फखरे का नाम सुनते ही हिजड़ा फफक कर रो पड़ा

दोलत्ती


: सिर्फ हिजड़ा नहीं, बल्कि एक दिव्‍य-व्‍यक्ति थे फखरे आलम : क्‍या कोई ऐसा शख्‍स है जिसकी मौत के 20 बरस बाद भी उसके साथी इस तरह याद करते हों :
कुमार सौवीर
लखनऊ : ( गतांक से आगे ) लेकिन फखरे आलम के घर अक्‍सर गाने-बजाने का ही कार्यक्रम चलता था। जिसमें हम लोग कभी भी शामिल नहीं हो पाये। फखरे आलम सिर्फ ढोल-हारमोनियम बजाते थे। नाचना या गाना उनका शौक नहीं था। वे हमेशा कमर लचकाते हुए चलते थे। हम लोग उनके पीठ-पीछे खुद ही लचक कर चलते और उनका स्‍वांग करते थे। यह तो फखरे को भी खूब पता था, लेकिन फखरे आलम हमेशा अपनी तालियां बजा कर ही आनंदित रहते थे।
तब भी, जब फखरे आलम की मौत के बाद पूरे शहर के हिजड़ों ने कई दिनों तक उनके यहां कुम्‍भ-मेला जैसा बनाये रखा। उस वक्‍त मैं शायद सात-आठ बरस का रहा होऊंगा।
आज सोचता हूं तो आंखें भींग जाती हैं, कि आखिर फखरे आलम की खता क्‍या थी? सिर्फ इतना ही जुर्म था फखरे का, कि वह हिजड़ों का नेता था, उसकी तूती चलती थी। उसके चलते किसी भी हिजड़े के साथ कोई अपराध नहीं हो सकता था। पुलिस कभी भी फखरे आलम के यहां नहीं गयी। वहां आने वाले सारे हिजड़े भी सभ्‍यता का प्रतीक हुआ करते थे। हालांकि आज खुद को हिजड़ों का नेता कहलाने वाला पायल हिजड़ा भी बहुत सहज और सौम्‍य दिखता है, लेकिन जो बात उस दौर के हिजड़ों में थी, वह तो दुर्लभ है। यही वजह है कि मेरे घर जब भी कोई खुशी का मौका आया, और उसमें हिजड़ों की टीम आयी, तो हमने उनसे हमेशा सरलता का व्‍यवहार किया। मेरी बड़ी बेटी के जन्‍म पर जब हिजड़ों की भीड़ धमक पड़ी तो मैं घबराया नहीं। बल्कि उनको मिठाई खिलाते वक्‍त यह भी बता दिया कि हमारे मोहल्‍ले में भी एक फखरे आलम चच्‍चा हुआ करते थे। और हैरत की बात रही कि मेरे ऐसा कहते ही उस टोली के कुछ हिजड़ों ने एकसुर में जवाब दिया:- अरे, वह हुसैनगंज वाले फखरे चच्‍चा ?
ढोलक बजाने वाला उनकी टीम का लीडर तो फखरे आलम का नाम सुन कर रो पड़ा। पूछा कि आप फखरे चच्‍चा को कैसे जानते हैं। मैंने तफसील के साथ उससे बातें कीं, और अपने बचपन की सारी गाथाएं सुना दीं। वह टीम-लीडर मुझे किसी विह्वल गोपिका की तरह अपने गाल पर हाथ टिकाये सुनता रहा, मानो मैं पत्रकार कुमार सौवीर नहीं, बल्कि कृष्‍ण का मित्र-संदेशवाहक साक्षात उद्धव ही हूं।
और आपको बताऊं कि उसके बाद से किसी भी हिजड़े ने मुझसे कभी भी कोई हुज्‍जत नहीं की। मैं उनके साथ नाचने भी लगा, और आज भी जब उनकी टोली का कोई सदस्‍य हमारे घर से होकर निकलता है, तो बिना हमारे घर में चाय-पानी के नहीं जाता। उस टीम-लीडर के जीवित होने तक हमारी बेटियों के बारे में आज भी वह सब हालचाल लिया करते थे। और तालियां पीट-पीट कर उन्‍हें खुश रहने का आशीर्वाद देते रहते थे।
काश हमारी दुनिया में फखरे आलम और उसके चेलों-चपाड़ों जैसे हिजड़ों का ही राज हो जाए। वजह यह कि फखरे आलम चच्‍चा आत्‍मीय थे, सरल थे, निष्‍पाप थे, सहयोगी प्रवृत्ति थी, बेधड़क थे, जुझारू प्रवृत्ति थी, और अपने लोगों के प्रति अगाध स्‍नेह और प्‍यार भी।
अब एक सवाल आप से भी, कि क्‍या आपको अपने आसपास, मोहल्‍ले, शहर, प्रदेश या देश में कोई ऐसा शख्‍स मिला है कभी, जिसे उसके साथी उसकी मौत के 20 बरस बाद भी इस तरह याद करते हों?
अगर नहीं, तो यकीन मान लीजिए कि फखरे आलम कोई सिर्फ हिजड़ा ही नहीं, बल्कि एक दिव्‍य-व्‍यक्ति थे। ( समाप्‍त )

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