हैं, जिन्‍हें पत्रकारिता से धेला भर कोई भी लेना-देना नहीं : यह लोग संवाददाता समिति पर काबिज हो कुत्सित धंधा की साजिश में हैं :

कुमार सौवीर

लखनऊ : नहीं, यह दु:खद जरूर है, मगर इसे लोकतंत्र के चौथे खम्‍भे के दरकने का संकेत या लक्षण हर्गिज नहीं माना जा सकता। वजह यह कि आम पत्रकार का जीवन केवल पढ़ने-लिखने, सोचने, बहस-विमर्श करने और लेखन का होता है, लेकिन इसके बावजूद शक की सुइयां आम आदमी के दिल-दिमाग तक ज्‍यादा गहरे तक चुभनी लगी हैं। ऐसे-ऐसे सवाल उठने लगे हैं कि अपनी भुखमरी पर विधवा-विलाप करने वाले पत्रकार-बिरादरी से जुड़े लोग कैसे बड़े होटलों में पार्टियां आयोजित कर रहे हैं, और यह भी उनके अपने ऐसे बाजारू व्‍यवहार का मकसद क्‍या है।

लगातार खबरें सामने आ रही हैं कि बड़े होटलों में आयोजित नियमित पार्टियों में जाम लड़ाये जा रहे हैं, नोंची जा रही हैं हड्डियों से बोटियां। नोटों के बंडल खुल-उड़ रहे हैं। पैसों की कोई दिक्‍कत ही नहीं, मुम्‍बई और प्रतापगढ़ तक से खेप पहुचायी जा रही है। एक ने तो एक गड्डी सिर्फ इस काम पर फेंक दी है कि जिसके पास सदस्‍यता का पैसा न हो, उसकी मेंबरशिप जमा कर दी जाए।

जाहिर है कि यह हरकतें पत्रकारिता में लगातार तेज अपनी जड़ें जमा रही बनियागिरी वाले दिमाग से धंधेबाजों की ही करतूतें हैं। कहने की जरूरत नहीं कि ऐसी हरकतें केवल उन्‍हीं चंद लोगों की हैं, जिन्‍हें पत्रकारिता से धेला भर कोई भी लेना-देना नहीं है। ऐसे चंद लोग उप्र राज्‍य मुख्‍यालय मान्‍यताप्राप्‍त संवाददाता समिति पर काबिज हो कर पत्रकारों के नाम पर अपना कुत्सित धंधा करना चाहते हैं।

फिर भी, चाहे कुछ भी हो, इस चुनाव में साबित हो जाएगा कि आज भी पत्रकारों में जमीर है, अन्‍तरात्‍मा है, दिल है, जिगर है, आवाज है, कहने और करने का माद्दा है, सोचने और कहने की औकात है।

और सबसे बड़ी बात यह कि हमारे पत्रकार साथियों में सच को कुबूलने का जज्‍बा और हैसियत है, और खूब है। वरना ऐसी हरकतों के खिलाफ मुख्‍यमंत्री सचिवालय के एनेक्‍सी भवन स्थित मीडिया सेंटर में पत्रकारों के बीच खासा गुस्‍सा न होता।

हां, अब पत्रकारों को इतना तो फैसला करना ही पड़ेगा कि ऐसे तथाकथित पत्रकारों को पहचान कर उन्‍हें सार्वजनिक तौर पर सबके सामने पेश कर दिया जाए।

दोस्‍तों ! चाहे कुछ भी हो जाए, मगर किसी भी कीमत पर सच को आंच नहीं लगनी चाहिए।

इसके पहले कि बाहरी लोग इस बारे में हमारी लानत-मलामत करना शुरू कर दें, हमें अपने गिरहबान में झांकना शुरू कर देना चाहिए।

लेकिन ध्‍यान रखियेगा। अगर हमने इस मामले पर खुद हस्‍तक्षेप नहीं किया, तो फिर बाध्‍य होकर जनता ही सीधे हस्‍तक्षेप कर देगी। और जाहिर है कि तब हमारे पास कुछ बोलने-कहने का कोई न तो कोई आधार होगा, और न ही क्षमता।

निवेदक:-

कुमार सौवीर

सचिव पद के लिए प्रत्‍याशी

उप्र राज्‍य मुख्‍यालय मान्‍यताप्राप्‍त संवाददाता समिति

लखनऊ

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *