: किस्सा-एक, सरकारी अस्पताल गयी महिला को झांसा देकर अपने प्राइवेट अस्पताल ले गया था यह डॉक्टर : किस्सा-दो, इश्क में पाला बदलने में माहिर डॉक्टर ने बेरहमी से बेआबरू किया : युवती इमर्जेंसी होने पर बेहाल और तड़पते घायल बीमार-मरीजों को लेकर रात-बिरात जिला अस्पताल आया करती थी :
कुमार सौवीर
जौनपुर : बहुत कर्मठ हैं यहां के सरकारी डॉक्टर। काम ही काम, सिर्फ काम। काम के अलावा कुछ भी नहीं। काम-काम चिल्ला कर इनमें से कई डॉक्टर तो सीधे कामदेव ही बन चुके। प्रमाण चाहिए, तो इनके रेस्ट-रूम के बाथरूम में पधारिये। जहां आपको अक्सर यूज्ड-कण्डोम पड़ा मिल जाएगा। इतना काम करते हैं यह डॉक्टर, कि लगता है कि काम-सूत्र की सारी ऋचाएं-गाथाएं केवल इन्हीं को लेकर लिखी-बुनी और गायी गई हों। इनकी सम्पूर्ण बेशर्मी को लेकर।
यहीं के एक वरिष्ठ डॉक्टर ने अपना नाम न प्रकाशित करने के अनुरोध के साथ बताया कि पिछले कुछ महीनों से यहां के जिला अस्पताल इश्क में मशगूल हैं। इसके केंद्र में नायक है एक डॉक्टर साहब, जबकि नायिका में है सीएमसी के पद पर कार्यरत एक युवती। छोटी सी नौकरी है, शायद पांच हजार रूपया महीना भर तक ही। परिवार चलाने के लिए वह बेचारी युवती इमर्जेंसी होने पर बेहाल और तड़पते घायल बीमार-मरीजों को लेकर रात-बिरात जिला अस्पताल आया करती थी। उसकी इस सेवा के एवज में इस युवती को ईनाम-इकराम के तौर पर कुछ पैसे और मिल जाया करते हैं। गांव से शहर तक के बीच होने वाली इस दौड़भाग के बीच वह कुछ खरीददारी भी कर लिया करती है। घर का कामधाम चल रहा है, शादी नहीं हो पायी है, इसलिए कोई खास दिक्कत भी नहीं होती है।
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लेकिन इसी बीच इस युवती से यहां के एक सरकारी डॉक्टर कीआंख लड़ गयी। मोहब्बत की पींगें बढ़ने लगीं। मुलाकातें गहरी होने लगीं। फोन पर ज्यादा वक्त बीतने लगा इन दोनों के बीच। और इसी बीच अचानक यह दोनों ही लोग मोहब्बत की सारी सीमाएं तोड़ गये। फिर तो नंगई शुरू हो गयी। सरकारी कामधाम तो दक्खिन हो ही गया, मरीज भी किल्लाने-चिल्लाने लगे। लेकिन इन दोनों मस्त-मस्त प्रेमी-प्रेमिकाओं पर इस पर क्या फर्क पड़ता। मौज ही मौज चलने लगी इन दोनों प्यार के फकीरों के बीच।
इस सूत्र ने बताया कि अभी चंद दिनों पहले ही अचानक इस डॉक्टर ने भरे अस्पताल में अपने कुछ साथियों के सामने अपना नया मोबाइल मेज पर पटक दिया। खासा कीमती यह फोन यह सदमा नहीं सह पाया, और किर्च-किर्च बिखर गया। लेकिन इसी बीच डॉक्टर भी चिल्लाने लगा कि इस औरत ने उस का जीवन तबाह कर दिया है। गालियां चल रही थीं, बाकी लोग सुनने में मशगूल थे, और मजा ले रहे थे।
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इसी के अगले दिन ही पुलिस के डंडे अस्पताल में फटकने लगे। पुलिसवालों की लाठियां उस युवती की ओर खोज रही थीं, जिससे इस डॉक्टर को दिक्कत थी। आसपास मुखबिर भी बिखेर दे दिये गये थे कि जैसे भी हो, इस औरत को दबोच कर उसे हड़काओ। तय कर लिया गया था कि चाहे कुछ भी हो जाए, लेकिन यह औरत अब अस्पताल में नहीं दिखनी चाहिए।
बहरहाल, वह तो बाद में पता चला कि इस युवती को खुद इस डॉक्टर ने अपने जाल में फंसाया था। प्रेम का प्रपंच इतना फैला दिया था इस डॉक्टर ने कि इस युवती ने उसके लिए अपना तन-धन और मन तक अर्पित कर दिया। कीमती फोन उसी युवती ने इस डॉक्टर को तोहफे में दिया था। लेकिन चूंकि इसी बीच डॉक्टर की आंख-लड़ी एक दूसरी युवती से हो गयी, तो पहली वाले ने इस पर ऐतराज कर दिया। हंगामा इसी पर शुरू हो गया।
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एक और सरकारी डॉक्टर हैं एके शर्मा। जिला अस्पताल में सर्जन हैं डॉक्टर एके शर्मा। एक महिला को देखने के लिए उन्होंने अपने प्राइवेट-प्रैक्टिस सेंटर पर बुलाया। 16 सौ रूपया भी वसूला, और छेड़खानी भी कर दिया। मामला उपभोक्ता फोरम अदालत में पहुंचा। अदालत में बातचीत के दौरान समझौता की बात चली। दस हजार रूपया का जुर्माना अदा करना इस डॉक्टर को। लेकिन लिखत-पढ़त में नहीं, मुंह-जुबानी। और दिलचस्प किस्सा तो यह रहा कि इस जुर्माना का भुगतान करने के लिए यह सरकारी सर्जन सरकारी अस्पताल के ठीक सामने बने एक निजी डायनोस्टिक सेंटर के मालिक को लेकर आया था। उसी ने पचास-पचास के नोटों की दो गड्डी वादी को थमायी। लेकिन हैरत की बात है कि इस लेन-देन का कोई भी तस्करा सरकारी कागजों पर नहीं हुआ।
है न दिलचस्प किस्सा ?
खैर, इस खबर की अगली कुछ कड़ी जौनपुर के डॉक्टरों पर भी चलती रहेगी। ( क्रमश: )
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बहुत सहज जिला है जौनपुर, और वहां के लोग भी। जो कुछ भी है, सामने है। बिलकुल स्पष्ट, साफ-साफ। कुछ भी पोशीदा या छिपा नहीं है। आप चुटकियों में उसे आंक सकते हैं, मसलन बटलोई पर पकते भात का एक चावल मात्र से आप उसके चुरने का अंदाजा लगा लेते हैं। सरल शख्स और कमीनों के बीच अनुपात खासा गहरा है। एक लाख पर बस दस-बारह लोग। जो खिलाड़ी प्रवृत्ति के लोग हैं, उन्हें दो-एक मुलाकात में ही पहचान सकते हैं। अपना काम बनता, भाड़ में जाए जनता। जो ज्यादा बोल रहा है, समझ लीजिए कि आपको उससे दूरी बना लेनी चाहिए। रसीले होंठ वाले लोग बहुत ऊंचे दर्जे के होते हैं यहां। बस सतर्क रहिये, और उन्हें गाहे-ब-गाहे उंगरियाते रहिये, बस।
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