मुख्य सचिव बोले: मुख्यमंत्री मानते हैं कि मीडिया से रिश्ते खराब
कुमार सौवीर
लखनऊ: हमारे एक करीबी मित्र हैं। पुलिस में बड़़े पद पर हैं और पूरे महकमे में और जहां-जहां भी रहे हैं, बहुत संजीदा-मेहनती होने का गौरव हासिल हुए हैं।
आज उन्होंने आज एक बात बतायी। बोले:- बदायूं काण्ड पर डीजीपी एएल बनर्जी का बयान बिलकुल दुरूस्त है, लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि यह घोषणा डीजीपी से पहले तो बदायूं के कप्तान ने करनी चाहिए थी। लेकिन शायद प्रदेश के राजनीतिक हालातों के मद्देनजर इस कप्तान में यह साहस बचा नहीं था।
इस अध्ािकारी का कहना है कि बदायूं-काण्ड बिलकुल आरूषि-काण्ड जैसा ही है, लेकिन जैसे उस मामले में मीडिया ने हल्ला मचाकर जांच की दिशा बदल दी, वैसे ही बदायूं में हो रहा है।
हां, सकता है कि इस अध्ािकारी की यह राय सच हो। हो सकता है कि मीडिया में इस मामले पर हुए हंगामा के चलते जांच में कई चीजें दबती रही हों। लेकिन इस बात से कैसे कोई मुंह मोड़ सकता है कि पुलिसिया कार्रवाई की हालत ने ही इस मामले को भड़काया। डीजीपी ने आज बताया कि रिपोर्ट लिखने से लेकर पेड़ से लटके शवों को उतारने ही नहीं, बल्कि सत्य-संधान के लिए जरूरी जांच-पड़ताल भी पूरे दौरान संशयों और विवादों से घिरा रहा।
मुख्य सचिव आलोक रंजन कहते हैं कि मामला छिपाने वाले डीएम और कप्तान पर कड़ी कार्रवाई होगी, डीजीपी भी बताते हैं कि यह ऑनर-किलिंग का मामला हो सकता है, लेकिन सवाल यह है कि फिर बदायूं के कप्तान पर अब तक क्या कार्रवाई की गयी। जाहिर है कि मुख्य सचिव और डीजीपी का ऐलान खुद ही विवादों-संशयों से घिरा हुआ है। सवाल तो यह भी है कि करीब एक पखवाड़ा हो जाने के बाद भी डीजीपी को अब यह इलहाम कैसे हुआ कि यह ऑनर-किलिंग का मामला है। आखिर इस सच को बोलने में डीजीपी को इतनी देरी क्यों हुई। और अगर देरी हुई तो सबसे पहले उनपर ही क्यों न कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए।
वैसे आज शाम को जब मुख्यसचिव, प्रमुख सचिव गृह और प्रमुख सचिव सूचना, डीजीपी समेत कई अफसरों ने इस बात को उगलना शुरू किया, तो पत्रकारों ने सवालों की झड़ी लगा दी। कहने की जरूरत नहीं है कि अन्तत: मुख्यसचिव समेत इन अफसरों ने ज्यादातर सवालों का जवाब ही नहीं दिया और प्रेस-कांफ्रेंस बर्खास्त कर डाली।
इसके पहले मुख्यसचिव आलोक रंजन ने बताया कि प्रदेश भर में गनर पाये लोगों से यह सुविधा वापस ले ली गयी है। इतना ही नहीं, उनका कहना था कि गो-कशी पर सरकार बहुत सख्त हो गयी है। सवाल यह है कि क्या इसके पहले गो-कशी पर सरकार सख्त नहीं थी। गजब करते हैं प्रदेश के अफसर।