फर्क मलइका, मल्लिका बनाम मुन्‍नी और शीला का

ज़िंदगी ओ ज़िंदगी

सार्वजनिक स्‍थानों पर जानबूझकर बजाये जाते हैं ऐसे गाने: जन-स्‍वीकार्यता के नाम पर जीना हराम हो रहा है महिलाओं का: लखनऊ पीपल्‍स फोरम ने खटखटाया हाईकोर्ट का दरवाजा: करोडों की कमाई के लिए नाचना और सडक पर आबरू बचाने में है बडा फर्क:बनाम मैंने कुछ दिन पहले इलाहाबाद हाई कोर्ट में एक रिट याचिका दायर की है जिसमे दो फिल्मों तीस मार खान और दबंग के निर्माता-निर्देशक( सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन( सेंसर बोर्ड तथा सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय को प्रतिवादी बनाया है। इस याचिका में मैंने दो गानों दबंग का गाना मुन्नी बदनाम हुई और तीस मार खान का गाना शीला की जवानी को पब्लिक डीसेंसी एण्‍ड मोरालिटी पब्लिक आर्डर के खिलाफ मानते हुए उन्हें सिनेमेटोग्राफी एक्ट के धारा 5(बी(1 का उल्लंघन होने के आधार पर इन गानों पर तत्काल रोक लगाने की मांग की है। साथ ही यह भी कहा कि इन दोनों गानों के परिणामस्वरूप अपराध के कारित होने की भी संभावना रहती है। मैंने यह तथ्य उठाया है कि खास कर के नाम शीला( मुन्नी( मुनिया या ऐसे ही मिलते-जुलते नाम वाली स्कूलों तथा कॉलेजों में जाने वाली लडकियां( दफ्तरों के जाने वाली कामकाजी महिलाएं और यहाँ तक कि घरेलू महिलायें भी इस गाने के कारण गलत रूप से प्रभावित हो रही हैं।

मेरे इस कार्य पर मुझे बहुत सारी टिप्पणियां और प्रतिक्रियाएं मिली हैं जो कई तरह की हैं। कई लोगों ने खुल कर मेरी बात का समर्थन किया और इस कार्य को आगे बढाते हुए लक्ष्य तक ले जाने की हौसला-आफजाई की। लोगों ने धन्यवाद और आभार प्रकट किये( लोगों के दूर-दूर से फोन आये। उदाहरण के लिए मुंबई से एक सज्जन का फोन आया जिन्होंने मेरी प्रशंसा करते हुए इसमें हर तरह से योगदान देने का आश्वासन दिया। इसी तरह से पटना से एक फोन आया जिसमे मुझे शुक्रिया अदा किया गया था। एक महिला ने साफ़ शब्दों में बताया कि जब मैं पब्लिक ट्रांसपोर्ट में सफर करती हूँ तो कई लोग जान-बूझ कर यह गाना बजाते हैं और इसका उपयोग कर के लड़कियों के प्रति अश्लील आचरण करते हैं और उन्हें शर्मिंदगी की स्थिति में ला देते हैं। दूसरे व्यक्ति का कहना था कि हमारा समाज ऐसा हो गया है जिसमे जो चाहे जैसा करे और हम लोग इतने शिथिल प्राणी हो चुके हैं कि हम इनमे किसी भी बात का प्रतिरोध नहीं करते।

इसके उलट मुझे कई ऐसी टिप्पणियां भी मिलीं जिनमे मुझे बुरा-भला कहने और आलोचना करने से लेकर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की दुहाई देते हुए इन गानों के प्रति उदार नजरिया अख्तियार करने जैसी बात कही गयी है। एक अच्छे मित्र ने कहा-कि इस तरह की बातों में अदालतों का समय जाया करने से कोई लाभ नहीं है। ये गाने इसीलिए हैं क्योंकि इनकी जन-स्वीकार्यता है। एक दूसरे सज्जन हैं जो इससे पहले मेरे जस्टिस काटजू की इलाहाबाद हाईकोर्ट से सम्बंधित टिप्पणी के बारे में इलाहाबाद हाईकोर्ट में किये गए रिट के खारिज होने पर पहले ही कह चुके थे कि आपको जुर्माना नहीं हुआ इसकी खैर मनाएं। अबकी  मेरे इस कदम के बारे में जानते ही कहा-कि इस बार तो आप पर जुर्माना हो कर ही रहेगा( सभ्यता के ठेकेदार आपको सिर्फ पब्लिसिटी चाहिए और कुछ नहीं।

मैं इस प्रकार के व्यक्तिगत आरोपों के बारे में कुछ अधिक नहीं कह सकती( इसके बात के अलावा कि अपनी पब्लिसिटी हर आदमी चाहता है( यह नैसर्गिक मानवीय स्वभाव है- चाहे आप हों या मैं( फिर यदि मैं इस भावना से प्रभावित हो कर ही सही( यदि कुछ अच्छा काम कर रही हूँ तो मेरी पब्लिसिटी पाने की दुर्भावना और कमजोरी माफ की जानी चाहिए। रहा मुख्य मुद्दा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता कितनी हो और इस सम्बन्ध में क़ानून की बंदिश कितनी हो तो इस प्रश्न को समझने के लिए हमें किसी भी समाज को उसकी सम्पूर्णता में जानना-समझना होगा( जो मेरी खुद की स्थिति है या जो कई सारे पढ़े-लिखे उच्च-स्तरीय महिलाओं की स्थिति है वह अलग होती है(ये लोग समझदार लोग हैं(  रसूखदार भी हैं( इनके सामने शायद कोई इस तरह के गाने बजा कर इनका अपमान नहीं करे( इन पर फब्तियां नहीं कसे( इन्हें नहीं छेड़े( पर उन तमाम गाँव( कस्बों( गली-मोहल्लों में रहने वाली मुन्नी और शीला के बारे में सोचिये जो उतनी पढ़ी-लिखी नहीं हैं( जो उतनी आज़ाद ख़याल नहीं हैं( जो साधारण सोच वाली हैं( जिनके समाज में अभी भी पुरातनपंथ हावी है। वहाँ की वे असहाय महिलायें( बच्चियां( लडकियां वास्तव में इस प्रकार के फूहड़ गानों से प्रभावित भी हो रही हैं और अन्याय का शिकार भी( इस रिट में तो मैंने पाकिस्तान के लाहौर की दो बच्चों की माँ के बारे में लिखा है जिसे अपनी दुकानदारी का काम मात्र इसीलिए छोड़ देना पड़ा क्योंकि उसका नाम मुन्नी था और उसे पूरे मोहल्ले का हर शरीफ-बदमाश आदमी इसी गाने के बोल गा कर परेशान करता था।

रिट करने के बाद मुझे कई ऐसे दृष्टांत ज्ञात हुए हैं जिनमे इस गाने को ले कर हत्या( बलवा( छेड़खानी आदि तक हो चुके हैं( नोयडा के राजपुरकलां गांव में जमकर बवाल मचा( नामकरण संस्कार के दौरान शीला की जवानी बजाने पर  गाने पर डांस कर रहे युवकों और उनके पड़ोसियों में भारी मार-पीट हुई। बताया गया है कि पड़ोस में शीला नाम की एक महिला रहती है जिसके परिवार वालों को यह बुरा लग रहा था( कई बार मना किया पर नहीं माने और फिर झगडा शुरू हो गया जिसमे आधा दर्ज़न लोग घायल हो गए। इसी तरह बलिया के बांसडीह रोड थाना क्षेत्र के शंकरपुर गांव में एक  बारात में इस गीत पर नशे में धुत पार्टी का दूसरे पक्ष से विवाद हुआ। फायरिंग हुई और करीब दर्जनों राउंड फायरिंग में गोली लगने से दस लोग घायल हो गए। मुंबई के ठाणे की दो बहनों शीला गिरि और मुन्नी गिरि को  इन गानों ने अपना नाम बदलने के लिए मजबूर कर दिया है क्योंकि वे पड़ोसियों और लोगों के भद्दे कॉमेंट से परेशान हैं। दो बच्चों की मां मुन्नी ने बताया कि जैसे ही वह घर से बाहर निकलती हैं। उन पर इस गाने की आड़ में भद्दे कॉमेंट किए जाते हैं।अब शीला अपने बेटे को स्कूल छोड़ने तक नहीं जाती हैं। वह कहती हैं कि जब भी मैं स्कूल जाती हूं तो बच्चे शीला की जवानी गाने लगते हैं जिससे वे और उनका बेटा शर्मसार होकर रह जाते हैं। उन्होंने गवर्नमेंट गैजेट ऑफिस में अपना नाम बदलने के लिए अप्लाई किया। ये तो मात्र वे मामले हैं जिनमे बातें छन के आई हैं। अंदरखाने हर गली-कूचे में ना जाने ऐसी कितनी घटनाएं हो रही होंगी। कितनी बेचारी शीला और मुन्नी इसका मूक शिकार हो रही होंगी। इसके कारण परेशान होंगी( सताई जा रही होंगी।

यह किस सभ्यता का तकाजा है कि अपनी व्यक्तिगत स्वतन्त्रता के नाम पर आदमी इस हद तक अंधा हो जाए कि उसे दूसरे का कोई भी हित-अहित करने में तनिक भी शर्म नहीं आये। यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रा है या व्यापक स्वार्थ-लिप्सा। यह सही है कि मलाइका अरोरा और कटरीना कैफ जैसी सशक्त महिलाओं को कोई कुछ नहीं कहेगा। चाहे वे अर्ध-नग्न घूमें या कुछ भी करें। परसों एक कार्यक्रम में मल्लिका शेरावत की बात सुन रही थी। कह रही थीं-मेरे पास दिखाने को शरीर है तो दूसरों को क्या ऐतराज़ है। सच है कि उनके पास शरीर है। शरीर शायद और भी कई उन साधारण घर की महिलाओं के पास भी हो। पर उनकी स्थिति दूसरी है। उनके हालत दूसरे हैं। मलाइका सुरक्षा घेरे में ठुमका लगाती हैं। पांच करोड लिया और चल दी। उन गरीब और साधारण महिलाओं की सोचिये जो इसका शिकार बनती हैं और चीख तक नहीं पाती। अपनी माँ(बहनों( बेटियों को सोचिये जिनके नाम शीला और मुन्नी हैं और जिन्हें इस गाने के नाम पर शोहदे और मक्कार किस्म के लोग छेड रहे हैं और अपनी वहशी निगाहों और गन्दी लिप्सा का शिकार बनाने की कोशिश करते रहते हैं

इसीलिए यह जरूरी है कि इस तरह से स्वतंत्रता के नाम पर हम अंधे नहीं हो जाएँ और इस तरह के सभी प्रयासों का खुल कर विरोध करें और उन पर रोक लगवाएं।  फिर यदि मुझ पर कोई कोर्ट इस काम में जुर्माना भी लगाए तब भी मुझे अफ़सोस नहीं होगा क्योंकि यह मेरे अंदर की आवाज़ है

 

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