यूपी बार कौंसिल का बड़ा फैसला, वकालत नहीं कर पायेंगे सेंट्रल बार के अध्‍यक्ष-महामंत्री

बिटिया खबर
: कुर्सी की मारामारी में जगतमामा का गुट चारोंखाने चित्‍त हो गया, प्रतिष्‍ठा मिटियामेट : पांच साल तक लागू रहेगा यह प्रतिबंध : चुनाव न कराके इन पदाधिकारियों ने संविधान का अपमान किया :

कुमार सौवीर
लखनऊ : कोई घाव जब नासूर बनने लगे तो डॉक्‍टरों की सख्‍त जरूरत होती है। लेकिन जब मामला वकीलों की राजनीति से जुड़ जाए, तो अच्‍छे-अच्‍छों के हौसले पस्‍त हो जाते हैं। खासकर दीवानी और कलेक्‍ट्रेट की बार एसोसियेशन के मामले में तो कोई हाथ ही नहीं डालना चाहता। जिस तरह कचेहरी क्षेत्र में हाल ही पूर्व सांसद बनवारी लाल कंछल को नंगा कर पीटा गया, वह न्‍यायिक क्षेत्र में बेहद दर्दनाक है। मगर लगता है कि राजधानी की दीवानी कचेहरी के बार एसोसियेशन में एक जबर्दस्‍त बदलाव आने के संकेत आने लगे हैं। यहां अवैध रूप से कुर्सी पर जमे पूर्व अध्‍यक्ष और महासचिव को यूपी बार कौंसिल ने वकालत से रोक दिया है। इन दोनों पर यह पाबंदी पांच बरस तक रहेगी।
ताजा खबर है कि उत्‍तर प्रदेश बार कौंसिल ने सेंट्रल बार एसोसियेशन में अध्‍यक्ष शिवशरण उपाध्‍याय और महासचिव ब्रजेश त्रिपाठी को पांच साल तक वकालत करने से रोक दिया है। यह आदेश बीती 20 अगस्‍त को जारी हुआ। कौंसिल में यह शिकायत नृपेंद्र पांडेय ने दर्ज करायी थी। शिकायत थी कि इन नेताओं ने बार एसोसियेशन के चुनाव लम्‍बे समय से लटकाये रखे। जिससे एसोसियेशन में अराजकता और सदस्‍यों में विश्‍वास का संकट खड़ा हो गया है। इसके पहले नृपेंद्र ने इस मामले को हाईकोर्ट में खींचा था, जहां स्‍पष्‍ट आदेश जारी हुए थे कि एक निश्चित समय सीमा के भीतर ही एसोसियेशन का चुनाव कराया जाना चाहिए। लेकिन इसके बावजूद जब इन पदाधिकारियों ने कोई भी कार्रवाई नहीं की, तो नृपेंद्र सीधे बार कौंसिल पहुंच गये। आपको बता दें कि सेंट्रल बार एसोसियेशन में छह हजार से ज्‍यादा वकील हैं।

इस पूरे विवाद को समझने के लिए कृपया निम्‍न लिंक पर क्लिक कीजिएगा:-
जगत-मामा का गुट चारोंखाने चित्‍त 

यूपी बार कौंसिल के पूर्व अध्‍यक्ष रह चुके हैं अखिलेश अवस्‍थी। वे इस पूरे विवाद के लिए अध्‍यक्ष और महासचिव को जिम्‍मेदार मानते हैं। अखिलेश अवस्‍थी इस फैसले पर इसलिए भी खास तौर पर उत्‍साहित हैं कि इससे वकालत में शुचिता और नैतिकता का अंकुरण बेहतर तरीके से होगा। वे कहते हैं कि भविष्‍य में वकीलों में एकजुटता का भाव उमड़ेगा। उनका कहना है कि इस ने यह भी साबित कर दिया है कि समूह को चंद लोगों की कठपुतली बनाने की कोशिशें अब आसान नहीं हो पायेंगी।
वैसे इस मामले में एक तथ्‍य और भी है। वह यह कि नृपेंद्र-मृगेंद्र बंधुओं का राजनीतिक झंझट उपाध्‍याय उर्फ जगत-मामा से खूब चल चुका है। जब मृगेंद्र पांडेय अध्‍यक्ष थे, तो उनकी कुर्सी खींचने की कोशिश मामा ने की थी, लेकिन इस बार पांडेय बंधुओं ने इस जगत-मामा के खिलाफ निर्णायक धोबी पाटा चला दिया। वैसे सच बात तो यही है कि सेंट्रल बार एसोसियेशन के ताजा विवाद पर बार कौंसिल का यह कदम सराहनीय है। हालांकि इस फैसले को चुनौती देने के लिए तैयारियां चल रही हैं। मगर इतना जरूर है कि दीवानी कचेहरी के ठस माहौल की जमीन पर बार कौंसिल का यह फैसला खासा खुशनुमा फुहार बन गया है।

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