यह तय करने में 11 साल लगे कि दुराचारी गौरव मर्द था, बच्चा नहीं

ज़िंदगी ओ ज़िंदगी

: आशियाना सामूहिक दुराचार कांड, कानून के नाम पर खूब हुए नाटक : राजधानी लखनऊ को दहला दिया था पूरे प्रदेश और इंसानियत ने : अपराध, राजनीति, कानून और बाहुबलियों की बलि चढ़ी मासूम बच्ची :

कुमार सौवीर

लखनऊ : राजधानी के आशियाना क्षेत्र में 11 साल पहले हुए सामूहिक दुराचार के मामले में भले ही गौरव शुक्ला को अदालत ने दोषी ठहरा दिया हो, लेकिन हकीकत यह है कि यह जीत कानून या सरकार की कुर्सियों पर जमे लोगों की नहीं, बल्कि केवल उस पीडि़त बच्ची और उसके पिता की जिजीविषा की जीत है, उसने इस पूरे दौरान अदालती और सरकारी दांव-पेंचों के सामने घुटने नहीं टेके। लगातार हौसला बनाये रखा, अदालत में वकीलों की असहज और अपमानित कर देने वाले सवालों से जवाब दिया, और यह संकल्प बनाये ही रखा कि चाहे कुछ भी हो जाए, गौरव शुक्ला को जेल जाना ही पड़ेगा, ताकि कोई और दुखियारी बच्ची ऐसे दरिन्दों के शिकंजों में न फंस सके। हां, कुछ जन संगठनों ने इस मामले में पीडि़त बच्ची के साथ कदमताल जरूर किया। उसका हौसला बनाये रखा।

हैरत की बात है कि पूरे उप्र की राजधानी की एक पॉश कालोनी में एक गरीब नाबालिग बच्ची  का अपहरण छह युवकों ने किया और उसके बाद उसके साथ सामूहिक दुराचार किया। कालोनी के नागेश्वर मन्दिर के सामने यह हादसा हुआ। उस वक्त इस बच्ची के साथ उसका छोटा भाई भी मौजूद था। यह बच्ची कालोनी के घरों में झाडू-पोंछा लगा करके अपनी आजीविका करती थी। बच्ची इन दुराचारियों में एक गौरव शुक्ला भी था, जिसे पुलिस, नेता, वकीलों ओर धनपशुओं ने बरी कराने के लिए सारे घोड़े खोल दिये।

दो मई-2005 की शाम यह हादसा हुआ था। और उसके ठीक 12 दिन बाद ही यानी 18 मई-2005 को किशोर न्याय बोर्ड ने गौरव शुक्ला को एक मासूम बच्चा यानी नाबालिग लड़का साबित कर दिया था। इसके बाद चला कानून के नाम पर न्यायिक धाराओं की लीक-सड़क-चकरोड़ वाले दुराचारी उठापटक का दौर। इसमें अदालती कानूनची लोगों को तय करने में सात साल लग गये। हैरत की बात रही कि हाईकोर्ट तक को इसे समझने, समझाने में इतना वक्त लगा और आखिरकार उसने 25 जुलाई-12 को किशोर न्याय बोर्ड से कहा कि वह गौरव शुक्ला की उम्र का निर्धारण करे।

यही तक हो जाता तो भी ठीक था, लेकिन हाईकोर्ट के इस निर्देश के दो साल तक भी यह मामला किशोर न्याय बोर्ड में लटका रहा। तारीख पर तारीख पड़ती रही। तर्क दर तर्क दिये जाते रहे। और‍ आखिरकार उस हादसे के नौ साल बाद यानी 21 मार्च-14 को इसी किशोर न्याय बोर्ड ने ऐलान किया कि गौरव शुक्ला पूरी तरह बालिग है। बोर्ड ने तय कर दिया कि दुराचार के समय गौरव शुक्ल पूरी तरह मर्द था और वयस्क था।

आशियाना काण्‍ड और कुकर्मी-गौरव के षडयंत्रकारियों पर श्रंखला जारी है। लखनऊ राजधानी में 11 साल पहले हुए इस दर्दनाक हादसे का अगला अंक देखने के लिए प्रतीक्षा कीजिए:- सब को पता था कि गौरव है बालिग: बेखबर थी हाईकोर्ट, सरकार व वकील

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