: करीब बीस बरस तक अदालतों और कानून को पदनी का नाच सिखाते रहे रौतेला : रामपुर में अवैध खनन के मामले में हाईकोर्ट तक ने सरकार को फटकारा, मगर रौतेला ने जजों तक को थमा दिया बाबा जी का ठिल्लू : उत्तराखंड कैडर अलॉट होने के बावजूद रौतेला ने कानून को अपने कदमों से रौंद डाला :
कुमार सौवीर
लखनऊ : नौकरशाही को लेकर आमतौर पर एक कहावत खूब प्रचलित है कि आज के जमाने में सफल होने के लिए अटूट परिश्रम, ईमानदारी और लोक-प्रतिबद्धता के बजाय अदालती दांवपेंचों की समझ, नेताओं और सत्ताधीशों से करीबी रिश्ते, जाति और धार्मिक प्रतिबद्धता की जरूरत तो अपरिहार्य और अनिवार्य होती ही है, लेकिन इसके साथ ही साथ लक्ष्मी-जुगाड़ की सर्वाधिक योग्यता और दक्षता की सख्त जरूरत पड़ती है। यूपी की लोक-सेवा में कार्यरत अधिकांश शीर्षस्थ अधिकारीगण उपरोक्त मर्म और गुणों से अपना जीवन धन्य करने में जुटे हैं।
ऐसे गोत्रीय अधिकारियों में ताजा अव्वल ओहदा मिला है राजीव रौतेला को। राजीव रौतेला, जो पिछले एक बरस से गोरखपुर के जिलाधिकारी की कुर्सी पर जमे हुए थे, और जितना भी अनाचार, लापरवाही और अक्षम्य बेईमानियां राजीव रौतेला ने हर तराजू पर तौल डाला। और अब जब राजीव का रिटायरमेंट का वक्त करीब आ गया है, रौतेला ने सरकार पर बड़ी कृपा करते हुए खुद को उत्तराखण्ड कैडर में ट्रांसफर लेने की सहमति दे दी है।
मगर अदालत और नियम-कानून को ठेंगा दिखाते हुए रौतेला ने जिस तरह 18 बरस यूपी में बिताये हैं, वह साबित करता है कि अगर आपके पास कानून को जूतों की नोंक पर रखने की औकात है, और इसके लिए नेताओं-सत्ताधीशों से सम्पर्क साधे रखने का माद्दा है, तो कोई भी ऐसा शख्स शाहंशाह बन सकता है। रौतेला सन-1982 में यूपी की पीसीएस सेवा में आये । 9 नवंबर, 2000 को तब उत्तराखंड कैडर पर भेजने का आदेश हुआ था, जब उत्तराखंड राज्य बनने के बाद केंद्र सरकार द्वारा प्रशासनिक बंटवारा की कवायद में यूपी की नौकरशाही को उत्तराखंड इकाई में बंटवारा हो रहा था।
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मगर रौतेला ने इस प्रशासनिक बंटवारे को अमान्य मान लिया और उस पर हाईकोर्ट से स्टे ले लिया। सन-2002 में उन्हें आईएएस की सेवा में प्रोन्नत किया गया। उत्तर प्रदेश में प्रतिनियुक्ति पर काम कर रहे थे। लेकिन अब चूंकि हाईकोर्ट में उनकी याचिका उनके खिलाफ चली गयी है, और चूंकि वे अपनी सेवानिवृत्ति के करीब आते जा रहे हैं, उन्होंने उत्तराखंड जाने का फैसला कृपापूर्ण कर ही डाला है। (क्रमश:)
गैर-जिम्मेदार ही नहीं, उश्रंखल बड़े बाबूगिरी का प्रतीक बन चुकी है यूपी की नौकरशाही। यह कहानी ऐसे हादसों के हर कदम तक पसर जाने की है, जहां अराजक, भ्रष्ट व्यवस्था का खुलेआम प्रश्रय दिया जाता है। नतीजा यह कि बाबूगिरी का शिंकजा आम आदमी के गर्दन तक को दबोचता दीख रहा है। व्यवस्था तबाह होती जा रही है, और बेलगाम नौकरशाही बेकाबू। यह रिपोर्ट श्रंखलाबद्ध प्रकाशित की जा रही है। इसके अगले अंकों को पढ़ने के लिए कृपया निम्न लिंक पर क्लिक कीजिएगा:-