छोटा पत्रकार आगाह करता रहा, बड़ा डॉक्‍टर मौतों का इंतजार करता रहा

सैड सांग

: योगी के गृह-जनपद गोरखपुर के मेडिकल कालेज में दो दर्जन से अधिक मासूम बच्‍चों ने तड़प-तड़प कर दम तोड़ा : तीन दिन पहले ही कालेज प्रिंसिपल ने फरमान जारी किया था कि कोई भी कालेज-कर्मी मीडिया से बात नहीं करेगा : स्‍थानीय छोटे पत्रकार लगातार आगाह करते रहे कि कालेज में मौत की परछाइयां हैं :

कुमार सौवीर

गोरखपुर : यह बात 8 अगस्त की है, जब मनोज सिंह नाम के एक पत्रकार ने सूंघ लिया था कि यहां के मेडिकल कालेज में भर्ती जापानी इंसेफेलाइटिस मरीजों के लिए बने विशेष वार्ड में मौत की परछाइयां दिख रही हैं। मनोज को साफ दिखने लगा था कि हत्‍यारी परछाइयां अब यहां के मरीजों और खास कर बच्‍चों-मासूमों की गर्दन को दबोचने ही वाली हैं। उस ने इस बारे में खबरें छापनी शुरू कीं। लेकिन मेडिकल कालेज के प्रधानाचार्य ने इन चेतावनियों को अपने खिलाफ दुष्‍प्रचार मान लिया, और कालेज के सारे डॉक्‍टरों और कर्मचारियों को चेतावनी जारी कर दी कि कालेज को लेकर कोई भी शिक्षक-डॉक्‍टर या कर्मचारी मीडिया के साथ कत्‍तई बात नहीं करेगा।

फिर क्‍या था। कालेज में घेरा डाली मौतों की परछाइयों ने जैसे ही देखा कि प्राचार्य ने उनके लिए रास्‍ता साफ कर दिया है, मौत का कहर शुरू हो गया, जो अब तक दो दर्जन मासूमों की मौत के तौर पर सामने आया है।

जी हां, साफ बात तो यही है कि प्रधानाचार्य ही इन दर्जनों मासूमों की मौत के इकलौते जिम्‍मेदार हैं। इस हत्‍यारे ने मीडिया को तो अपराधी के कठघरे में खड़ा कर उससे बचने की हिदायज जारी कर दी, लेकिन सच का सामना करने का साहस नहीं जुटा पाया। मामला था ऑक्‍सीजन की आपूर्ति करने वाली फर्म को होने वाले 69 लाख रूपयों के बकायों के भुगतान का, जिस पर पिछले कई महीनों से पत्राचार चल रहा था। जानकार बताते हैं कि कालेज प्रशासन को इस बिल में अतिरिक्‍त कमीशन की जरूरत थी, जो कर पाना इस फर्म के वश की बात नहीं थी। फर्म का कहना था कि जब कमीशन का भुगतान पहले से ही हो चुका था, तो उसमें अतिरिक्‍त इजाफा दर-बेईमानी ही है। लेकिन कालेज प्रशासन अपनी जिद में अड़ा था। फर्म कई बार चेतावनी भी देता जा रहा था कि अगर भुगतान नहीं हुआ तो वह ऑक्‍सीजन की आपूर्ति बंद कर देगी, लेकिन प्रशासन के कानों पर कोई भी जूं नहीं रेंगी।

ऐसे में फर्म ने 10 जुलाई की सुबह से ही कालेज को ऑक्‍सीजन की सप्‍लाई बंद कर दी। मगर सब कुछ जानते-बूझते हुए भी कालेज प्रशासन ने इस आपात हालत से निपटने के लिए कोई भी कदम नहीं उठाये और सारे डॉक्‍टर शाम को ही अपने-अपने घर चले गये। पूरा अस्‍पताल जूनियर डॉक्‍टरों के भरोसे छोड़ दिया गया। और उसी रात से ही मेडिकल कालेज में मौत का नंगा नाच शुरू हो गया।

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मौत-गिद्ध

दैनिक हिन्‍दुस्‍तान समेत कई अखबारों में वरिष्‍ठ पदों पर रह चुके मनोज सिंह फिलहाल गोरखपुर लाइव नामक एक पोर्टल संचालित कर रहे हैं। मनोज ने 8 तारीख को यह खबर छापी थी कि मेडिकल कालेज से सम्बन्धित खबरों के मीडिया में आने से बीआरडी मेडिकल कालेज के प्राचार्य परेशान हैं। उन्होंने मेडिकल कालेज के शिक्षकों, चिकित्सकों, पैरा मेडिकल स्टाफ व कर्मचारियों को मीडिया से बात न करने की चेतावनी दी है और कहा है कि यदि कोई मीडिया से बात करते पाया जाता है तो कठोर कार्यवाही की जाएगी। प्राचार्य ने इसके लिए बकायदा विभागीय आदेश जारी किया है। यह आदेश पांच अगस्त को जारी किया गया है। यह आदेश सभी 23 विभागों के अध्यक्षों को, प्रमुख चिकित्सा अधीक्षक, टामा सेंटर, सेंट्रल लाइब्रेरी के प्रभारियों को भेजा गया है। साथ ही इसकी प्रति अपर मुख्य सचिव चिकित्सा अनुभाग और महानिदेशक चिकित्सा शिक्षा को भी भेजा गया है।

मनोज ने लिखा कि इस आदेश जारी करने का मकसद इंसेफेलाइटिस से होने वाली मौतों, इलाज की बदइंतजामियों की खबरों को छुपाना है। हाल के दिनों में मीडिया में इंसेफेलाइटिस से मौतें, इंसेफेलाइटिस से जुड़े चिकित्सकों,नर्सों को महीनों-महीनों से वेतन न मिलने, पीएमआर विभाग के चिकित्सा कर्मियों को २७ महीने से वेतन नहीं मिलने, एलएमओ गैस प्लांट का पैसा न मिलने के कारण आक्सीजन सप्लाई पर संकट की खबरें आई हैं। खुद प्राचार्य पर मीडिया से बात न करने की शिकायतें हैं। ऐसे में सवाल उठाता है कि मेडिकल कालेज की खबरों पर आधिकारिक रूप से कौन बात करेगा। मेडिकल कालेज में आज यह भी चर्चा थी कि शासन और बड़े अफसरों के दबाव में प्राचार्य ने यह आदेश जारी किया है।

इतना ही नहीं, मनोज ने तो दस जुलाई को ही यहां तक लिख दिया था कि बकाया 63 लाख न मिलने पर कम्पनी ने बीआरडी मेडिकल कालेज में आक्सीजन की सप्लाई रोक दी है और मेडिकल कालेज में आज रात तक का ही है लिक्विड आक्सीजन का स्टाक। बीआरडी मेडिकल कालेज में आक्सीजन सप्लाई का संकट खड़ा हो गया है। लिक्विड आक्सीजन की सप्पलाई करने वाली कम्पनी ने बकाया 63 लाख रूपए न मिलने पर आक्सीजन की सप्लाई रोक दी है। बीआरडी मेडिकल कालेज में लिक्विड आक्सीजन का स्टाक आज रात तक का ही है। यदि आक्सीजन सप्लाई ठप हुई तो सैकड़ों मरीजों की जान पर खतरा आ जाएगा।बीआरडी मेडिकल कालेज के सेन्टल आक्सीजन पाइन लाइन आपरेटरों ने आज ही मेडिकल कालेज के प्राचार्य, प्रमुख चिकित्सा अधीक्षक, एनएचएम के नोडल अधिकारी को पत्र लिखकर इस बावत जानकारी दे दी है।

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जय बाबा गोरखनाथ

इस पत्र में कहा गया है कि लिक्विड आक्सीजन सप्लाई करने वाली कम्पनी पुष्पा सेल्स कम्पनी से आक्सीजन सप्लाई के बारे में कहा गया तो उन्होंने पिछला भुगतान किए जाने का हवाला देते हुए आक्सीजन की सप्लाई करने से मना कर दिया है। इस पत्र में कहा गया है कि आज सुबह 11 बजे तक लिक्विड आक्सीजन की रीडिंग 900 है जिससे आज रात तक ही आक्सीजन सप्लाई हो पाएगा।पुष्पा सेल्स कम्पनी ने मेडिकल कालेज में लिक्विड आक्सीजन का प्लांट स्थापित किया है जिससे मेडिकल कालेज से सम्बद्ध नेहरू चिकित्सालय में आक्सीजन सप्लाई की जाती है जिससे टामा सेंटर, वार्ड नम्बर 100, 12, 10, 14 व अन्य वार्डों में भर्ती मरीजों को आक्सीजन दी जाती है। इसमें तीन ऐसे वार्ड हैं जिसमें इंसेफेलाइटिस के मरीज भर्ती होते हैं.पुष्पा सेल्स कम्पनी ने एक अगस्त को बीआरडी मेडिकल कालेज के प्राचार्य को पत्र लिखकर कहा था कि मेडिकल कालेज पर 63.65 लाख बकाया है जिसका भुगतान बार-बार पत्र लिखने के बाद भी नहीं हो रहा है। यदि भुगतान नहीं हुआ तो आक्सीजन सप्लाई में बाधा आ सकती है। इस पत्र के बाद भी पुष्पा सेल्स कम्पनी को भुगतान नहीं हो पाया। इसलिए कम्पनी ने आक्सीजन की सप्लाई रोक दी है जिससे आक्सीजन का संकट खड़ा हो गया है।

और इस खबर छपने के चंद घंटों बाद ही कालेज में मौत ने अपने हत्‍यारें पंजे मासूम बच्‍चों की गर्दन पर गड़ा दिये।

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