एक नौकरशाह जुटा इस्‍लाम का छिद्रान्‍वेषण करने

मेरा कोना

: इस्लाम अपने बुनियादी रूप में अन्य धर्मों की तुलना में कहीं ज़्यादा सरल ,सुगम ,सादा और समता मूलक धर्म : राकेश मिश्र ने पहले ही साफ कर दिया कि ईश्वर या किसी रूप में दैवीयता ,देव दूत ,पैगंबर ,अवतार ,दैवी किताबों पर उन्‍हें तनिक भी यक़ीन नहीं : इस्लाम -एक :

राकेश कुमार मिश्र

लखनऊ : इस्लाम अपने बुनियादी रूप में अन्य धर्मों की तुलना में कहीं ज़्यादा सरल ,सुगम ,सादा और समता मूलक धर्म है ।

इस्लाम की अनिवार्य मान्यताएं सिर्फ़ निम्न हैं :

1 .कलमा -ला इलाहा इल अल्लाह ,मुहम्मदुर्रसूलल्लाह -यह विश्वास कि ईश्वर एक है ,उसके अलावे दूसरा कोई ईश्वर नहीं और मुहम्मद ईश्वर के संदेशवाहक हैं ।

2 .नमाज -ईश्वर की रोज़ाना ५ बार प्रार्थना ।

3 . ज़कात -आमदनी काराई फ़ीसद का दान ।

4 .रोजा – रमज़ान के महीने में दिन का उपवास ।

5 .हज -समर्थ होने पर मक्का की यात्रा ।

इस्लाम ईश्वर और मनुष्य के बीच किसी मध्यस्थ का प्राविधान नहीं करता है और न ही विस्तृत कर्मकांडों व पुरोहित तंत्र का प्राविधान करता है ।इस्लाम न ही ब्रह्मचर्य व घर बार छोडकर सन्यासी जीवन का आदर्श पेश करता है ।इस्लाम के मुताबिक़ मस्जिद सिर्फ़ इबादत के लिए मुस्लिम समुदाय के इकट्ठा होने की जगह है ,हिन्दू मन्दिरों या ईसाई गिरिजाघरों की तरह मस्जिद किसी दैवीयता का इज़हार करने वाले स्थान नहीं हैं और न ही स्रद्धालुओं से चढ़ावा प्राप्त करने के केन्द्र हैं ।

क़ुरान इस्लाम की पवित्र किताब है जो कि प्रत्येक मुस्लिम के मार्गदर्शन के लिए सुलभ है । यह क़तई ज़रूरी नहीं है कि कोई मुस्लिम क़ुरान समझने के लिए किसी दूसरे की व्याख्या का मोहताज हो ।

क़ुरान में मुस्लिम समुदाय के लिए धार्मिक राज्य स्थापित करने का कोई निर्देश नहीं है और न ही दार उल हर्ब (land of non Islamic faith ),दार उल इस्लाम (land of Islam )की कोई अवधारणा है । ग़ैर इस्लामी धर्म ,संस्कृतियों के मुल्कों पर हमला करने या ज़ोर ज़बर्दस्ती ग़ैर मुस्लिमों को इस्लाम क़बूल करने के लिए मजबूर करने के लिए भी कोई हिदायत नहीं दी गई है ।

इन अनिवार्य मान्यताओं ,अवधारणाओं और हिदायतों से साफ़ है कि बुनियादी इस्लाम धर्म व उसके मानने वालों के दूसरे धर्मों व उनके मानने वालों से टकराव की गुंजाइश न के बराबर है ।

इस्लाम के विनम्र विद्यार्थी के रूप में मैंने इस्लाम के बाबत अपनी राय व समझ पेश की है । मुमकिन है कि मेरी राय व समझ दोषपूर्ण हो । ऐसे विद्वान गैर मुस्लिम मित्र जो इस्लाम से नफ़रत के किसी पूर्वाग्रह से मुक्त हैं और विद्वान मुस्लिम मित्र मेरी समझ अगर दोषपूर्र्ण पाएँ तो ज़रूरी संदर्भों के साथ दुरुस्त कर दें ,ख़ुशी होगी ।

हाँ ,स्पष्ट करता हूँ कि ईश्वर या किसी रूप में दैवीयता ,देव दूत ,पैगंबर ,अवतार ,दैवी किताबों पर मेरा अपना कोई यक़ीन नहीं है । यह पोस्ट मैंने सिर्फ़ अकादमिक नुक्तेनजर से लिखी है । (क्रमश:)

राकेश कुमार मिश्र का यह कर्मकाण्‍ड नुमा यह लेखन लगातार क्रमश: और जारी है। इस की बाकी कडि़यां पढ़ने के लिए निम्‍न लिंक पर क्लिक कीजिएगा:-

बहस-ऑन-इस्‍लाम

( इलाहाबाद विश्‍वविद्यालय में विज्ञान विषय से पढ़े और प्रशासनिक सेवा में लम्‍बे समय तक लोक-प्रशासन में अपनी पहचान बनाने में सफल रहे हैं राकेश कुमार मिश्र। बेहद सरल, हंसमुख, और आडम्‍बरहीन भी। पीसीएस से आईएएस बनने के बाद वे यूपी के गृह सचिव पद से सेवानिवृत्‍त हुए। सतत अध्‍ययन करना, चर्चा करते रहना उनकी दिनचर्या में शामिल है। गजब चरित्र-गाथा प्रचलित है उनके बारे में। कभी कुछ लोग उन्‍हें संघी-भाजपाई बताते हैं, तो उनके कालेज के जूनियर-सीनियर लोग उन्‍हें वामपंथी कह कर आर्तनाद करते हैं। राकेश मिश्र फिलहाल इस्‍लाम को एक नये अंदाज में मगर रोचक अंदाज में पढ़ने-समझने और लिखने की कोशिश कर रहे हैं। जाहिर है कि यह उनका यह काम खासा खतरनाक भी है। )

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