कोरोना ने वकीलों को अनुशासन सिखाया: परिहार

दोलत्ती

: लखनऊ हाईकोर्ट अवध बार एसोसियेशन के अध्‍यक्ष हर गोविंद परिहार से बातचीत : अदालतों का रुख स्‍तुत्‍य रहा कोरोना-काल में, सक्रियता बेमिसाल : सरकार के मुकाबले बार संवेदनशील :
कुमार सौवीर
लखनऊ : कोरोना ने जन-समुदाय को भले ही बुरी तरह हिला दिया हो, लेकिन इस पूरे कोरोना-काल के दौरान देश की अदालतों का रुख स्‍तुत्‍य रहा है। इस पूरे दौरान जो सक्रियता ज्‍यूडिसरी की ओर से दिखायी गयी, वह बेमिसाल है। खुशी की बात है कि सर्वोच्‍च न्‍यायालय ने कोरोना-काल में सुखद फैसले किये। वीडियो-कांफ्रेंसिंग से मामलों की सुनवाई का काम शुरू किया। ऐसे वक्‍त में जब बाकी सरकारी दफ्तर बंद रहे थे, अदालत ने मामलों को निपटाने की भरसक कोशिश की। हाईकोर्ट ने लखनऊ और इलाहाबाद में भी ऐसी कोशिशें भरपूर बुनीं और लागू भी कीं।
यह मानना है कि लखनऊ हाईकोर्ट अवध बार एसोसियेशन के अध्‍यक्ष हर गोविंद परिहार का। दोलत्‍ती संवाददाता से हुई बातचीत के दौरान श्री परिहार ने बताया कि पिछले तीन महीने के संकट काल में सबसे ज्‍यादा बुरी हालत में रहा है वकील समुदाय। लेकिन हमारे बार एसोसियेशन ने प्रत्‍येक अधिवक्‍ता को तीन हजार और उनके क्‍लर्क को एक हजार रूपयों की आर्थिक सहायता दी। दोलत्‍ती संवाददाता के इस सवाल पर कि क्‍या इतनी रकम से तीन महीने के संकट का समाधान हो सकता था, परिहार का कहना है कि यह मदद तो वकीलों के संगठन अवध बार एसोसियेशन ने अपने स्‍तर पर की है। सरकार की ओर से तो धेला भर ही कोई मदद न वकीलों को मिली और न ही हमारे क्‍लर्क को। यह हमारे मानवीय संवेदना का प्रमाण है।
श्री परिहार कहते हैं कि कोरोना ने आम वकील को अनुशासन में रहना सिखा दिया। कोरोना ने आत्‍मरक्षा जनित भय का माहौल बना दिया। यह एक जरूरी काम था। बरसों से इसकी कमी खल रही थी। लेकिन हालातों ने पलटा मारा और आखिर कोरोना-काल में उसका समाधान हो गया। अब मुझे तो पूरी उम्‍मीद है कि यह अनुशासन हर स्‍तर पर अपनाया जाएगा। इस सवाल पर कि क्‍या वकील अब सड़क या अदालत परिसरों में मारपीट या गाली-गलौज नहीं करेंगे, इसकी गारंटी क्‍या होगी। श्री परिहार का कहना है कि अब ऐसी आशंकाएं निर्मूल होंगी, इसकी आशा है। उनका कहना था कि इसके पहले भी केवल एक ही ऐसा मामला हुआ है, लेकिन उसके बाद से ऐसा कुछ भी नहीं हुआ, जैसा विशाल दीक्षित प्रकरण में हुआ था। ऐसी हालत में हमें संभावनाएं खोजनी होंगी। और हमें आशा है कि अब अनुशासन बनेगा।
दोलत्‍ती संवाददाता के इस सवाल पर कि इसके पहले भी पुरानी अदालत में पूर्व सांसद बनवारी लाल कंछल की पिटाई कर उन्‍हें लहू-लुहान कर दिया था सम्‍मानित अधिवक्‍ताओं ने, और उस पर हाईकोर्ट ने सीबीआई को मामला सौंप दे दिया था। लेकिन उस के बावजूद वकीलों में भय नहीं पनपा, श्री परिहार बोले कि उन्‍होंने श्री कंछल वाली घटना का वीडियो नहीं देखी है। वैसे भी, जो भी हो, कम से कम कोरोना से वह संभावनाएं तो बलवती तो हो ही गयीं हैं।
इस सवाल पर कि नयी हाईकोर्ट में भी एक वकील को बार एसोसियेशन के पदाधिकारियों ने बार एसोसियेशन के दफ्तर में जमकर पीटा था। श्री परिहार का कहना था कि कोरोना-काल के चलते इस बारे में कोई ठोस कार्रवाई नहीं हो पायी है, लेकिन जल्‍दी ही उस समस्‍या का समाधान खोज लिया जाएगा।

2 thoughts on “कोरोना ने वकीलों को अनुशासन सिखाया: परिहार

  1. 1-हमारे बार एसोसियेशन ने प्रत्‍येक अधिवक्‍ता को तीन हजार और उनके क्‍लर्क को एक हजार रूपयों की आर्थिक सहायता दी???
    2-श्री परिहार कहते हैं कि कोरोना ने आम वकील को अनुशासन में रहना सिखा दिया। कोरोना ने आत्‍मरक्षा जनित भय का माहौल बना दिया। यह एक जरूरी काम था। बरसों से इसकी कमी खल रही थी???
    या तो इस समाचार को रसमय बनाने हेतु लेखक द्वारा मनगढ़ंत रूप से उपरोक्त दोनों तत्वों का वर्णन किया गया है .||
    अन्यथा,
    यदि बार के अध्यक्ष श्री परिहार द्वारा यह कहा गया है तो ये अधिवक्ताओं के सम्मान के साथ खिलवाड़ है जो कि किसी अधिवक्ता, खास तौर से बार के अध्यक्ष द्वारा तो नही करना चाहिए|
    ये बहुत शर्म की बात है|

  2. बहुत सही भईया गज़ब के सवाल आपने उठाए ।
    वर्तमान हालातों को देखने के बाद ये कहना कहीं से भी गलत नहीं लगता कि आज अधिकांश पीड़ित वर्ग कानून के रखवालों से डरा-सहमा सा दिखाई दे रहा है। युवा पीढ़ी के अधिकांश वकीलान अपने पितातुल्य वरिष्ठ नागरिकों के साथ इतनी भद्दी-भद्दी गालियां देते हुए पेश आते नजर हैं कि बस पूछिए मत ! कानून के रखवालों के मुख से बेबाक निकलने वाली उन अभद्र गालियों का वर्णन पोस्ट पर किया जाना मेरे हिसाब से अनुचित ही होगा। मेरा मानना है यदि वकील समुदाय अपने कार्य और व्यवहार में परिवर्तन लाने की सोंच अपने मन-मस्तिष्क में पैदा करेगा तो नि:संदेह आम पीड़ितों के ज़ेहन में काले कोटधारियों को लेकर जिन गलत धारणाओं का मंज़र तैयार खड़ा हुआ है उस मंज़र पर काफी हद तक विराम लगाया जा सकता है। यही नहीं काले कोट को लेकर आम जनमानस में जो अविश्वास दिखाई देता नजर आ रहा है उस विश्वास को पुन: प्रतिष्ठापित किया जा सकता है।

Leave a Reply to संजय आजाद Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *