खुल गये जंगल निहारने के मौके

ज़िंदगी ओ ज़िंदगी

दुधवा और राजाजी पार्क को पर्यटकों के लिए खोल दिया गया

अकेले दुधवा में हैं सवा सौ से ज्यादा बाघ और उनके शावक: बारह सींगों वाला बारह सिंघा की तादात खूब बढ चुकी है दुधवा में: हाथी की कुलेल को निहारना हो तो राजाजी पार्क से बेहतर और क्या
तो इस बार गर्मी की छुट्टियां कहां मनाने की सोच रही रहे हैं आप लोग। प्रकृति के पास रहने की ख्वाहिश हो तो सीधे दुधवा नेशनल पार्क आ जाइये। जंगल का माहौल और संरक्षित वन्य जीवन को निहारने और बच्चों को उसका महत्व बताने का इससे बढिया उपाय और क्या हो सकता है। हाए आप चाहें तो उत्तराखण्ड के राजाजी नेशनल पार्क भी जा सकते हैं जो खासकार हाथी संरक्षण के लिए मशहूर है। यहां भी आपको सभी जंगली जानवारों की कुलेल देखने को मिल जाएगी। तो फिर देर किस बात कीघ् इन दोनों में जहां भी जाने की योजना बने, उसके लिए इन प्रदेशों के पर्यटन विभाग से सम्पर्क कीजिए। यह दोनों ही पार्क आज से आम पर्यटकों के लिए खोल दिये गये हैं।
उत्तर प्रदेश का एकमात्र और बाघों  के लिए विश्वविख्यात दुधवा नॅशनल पार्क आज से पर्यटकों के लिए खोल दिया गया।पार्क बरसात के कारण १५ जून से बंद हो गया था। सामान्य तौर पर यह पार्क हर साल १५ नवम्बर को हर साल खोल दिया जाता है। पार्क ८८२ वर्ग किलोमीटर में फेला संरक्षित शेत्र है।जो बाघोंएएक सींघ के गेंडाए बारह सिंघा, हाथी  तेंदुआ आदि दुर्लभ पशुओ के लिए मशहूर है। इस पार्क की स्थापना सन १९७७ में की गयी थी।
१५ नवम्बर का दिन दुधवा नॅशनल पार्क के लिए खास दिन होता है। हर साल इसी दिन पर्यटकों के लिए दुधवा के दरवाज़े खोल दिए जाते है और इसी महीने से पर्यटक रेचुरल फारेस्ट के आगोश में रह कर प्रकृति का लुत्फ़ उठाते है। इसके लिए खास इन्तेजाम पार्क प्रशासन करवाता है।
दुधवा नॅशनल पार्क की स्थापना सन १९७७ में की गयी थी जिसके कुछ सालो बाद ही इसे टाइगर रिज़र्व का दर्जा भी मिल चुका है। साथ ही दुधवा के  नाम की शान में एक कड़ी बेहद दुर्लभ जीव गेंडा और बाघ की अच्छी संख्या होने के कारण जुड़ जाती है। पिछली सेन्सस के
मुताबिक यहाँ पर एक सौ नौ बाघ थे जिनकी संख्या यहाँ पर बाघ शावको के होने के कारण बढ़ने की उम्मीद जताई जा रही है। यही नहींए एक सींघ के गेंडे की भी यहाँ संख्या तीस है जो गेंडा पुनर्वास परियोजना के लिए बेहद सफल कदम माना जा रहा है। इस परियोजना की शुरुआत सन १९८४ में तब की गयी थी जब इंडो नेपाल बार्डर स्थित इस पार्क में गेंडे एकदम लुप्त हो चुके थे। यही नहीं चौपायो में एक जीव भी दुधवा के नाम में निखार लाता है और वो बारह सींघो वाला बारहसिंघा। कहा जाता है कि पूरे विश्व में एक साथ बड़ी संख्या में यह जीव कही नहीं पाया जाता सिवाए दुधवा के झादी ताल के आस पास। लेकिन दुधवा में सक्रिय शिकारियों के कारण दुधवा के नाम पर काले धब्बे भी आते रहते है जिनको पकड़ने की कोशिश भी की जाती रहती है।
दुधवा नॅशनल पार्क लखीमपुर मुख्यालय से करीब ८५ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है और पर्यटकों के यहाँ पर पहुचने के लिए सड़क सबसे आसान रास्ता है। पर्यटकों के लिए रेस्ट हाउस और थारू हट्स की बुकिंग लखनऊ के मुख्य वन संरक्षक कार्यालय सेए लखीमपुर में फील्ड डाइरेक्टर और पलिया के उप निदेशक कार्यालय से की जाती है। पर्यटकों को पार्क इलाके में घुमाने के लिए जीपोंए हाथियों का भी इंतज़ाम है लेकिन इस साल पिछले सालो के मुकाबले पर्यटकों अपनी कुछ ज्यादा जेब ढीली करनी पड़ेगी क्यों ज्यादातर चार्जेज इस बार बढ़ा दिए गए है। मेरी बिटिया खबर से ख़ास बातचीत में पार्क के फील्ड डाइरेक्टर शैलेश प्रसाद ने बताया कि पार्क में आने वाले पर्यटकों की सुविधा के सारे बंदोबस्त किये गए है और पूरे पार्क को दो हिस्सों में बाट दिया गया है। सुरक्षा कारणों से कुछ इलाको में पर्यटकों के जाने की मनाही रहेगी। पहले ही दिन काफी अच्छी भीड़  देखने को मिल रही है। राजाजी नेशनल पार्क
हाथियों के लिए प्रसिद्ध राजाजी नेशनल पार्क कल से पुन सैलानियों के लिए खोल दिया जाएगा। पार्क के सूत्रों के अनुसार वर्ष 1983 में देश के प्रथम गवर्नर जनरल चक्रवर्ती राजगोपालाचारी के नाम से स्थापित राजाजी पार्क सोमवार से सैलानियों के लिए खोल दिया जाएगा। इस पार्क की स्थापना हाथियों एवं अन्य जगली जानवरों के संरक्षण एवं संवर्धन के लिए की गई थी।
सूत्रों ने बताया कि जंगली जानवरों को शिकारियों से बचाने और जानवरों की तस्करी एवं इनके अंगों के अवैध व्यापार को रोकने के लिए केन्द्र सरकार ने इस पार्क की स्थापना को मंजूरी दी थी। जंगली जानवरों विशेषकर हाथी, चीता और बाघ की संख्या में लगातार आ रही कमी के बाद सरकार ने ऐसे पाकरे की स्थापना करके जानवरों के संरक्षण की दिशा में प्रयास किए है।

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