: बिटिया के जन्म पर हिजड़ों ने बाजी लगायी, झूम कर नाचे और थिरके भी : नेग में सिर्फ एक रुपया लिया। वह भी बिटिया पर न्यौछावर कर दिया : उसके बाद से ही इन हिजड़ों की टोली हमारे घर नहीं आयी :
कुमार सौवीर
लखनऊ : यह बात 12 मार्च-89 की है। अलीगंज के सरकारी प्रसूति गृह यानी मैटरनिटी हॉस्पिटल में मेरे पहले बच्चे का जन्म होने वाला था। पत्नी लेबर-रूम में ले जायी गयी थीं। उस वक्त मुझ पर थोड़ी घबराहट और खुशी का मिलाजुला असर था, जिसने मुझे बेचैन कर रखा था। मैं इधर-उधर गलियारे में चहलकदमी कर रहा था। पूरा अधिकांश अस्पताल खाली था। सरकारी बच्चा-जच्चा अस्पताल को वैसे भी घोड़ा या जानवरों का हस्पताल माना जाता है। बस दो-चार महिलाएं जरूर थीं, जो प्रसव के लिए भर्ती थीं। जाहिर है कि वे खासे निर्धन परिवार की थीं। उनके पास तो देखभाल करने वाली महिलाएं और पुरुष भी मौजूद थे, जबकि मैं तो अपनी पत्नी के साथ अकेला था। कोई यकीन नहीं मानेगा, लेकिन ऐसा ही था कि दैनिक जागरण जैसे अखबार में वरिष्ठ संवाददाता के पद पर कार्यरत अपनी पत्नी की प्रसूति के लिए सरकारी अस्पताल में भर्ती कराने खुशी-खुशी ले गया था। मुझे पता था कि निजी नर्सिंग होम्स में डिलीवरी कराना एक खासा खर्चीला काम होगा। कुछ मित्रों ने मुझे सलाह भी दी थी कि मैं ऐसे नर्सिंग होम में होने वाले खर्चे की चिन्ता छोड़ दूं, लेकिन मैंने इस सलाह को दो-टूक खारिज कर दिया। वजह यह कि ऐसा अहसान या सहयोग भी तो मुझे बेईमान बनाने की शुरुआत का पहला पायदान बन सकता है।
अचानक दोपहर लेबर-रूम का बड़ा दरवाजा चिरचिराते हुए खुला। देखा कि एक नर्स तौलिया में कुछ लपेटे हुए मेरी ओर देखते पत्नी के बिस्तर की तरफ बढ़ रही थी। मैं लपका। नर्स के पास पहुंचा। तब तक नर्स ने बेड से सटे लोहे के झूले पर पूरी सावधानी के साथ वह तौलिया रख दिया। जिज्ञासाओं का बवंडर उमड़ता जा रहा है, मुझसे बर्दाश्त नहीं हुआ। मैंने ही लिया:- यह किसका बच्चा है?
अनमनस्क-सी नर्स बोली:- तुम्हारा।
क्या हुआ? बेटी है या बेटा?
तब तक पत्नी को लिटाये स्ट्रेचर पर घसीटते हुए दो आया भी आ गयीं। मेरे सवाल का जवाब नर्स ने सपाट और बेहद सर्द-ठण्डे शब्दों में जवाब दे दिया:- अरे सब भगवान की ही लीला है। परेशान मत होइये। लछमी भेजी है आपको भगवान ने। उसमें हम क्या कर सकते हैं? जो भी भगवान ने दिया, ठीक ही दिया होगा।
यह कहते हुए वह नर्स तौलिया को झूले के साथ ही साथ बिस्तर को भी सम्भालने लगी।
मैं भौंचक्का रह गया। जो घटना मेरे जीवन के लिए सबसे बड़ी खुशी की बात है, उसको कितने नैराश्य भाव में कह दिया इस नर्स ने, मुझे यकीन ही नहीं आया। मेरी समझ में ही नहीं आ रहा था कि उस वक्त मुझे किस तरह का व्यवहार करना चाहिए। मैं लपक कर उसके पास गया, और उसके कंधे झिंझोड़ते हुए कहा:- किसने कहा कि मैं परेशान हूं। अरे मैं तो सबसे बड़ा सौभाग्यशाली हूं यार। यह कहते ही मैंने तौलिया में कुनमुनाते बच्चे को देखा। आसपास बिस्तरों पर भर्ती मरीजों के साथ देखभाल करने मौजूद महिलाओं ने भी आसपास घेरा सा बना लिया।
मैं किंकर्तव्यविमूढ। बिस्तर से थोड़ी दूरी बना ली। तब तक कालोनी में रहने वाले पत्रकार रामसागर जी की पत्नी भी देखभाल के लिए पहुंच गयीं। रामसागर जी तब अमृत प्रभात में समाचार संपादक थे और तीन मकान छोड़ कर ही उनका घर था। बहरहाल, एक ओर वे सारी महिलाएं, और फिर रामसागर जी की पत्नी समेत सब की सब आपस में ही काफी व्यस्त हो गयीं।
मेरी बिटिया उसी दिन दोपहर एक बजे कर चालीस मिनट पर पैदा हुई थी। मेरे परिवार में करीब 36 बरस बाद बिटिया का जन्म हुआ था उस दिन। जाहिर है कि खुशी से मैं झूम रहा था। लेकिन इस मौके पर मुझे क्या करना चाहिए, समझ में ही नहीं आ रहा था।
मैं कमरे से बाहर निकला। अस्पताल के बाहर आकर एक सिगरेट सुलगायी। मन किया कि धुएं का छल्ला बनाऊं। कोशिश की, लेकिन छल्ले बिखरने लगे। मैंने फिर कई जोरदार और लम्बे-लम्बे कश खींच कर सिगरेट को अंत तक पहुंचा दिया। अपनी जेब को टटोला, उस वक्त 185 रुपये और कुछ रेजगारी खनखना रही थी। स्कूटर पर हवा की तरह निकला और सीधे मिठाई की दूकान पर पहुंचा। एक किलो मोतीचूर का लड्डू खरीद डाला। लेकिन पहली मिठाई तो उस नर्स को अपने हाथों से खिलाया। फिर जो भी पैसा बचा था, जेब से निकाल कर उस नर्स के हाथ में थमा दिया। वह भी भौंचक्की रह गयी। उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि बेटी जैसे भार के जन्म पर कोई कैसे खुशी मना सकता है।
बहरहाल, तीन दिनों बाद हमारी बिटिया के साथ हमारी सारी खुशियां मेरे घर वापस लौट आयीं। मित्रों को भी खबर मिल चुकी थी। ससुराल से सास वगैरह भी पहुंच गयी थीं। जाहिर है कि घर में भीड़-भड़क्का और चहलकदमी तेज हो गयी। (क्रमश:)
हिजड़ों की जिन्दगी खासी दिलचस्प होती है। इस मसले पर कुमार सौवीर की रिपोर्ट्स को अगर पढ़ना चाहें, तो कृपया निम्न लिंक पर क्लिक कीजिएगा:-
“उनसे सावधान, जहां ब्रह्मचारी पुरूष तय करें कि क्या होता है अच्छा सहवास”
फखरे का नाम सुनते ही हिजड़ा फफक कर रो पड़ा