एक ही कुर्सी पर दो चेहरे: एक डीएम सहयोगियों के पक्ष में, दूसरा बिफर पड़ा

सैड सांग

: साक्षी का तमगा टांगने वाले ने कर्तव्‍य-भाव दिखाने वाले को किनारे कर दिया : सवायदपुर की एसडीएम ने सरकारी तलाब और ग्राम-समाज की जमीन कब्‍जे से मुक्‍त की गयी : बस इतने में ही नाराज हो गयीं डीएम साहिबा :

कुमार सौवीर

लखनऊ : सरकार का हुक्‍म, मामला एक सा, ओहदे वाली कुर्सी एक समान, लेकिन अलग-अलग व्‍यवहार। एक मामले में एक डीएम ने अपने अधीनस्‍थों को बचाने के लिए अपनी कुर्सी दांव पर लगा दी, और सीधे अपने ही जिले में जुगाड़ टेक्‍नॉलॉजी से मंत्री बने नेता जी की नाराजगी मोल ले ली। जबकि ठीक दूसरे मामले में अपने अधीनस्‍थ ने जब ऐसी कार्रवाई शुरू की, तो उसे एसडीएम से हटा कर एक्‍स्‍ट्रा मैजिस्‍ट्रेट कर कर ढक्‍कन बना दिया गया।

यह दोनों ही मामले दो अलग-अलग जिलों के हैं। एक मामला है गाजीपुर का जो लखनऊ से करीब चार सौ किलोमीटर की दूरी पर है, जबकि दूसरा मामला है हरदोई का, जो लखनऊ से करीब 90 किलोमीटर दूर है। गाजीपुर में जब यह मामला सामने आया, उस वक्‍त यहां के जिलाधिकारी थे संजय कुमार खत्री। और दूसरा मामला हरदोई का है, जहां कलेक्‍टर की कुर्सी पर आज भी कायम हैं शुभ्रा सक्‍सेना।

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बड़ा बाबू

अब जरा पहला वह किस्‍सा सुन लीजिए, जो गाजीपुर में हुआ। हुआ यह कि यहां का कासिमाबाद थाना क्षेत्र में दबंगों ने सरकार की जमीन पर पिछले लम्‍बे समय से कब्‍जा कर रखा था। लेकिन इस अभियान के तहत पुलिस और तहसील प्रशासन ने इस जमीन को अतिक्रमण मुक्‍त कर दिया और उसे सरकार की जमीन के तौर पर अपना कब्‍जा कर लिया। इसी पर बवाल हो गया। इस अभियान का विरोध स्‍थानीय कुछ नेताओं ने किया, तोड़फोड़ की और अभियान दल के सरकारी कर्मचारियों को पीट दिया। इस पर प्रशासन ने इन बलवाइयों पर मुकदमा दर्ज कर लिया और उनकी पकड़ के लिए छापामारी करना शुरू कर दिया।

यही बात भासपा के ओमप्रकाश राजभर को खटक गयी। वजह यह कि उस जमीन पर जो शख्‍स काबिज था, वह राजभर का ही करीबी रिश्‍तेदार था और उनकी पार्टी का जिला अध्‍यक्ष भी। लेकिन मुकदमा दर्ज होने पर उस अध्‍यक्ष और मंत्री की सारी साख-प्रतिष्‍ठा ही पूरी तरह दक्खिन हो गयी। ऐसे में मंत्री राजभर ने उस मुकदमे को खारिज कराने की जुगत भिड़ानी शुरू कर दी। लेकिन जिलाधिकारी ने ऐसा करने से इनकार कर दिया। बताते हैं कि संजय खत्री ने साफ कह दिया कि अभियान के दौरन हुआ हमला यह प्रशासन और सरकार पर हमला है।

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लाटसाहब वाला गाजीपुर

खत्री के इस जवाब से ओमप्रकाश राजभर के हाथों से सारे तोते ही उड़ गये। इसके लिए उन्‍होंने पहले तो यह प्रचार करना शुरू कर दिया कि संजय खत्री केंद्रीय मंत्री मनोज सिन्‍हा का मुंहलगा है, इसलिए मनोज सिन्‍हा के साथ मिल कर योगी सरकार को झुकाने की साजिशें कर रहा है। इसके लिए उन्‍होंने अपनी सरकार के मुखिया से गुहार लगायी, लेकिन योगी ने टका सा जवाब दे दिया। हताश होकर उन्‍हें लगा कि अगर उन्‍होंने तत्‍काल कोई कार्रवाई नहीं की, तो उनकी हैसियत दो कौड़ी की हो जाएगी। ऐसे में उन्‍होंने धमकी दी कि अगर योगी सरकार ने इस डीएम को तत्‍काल जिले से नहीं हटाया तो वे योगी सरकार से इस्‍तीफा दे देंगे।

आपको बता दें कि ओम प्रकाश राजभर जहूराबाद सीट से भासपा के विधायक और पार्टी के अध्‍यक्ष है। इसके पहले उन्‍होने कांग्रेस, कौमी एकता दल आदि पार्टियों से गठबंधन कर दो बार विधानसभा और एक बार लोकसभा का चुनाव लडा, लेकिन सभी में बुरी तरह हारे। इस बार उनकी पार्टी ने आठ सीटों पर चुनाव लड़ा था जिसमें चार में वे बुरी तरह हारे।

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हद्दोई

हालांकि दो दिन पहले ही योगी सरकार ने संजय खत्री को गाजीपुर से हटा लिया, लेकिन इस हटाने का कारण ओमप्रकाश राजभर नहीं, बल्कि योगी सरकार की प्रक्रिया ही है। यानी जीत हुई संजय खत्री की, जिन्‍होंने अपने अधीनस्‍थों को बचाने के लिए हर चंद कोशिशें कीं। अपने पर खतरों के बावजूद।

अब यह किस्‍सा सुनिये हरदोई के सवायदपुर का। यहां की एसडीएम थीं वंदना त्रिवेदी। वंदना ने भी योगी सरकार के गठन के फौरन बाद अवैध कब्‍जों के खिलाफ धर्मयुद्ध छेड़ने का ऐलान पर तय किया था कि जो भी सरकारी जमीन अवैध कब्‍जों में है, उसे तत्‍काल मुक्‍त कराया जाए। प्‍लानिंग शुरू हो गयी कि कार्रवाई कैसे-कैसे करनी है, और कहां-कहां होनी है। वंदना ने जब यह अभियान शुरू किया, उस वक्‍त जिलाधिकारी शुभ्रा सक्‍सेना अपने भाई की शादी में जिले से कुछ दिनों के लिए बाहर थीं। पहले चरण के तहत वंदना त्रिवेदी पुलिस फाटे के साथ हरपाल पुर थाना स्थित इफनौरा गांव पहुंची और वहां एक विशाल तालाब और ग्राम समाज की जमीन पर बरसों से दबंगों द्वरा किये गये कब्‍जा को मुक्‍त कर सरकार के हाथ में दे दिया।

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शुभ्रा सक्‍सेना

इसी दौरान इस कार्रवाई की खबर पत्रकारों को मिल गयी, तो वे मौके पर पहुंचे। पूछताछ हुई तो वंदना ने पूरा ब्‍योरा दे दिया। अगले दिन खबरों की बाढ़ आ गयी। वंदना की फोटो समेत। पत्रकारों ने इस घटना को वंदना त्रिवेदी की बहादुरी के तौर पर पेश किया और अगले कुछ दिनों तक उनकी जयजयकार चलता रहा।

लेकिन इसी बीच जैसे ही शुभ्रा सक्‍सेना वापस हरदोई आयीं, तो उन्‍होंने यह खबर मिली। सूत्र बताते हैं कि इस बात पर शुभ्रा सक्‍सेना काफी भड़क गयीं। एक पत्रकार ने प्रमुख न्‍यूज पोर्टल मेरी बिटिया डॉट कॉम को बताया कि शुभ्रा सक्‍सेना को शिकायत यह थी कि वंदना त्रिवेदी ने इस खबर को लीक क्‍यों किया। इस तरह की खबर तो खुद डीएम को करनी चाहिए थी। एक अन्‍य पत्रकार का कहना है कि इस बात पर कलेक्‍टर बहुत नाराज थीं। एक सरकारी अधिकारी ने अपना नाम न बताने की शर्त पर बताया कि शुभ्रा सक्‍सेना ने सभी अधीनस्थ अफसरों से बहुत कड़े शब्‍दों में कह दिया कि आइंदा जिलाधिकारी के अलावा कोई भी अन्‍य अधिकारी सरकारी कार्रवाईयों पर प्रेस-ब्रीफिंग नहीं करेगा। उधर इसी बीच कलेक्‍टर ने वंदना त्रिवेदी को सवायदपुर के एसडीएम की कुर्सी से हटा कर उन्‍हें एक्‍स्‍ट्रा मैजिस्‍ट्रेट पर बिठा दिया।

हरदोई में तैनात रह चुके एक अधिकारी इस मामले में बहुत चुटीला कमेंट करते हैं। उन्‍होंने कहा कि:- किसने कहा था कि सरकारी जमीन वापस लाओ? सरकारी कामधाम सिर्फ इसीलिए सरकारी माना जाता है कि उसे केवल सरकारी अंदाज में ही निपटाना होता है। निपटाना मतलब, उसे टरकाया या टालू बनाया जाता है, ताकि न तो तुम पर कोई तोहमत आये, न कोई शिकायत करे, न कोई बवाल करे और फिर शांति-पूर्वक तुम अपना कार्यकाल निपटा कर दूसरी पोस्टिंग पर आगे सरक जाओ। आने वाला दूसरा शख्‍स भी इसी राग-टालू पर रियाज मारता रहेगा। न बांस होगी, और न ही राधा नाचेगी। लेकिन तुमने सब किया धरा चौपट कर दिया। अरे, तुमसे किसने कहा था कि काम करो, अब ढक्‍कन कर दी गयी हो। आ रहा है न, काम करने का असल मजा। है न यह ब्रह्म-सत्‍य माना जाता है सरकारी कामकाज में सरकारी अफसरों के बीच में। इसी के बल पर एक का बवाल एक के बाद दूसरे के हाथों से होता-गुजरता हुआ अपनी अनन्‍त यात्रा की ओर प्रस्‍थान होता रहता है। लेकिन हरदोई की एक एसडीएम ने इस नियम को तोड़ने की कोशिश की, तो उसे अब एक्‍स्‍ट्रा मैजिस्‍ट्रेट पद पर बिठा दिया गया।

बहरहाल, पूरे जिले में अब यह पूरी खबर चटखारों के साथ चखी जा रही है। अफवाहें और चर्चाओं का दौर उबल रहा है।

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