राजनीति में गर्मगोश्त, शुचिता नहीं, स्वार्थों पर है झंझट
: यानी पति को नौकरी मिलती, तो चूजा-सप्लाई चालू रहती : बेशर्म राजनीति की मोहरा थीं, प्यादा की तरह लुढ़का दी गयीं : आखिरकार रामबाबू से तमाचा खाने की नौबत क्यों आ गयी मधु पांडेय को : सीधे-सीधे तो ब्लैकमेल ही तो कर थीं मधु चूजावाले मंत्री को :
कुमार सौवीर
लखनऊ : चूजा वाला मंत्री। हा हा हा। यह तो वाकई मस्त नाम है यार। सत्ता ही नहीं, सत्ता की जाजम से दूर-दूर तक नहीं फटक सकनी वाली जनता भी अगले लम्बे समय तक यह सम्बोधन याद कर अपने कलेजे पर ठण्डक महसूस करती रहेगी और ठठाकर हंसते हुए अपने तनाव दूर करती रहेगी।
खैर, चलिए बात आगे बढ़ाते हैं भइया। तो, आपको शायद खूब याद होगा नारायण दत्त तिवारी की सरकार में एक सूचना राज्य मंत्री हुआ करते थे नरेश चंद्रा। उनकी बैक-ग्राउंड वाली शौकीन-अदा खासी चर्चित थी। एक दिन राज्य सम्पत्ति विभाग के एक चपरासी कड़ेदीन को लेकर वे दिल्ली के यूपी भवन में टिक गये। और रात में ही हंगामा खड़ा हो गया।
पता चला कि कड़ेदीन ने नरेश चंद्रा से त्रस्त होकर तीसरे माले से छलांग लगा दी थी और नतीजा, उसका पैर टूट गया। मगर नरेश की छवि की भी इसी रात किर्च-किर्च बिखर गयी। अगले दसियों तक सत्ता के गलियारों में कड़ेदीन-प्रकरण चलता रहा। लेकिन बाद में कड़ेदीन को तो लोग भूल गये, मगर सारा माजरा नरेश चंद्रा तक सिमट गया। और आज, इतिहास के पन्नों पर दर्ज इन इबारतों से यह दोनों ही शख्सियतें दर्ज तो हैं, मगर बेहद गंधली हो चुकी हैं। वजह यह कि कड़ेदीन को व्यवस्थाकर्ता बन कर यूपी भवन पहुंच तक पहुंचा था, उसकी ख्वाहिशें उसकी पैर और फिर भविष्य तक को रौंद गयीं। नरेश चंद्रा जरूर कई लम्बे समय तक जिन्दा रहे, लेकिन कड़ेदीन की याद बहुत जल्दी खत्म हो गयी।
आज अचानक औरया के इस दिलचस्प हादसे ने करीब 30 साल पुरानी यादें ताजा कर दीं। घटनाएं ठीक वही हैं, बस पात्र बदल गये हैं। नरेश चंद्रा की जगह रामबाबू यादव आ गये हैं और कड़ेदीन की जगह मधु पांडेय खिसक कर पहुंच गयी हैं। नरेश चंद्रा को अपना शौक पसंद था, भले ही उनकी राज्यमंत्री-गिरी दांव पर चल गयी, जबकि रामबाबू यादव को अपना चूजा-शौक बेहद पसंद था भले ही उसके लिए उन्हें कितना भी नीचे गिर कर अपना ईमान गिराना पड़ेगा और राज्यमंत्री के मानद सम्मान को ठोकर पर रखना पड़े। कड़ेदीन को पैसों की लालच थी और मधु पांडेय को अपने पति की नौकरी और टुकड़-फेंक राजनीति में पूंछ हिलाते हुए हर टुकड़े निगाह डालने की मजबूरी।
तो दोनों ने अपना-अपना काम, दायित्व और शौक पूरा करने के लिए जी-जान लगा दिया। नतीजे में कड़ेदीन ने अपना पांव दिल्ली के यूपी भवन में तुड़वा दिया और मधु पांडेय ने खुद को चूजा-सप्लाई करने वाली पार्टी की जाबांज कार्यकर्ता बनने की कोशिश की और इसी ओछे-स्वा़र्थों और घिनौने चक्कर में आज वह केवल एक चूजा-सप्लायर ही बन कर रह गयी है। कड़ेदीन तो पैर तुड़वाकर खामोश हो गया था, क्योंकि उसे खूब पता था कि उसे अपने कुकृत्य का अंजाम देख लिया था। लेकिन मधु पांडेय इतना नीचे गिर चुकी है कि वह न केवल इस चूजा-वाले मंत्री की दलाली-भड़ैंती की भूमिका को खुलकर सार्वजनिक कर रही है। इस क्रम में वह भले ही रामबाबू यादव उर्फ चूजा वाला मंत्री के तौर पर पेश कर रही हो, लेकिन वह इस प्रकरण में अंतत: खुद को किस भूमिका में लाकर खड़ा कर चुकी है, इसे खुलेआम कह पाना मेरे लिए मुमकिन नहीं है।
मधु पांडेय का कहना है कि उसकी ख्वाहिश थी कि वह अपने पति की नौकरी दिलवा देगी, इसीलिए चुप रही। लेकिन सवाल यह है कि अपने पति को नौकरी दिलाने के लिए मधु आखिरकार क्या क्या करने को तैयार थी। शायद हर कुछ और हर निचला पायदान। वह तो कमाल कर दिया चूजा वाले मंत्री ने, जो मधु पांडेय को सरेआम तमाचा मार दिया, वरना मधु का यह धंधा लगातार तेज ही चलता रहता। न जाने वह कितने मासूम-कमसिन चूजे इस चूजाखोर मंत्री की सेवा में भेज चुकती। ( शेष दूसरे अंक में क्रमश: )
कुमार सौवीर का यह लेख दो अंकों में प्रकाशित किया गया है। प्रस्तुत है पहला अंक। दूसरा अंक पढ़ने के लिए कृपया क्लिक करें:- चूजावाले मंत्री की अक्खड़ई से औंधेमुंह गिरी मधु पांडेय
यूपी सरकार के मानद मंत्री और औरया जिला समाजवादी पार्टी के जिला अध्यक्ष रामबाबू यादव की सारी करतूतों को यदि आप पढ़ना चाहें तो कृपया क्लिक करें:- मंत्री को चाहिए 18 साल की चूजा