मरते बुद्ध ने रोते भक्‍त के आर्तनाद पर आंखें खोलीं, मुस्‍कुराये और फिर देह त्‍याग दी

ज़िंदगी ओ ज़िंदगी

: सर्वोदय की किरणें बुला रही थीं बुद्ध की मृत्‍यु को, पर भिक्षुक को मुस्‍कान बांटने में व्‍यस्‍त रहे शाक्‍य-मुनि भक्‍त को : मौत तो भयावह होती है, पर महापरिनिर्माण की यात्रा में गौतम बुद्ध मुस्‍कुराते ही रहे : अपना अन्तिम प्रवचन-ज्ञान बुद्ध ने मुस्‍कुराहट का बांटा : शिष्‍य आनन्‍द लोगों की भीड़ को झिड़कता रहा, तथागत मुस्‍कुराते रहे : डॉक्टर साहब ! चलो, बुद्धम् शरणम् गच्‍छामि (दो)

कुमार सौवीर

लखनऊ : सुबह की किरणों की छटा धरती पर आने के लिए वस्‍त्र-विन्‍यास कर रही थीं, उनके स्‍वागत के लिए पूरे जगत में परिन्‍दों का कलरव-कोलाहल हो रहा था। हर व्‍यक्ति अपने-अपने दायित्‍वों-कर्मों में व्‍यस्‍त था। पूरी प्रकृति असहज थी। पूरे कुशीनगर में श्‍मशान-सी हालत थी। जहां भी देखो, जन-समुद्र उमड़ रहा था। हर व्‍यक्ति में अनिष्‍ट की आशंका या प्रतीक्षा थी। हर शख्‍स सहमा हुआ था। आखिर होता भी क्‍यों नहीं। आज तो मृत्‍यु-शैया पर लेटा तेजोमय और अद्भुत कांतिमय चेहरा दमक रहा था। अशक्‍त लेकिन उर्जा से भरपूर। शांत, लेकिन अपनी मृत्‍यु की प्रतीक्षा में। चक्षु के विशाल कोटर हमेशा-हमेशा के लिए बंद होने के लिए आतुर थे। अचानक एक आहट ने उसकी तपस्‍या को भंग किया। उसने आंखें खोली, सामने एक भिक्षु था। आकुल-व्‍याकुल भिक्षु देख कर उस शव-प्राय व्‍यक्ति के चेहरे पर फिर ललक उमड़ी, उसने अपने होठों को स्मित-मुस्‍कान से फैलाया। हल्‍की सी हंसी फैलायी और उसके बाद फिर शांत। हमेशा-हमेशा के लिए।

यह बुद्ध थे। शाक्‍य-गौतम, जिन्‍हें सिद्धार्थ और फिर बाद में महात्‍मा बुद्ध कहा गया। तथागत उन्‍हीं का नाम था। इस शख्‍स ने अपना राजसी जीवन त्‍याग दिया था, केवल इस लिए कि जीवन का कैसे समझा, समझाया और लोगों को व्‍याख्‍यायित किया जा सके। इसके लिए उसने अपने सुख को त्‍यागा, परिवार और बच्‍चों को त्‍यागा और फिर सीधे वन-प्रस्‍थान कर गया। यह वक्‍त है आज के करीब 26 सौ साल पहले का।

पूरा जीवन बुद्ध ने पहले सृष्टि, प्राणी, मानव और फिर अपने जीवन को समझने में लगाया। उसका संकल्‍प-संदेश था सबका मंगल को, सब सुखी हों और सब का कल्‍याण हो। इसके लिए बुद्ध ने कभी भी किसी चमत्‍कार का मार्ग नहीं अपनाया। सीधे-सीधे दो-टूक बात की, जो सृष्टि ने सृष्टि को संचालित करने के लिए प्रारम्‍भ से ही तैयार और संचालित कर रखी थीं। उसने बताया कि दुख क्‍या है और सुख क्‍या है। बताया कि वर्तमान में जीना चाहिए, उसकी अनुभूतियों को समझना चाहिए। बताया कि भूत या तो कष्‍ट देता है, इसलिए वह दुख है। उधर जो भविष्‍य है वह भी चूंकि अनिश्‍चत है, इसलिए वह भी कष्‍टकारी होने के चलते दुख का कारण है।

बुद्ध ने अपनी इन प्राप्तियों के लिए बहुत कुछ त्‍यागा, बहुत भोगा और बहुत लांछन सहन किया। लेकिन मानवता के कल्‍याण के लिए उसने जो भी किया, वह सदा-सर्वदा के लिए अमिट हो गया।

बुद्ध की इन्‍हीं प्राप्तियों में से एक है सब का कल्‍याण हो, सब का मंगल हो और सब सुखी हों। लेकिन यह संदेश केवल प्रवचन तक नहीं था, उसे आत्‍मसात करने के लिए बुद्ध ने न केवल खुद को साधा, बल्कि उसे पूरी सृष्टि को समझाने के लिए कमर भी कस ली। इसमें सबसे महत्‍वपूर्ण संदेश था:- बुद्ध की हल्‍की मुस्‍कान, जो किसी भी भीषण तप्‍त, पीडि़त, कष्‍ट से जूझते व्‍यक्ति के हर कष्‍ट को समाप्‍त कर देती थी। त्राण दे देती है।

इसीलिए जब बुद्ध ने अपनी मृत्‍यु के लिए समय निश्चित किया, तो तय किया कि उनके महा-परिनिर्वाण का समय उषा-काल होगा।

हालांकि बुद्ध ने अपने शिष्‍य आनन्‍द से साफ कह दिया था कि उनकी मृत्‍यु का समाचार किसी को भी नहीं दिया जाए। वे नहीं चाहते थे कि उनकी देह-त्‍याग की सूचना से लोग विह्वल न हों। लेकिन आनन्‍द भावावेश में था। उसने सभी शिष्‍यों को बता दिया, शिष्‍यों ने पूरे आश्रम को और फिर यह खबर पूरे गांव होते हुए पूरे कुशीनगर और आसपास तक जंगल की आग की तरह फैल गयी। रात तक जन-समुद्र लहराने लगा बुद्ध के आसपास।

इसीलिए एक भक्‍त रोने-चिल्‍लाने लगा कि उसे बुद्ध का दर्शन करना है। आनन्‍द समेत सारे शिष्‍य उसे शांत कराने लगे। उधर बुद्ध अपनी मृत्‍यु का आह्वान करने के लिए अपनी आंखों को हमेशा-हमेशा के लिए बंद कर खुद को मृत्‍यु के हवाले करने जा रहे थे।

लेकिन अचानक यह आर्त-शोरगुल सुन कर बुद्ध ने अपनी पलकें खोलीं। बिलखते भक्‍त को देखा, इशारा का पास बुलाया और हल्‍की सी मुस्‍कान डाल दी। इतने में ही भक्‍त तृप्‍त हो गया और बुद्ध ने फिर से अपनी महा-परिनिर्वाण यात्रा शुरू कर दी।

हमेशा-हमेशा के लिए खुद को खत्‍म करने की यात्रा, सबके कल्‍याण के लिए, सबके मंगल के लिए और सबको सुखी करने के लिए बुद्ध पुन: मानवता के हृदय में बस गया।

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डॉक्टर साहब ! चलो बुद्धम् शरणम् गच्‍छामि

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