अदालत ने कहा: क्रूर पतियों पर दया बेमानी

ज़िंदगी ओ ज़िंदगी

परमेश्‍वर बने पति, या फिर अपराधी

गैरइरादन हत्‍या के प्रयास में कैद और जुर्माना

पत्‍नी पर किया था दिल्‍ली में त्रिशूल से हमला

दिल्ली: यहां की एक अदालत ने क्रूर व्‍यक्ति को पति की परिभाषा में लाने से साफ इनकार कर दिया है। पत्‍नी पर पति व ससुरालवालों के जानलेवा हमले के एक मामले में अदालत ने तीन साल की सजा और पचास हजार रूपयों का जुर्माना लगाते हुए कहा है कि पति को पहले अपने पतीत्‍व का प्रदर्शन करना होगा, इसके बिना उसके साथ दया की कोई भी अपील स्‍वीकार नहीं की जा सकती। अदालत के अनुसार सभ्य समाज में पत्‍‌नी से मारपीट हो तो उसे सहन नहीं किया जा सकता है। अदालत के मुताबिक अपनी पत्‍‌नी से हिंसक बर्ताव करने वाले पति दया के हकदार नहीं हो सकता।

अदालत ने एक घरेलू झगड़े में पत्नी पर त्रिशूल से हमला कर उसे बेतरह घायल करने वाले पति को तीन साल की सजा सुनाई। दिल्‍ली की अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश कामिनी लाड ने पति का दर्जा हासिल करने का दावा करने वाले रविंदर को गैर इरादतन हत्या के प्रयास का दोषी पाया और उस पर 50 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया। जुर्माने की यह रकम उसकी पत्नी संध्या को मिलेगी। मुलजिम के वकीलों के तर्क के जवाब में अदालत का कहना था कि पत्नी को पीटना निजी मामला कैसे हो सकता है क्योंकि हमारे देश में इसे मान्‍यता ही नहीं दी जा सकती है। कानून भी सख्‍त हैं। ऐसे लोगों को तो समाज के सामने हर हाल में लाना चाहिए।

इस मामले में अभियोजन पक्ष का कहना था कि पति रविंदर के साथ रिश्तों में खटास के बाद संध्या अपने दो बच्चों के साथ अपने मायके चली गयी थी। लेकिन 2 दिसंबर 05 को जब संध्या अपने पति के घर कुछ दस्तावेज लेने गई तो ‍उसके पति रविंदर, सास कृष्णा और ननद रीता ने उस पर त्रिशूल से हमला कर दिया। इस हमले में बुरी तरह घायल संध्‍या को दो हफ्तों तक अस्पताल में भर्ती रहना पड़ा। इस मुकदमे में जज लाड का कहना था कि हिंसा करने वाले पति ज्‍यादातर मामलों में आसानी से छूट जाते हैं क्योंकि महिलाएं अपने व अपने बच्‍चों का भविष्‍य बचाने के लिए ऐसे सारे जुल्‍म सह जाती हैं या फिर वे आर्थिक तौर पर अक्षम होती हैं। इस हालत को देखते हुए अदालत के सामने आये मामलों में रियायत नहीं बरती जा सकती है। क्‍योंकि ऐसे फैसले समाज में ऐसे क्रूर लोगों को सुधारने के लिए नजीर का काम करते हैं।

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