संविदाकर्मियों को लौंडी-चेरी समझते हैं योगी-अफसर

दोलत्ती

: एक साल से वेतन नहीं, भुखमरी की नौबत है महिला हेल्‍पलाइन में : आत्‍महत्‍या के बाद जागे अफसर, 181 हेल्‍पलाइन को वेतन मिला : पुलिस किलर-मोड :

कुमार सौवीर

लखनऊ :
कार खराब हो, या पेट्रोल खत्‍म हो गया हो, या फिर ड्राइवर न आया हो, या फिर मेमसाहब को कहीं शॉपिंग या किटी-पार्टी में जाना हो, या फिर बच्‍चों को किसी अपने मित्र के हैप्‍पी बर्थडे पार्टी में शामिल होना हो, तो साहब या तो अपना कामधाम छोड़ देंगे, या फिर किसी दूसरे की गाड़ी बुलवा लेंगे। साहब सब कुछ छोड़ कर सकते हैं, लेकिन लंच के लिए नियम से घर की ओर रवाना हो जाते हैं, उसके बाद डेढ़ घंटा तक अनिवार्य विश्राम। शाम अपने दोस्‍तों के साथ ड्रिंक्‍स के लिए पहुंचने में भी बहुत पाबंद होते हैं योगी के अफसर।
इतना ही नहीं, अपने अदने से कर्मचारी को उसकी छोटी-छोटी बात पर भी सरेआम बेइज्‍जत कर देते हैं योगी के अफसर। सस्‍पेंड कर देते हैं, लाइन हाजिर कर देते हैं और बेदर्दी का आलम यह है कि सरकार में बैठे अपने आकाओं की नाक बचाने के लिए किसी का भी सिर कलम कर देने में तनिक भी नहीं संकोच नहीं करते हैं यह योगी के अफसर। किसी भी काम को टालना उनकी आदत है, और किसी भी काम के लिए रिश्‍वत वसूल लेना उनका जन्‍मसिद्ध अधिकार होता है। बिना घूस वसूले वे कोई भी फाइल आगे नहीं बढ़ाते।
गोरखपुर के मेडिकल कॉलेज में मासूम बच्‍चों की दर्दनाक मौत की वजह वहां ऑक्‍सीजन नहीं मिल पाना ही नहीं था, बल्कि असल वजह तो थी ऑक्‍सीजन सिलेंडर के भुगतान के लिए सचिवालय में लटकी हुई फाइल, जो बिना घूस के फाइनल ही नहीं हो पा रही थी। लेकिन मासूम तड़प-तड़प कर मरते रहे, मगर जिम्‍मेदार अफसरों ने येन-केन-प्रकारेण अपनी मोटी चमड़ी बचा ली। किसी भी जिम्‍मेदार अफसर पर कोई भी कार्रवाई नहीं हुई, सिवाय उसके डॉ कफील के, जिसे अब तक जेल में बंद रखा गया है।
बेईमानी, काहिली, झूठ, आराम-तलबी, हरामखोरी, घूसखोरी तो इन अफसरों की रग-रग में दौड़ रहा है। लखनऊ के सीएमओ को तो इसी बात पर हटा दिया गया है कि वह काम ही नहीं करता था। बीएचयू अस्‍पताल में कोरोना पीडि़तों के लिए कोई जगह ही नहीं बची। लखनऊ में लाशें उठाने वाला कोई नहीं। बदहाली यह कि लाशें पैक करने वाली मेडिकल कालेज का पैकेट फौरन फट जाता है, जबकि पीजीआई वाला पैकेट बहुत मजबूत है। ललितपुर के कोविड-अस्‍पताल में तीन दिनों तक पानी की आपूर्ति नहीं हुई, बाहर ताला लटका था, और अस्‍पताल के बाहर पुलिस। बारिश का पानी ही प्‍यास बुझाने का जरिया बना रहा है।
बरेली के कोविड अस्‍पताल की छत से झरझर झरना बहता रहता है। हरदोई का अधीक्षक तो अपनी एड्स-सलाहकार को रात में अपने बंगले पर बुलाता है। न आने पर वेतन भुगतान में अड़ंगे लगाता है। झूठे आरोप अलग से थोपे जाते हैं। जौनपुर का सीएमओ और उसके डिप्‍टी व एसीएमओ लोग जांच के नाम पर खुली उगाही करते हैं। पैसा न मिलने पर संविदा कर्मियों को नौकरी से निकाल देने पर खुली धमकी देते हैं। बेशर्मी के साथ मांगते हैं घूस। चाहे वह डीएम हो, कप्‍तान हो, सीडीओ हो, या फिर कोई दूसरा चिरकुट अफसर, कोई भी अफसर अपना फोन ही नहीं उठाता है। मरीजों के लिए मिलने वाला भोजन तो ऐसा मिलने लगा है, कि कुत्‍ते पर भी उस पर मुंह नहीं मारते। पुलिस की करतूतों का आलम यह है कि यूपी की पुलिस अब किलर-मोड में आ चुकी है। किसी खूंख्‍वार हत्‍यारे की भूमिका में। वजह है, सरकार का प्रश्रय।
कोई भी सरकारी अफसर आम जनता तो दूर, पत्रकारों तक के फोन तक नहीं उठाता है। लेकिन सच बात तो यह है कि यूपी के सारे के सारे अफसरों ने तो संकल्‍प और शपथ ही उठा ले रखी है कि वे चाहे कुछ भी हो जाए, फोन नहीं उठायेंगे। आप चख कर देख लीजिए। और खुदा न खास्‍ता, अगर कभी कोई फोन उठ भी जाए, तो लाइन पर वह अफसर नहीं, बल्कि या तो उसका अर्दली होगा, या फिर उसका पीआरओ अथवा रीडर या स्‍टेना।
सच बात तो यही है कि बिलकुल बेदर्दी बन चुकी है योगी सरकार में अफसरशाही की। पूरे प्रदेश में हाहाकार मचा हुआ है, लेकिन अफसरों के कान पर जूं तक नहीं रेंग रही है।

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