मासूम शिकार बन गयी हवस की, इसे स्कूल भेजो
संजीव कुमार मिश्र
नई दिल्ली : बचपन में हुई बीमारी ने आंखों की रोशनी छीन ली। होश संभाला तो सिर से पिता का साया उठ गया। मां पर इकलौती नेत्रहीन बच्ची के भरण-पोषण की जिम्मेदारी आ गई।
दस वर्षीय बच्ची ने कई बार पढ़ने की इच्छा जताई, लेकिन कभी उसकी नेत्रहीनता तो कभी पैसे की कमी के चलते मां अपनी बच्ची के सपनों को पूरा करने में खुद को लाचार पाती थी। किसी तरह पाई-पाई जोड़कर मां ने बच्ची का नामांकन एक स्कूल में करवाया, लेकिन सड़क पार करते समय कोई हादसा न हो जाए, इस वजह से पढ़ाई रुकवा दी।
परिवार पर आफत तब आई, जब इसी साल जनवरी महीने में घर में अकेली नेत्रहीन बच्ची को पड़ोसी ने हवस का शिकार बनाया। दुष्कर्म की काली स्याही को अब यह बच्ची शिक्षा के उजाले से दूर करना चाहती है। वह पढ़ना चाहती है, लेकिन पिछले चार महीने से स्कूलों के चक्कर लगाने के बाद भी परिवार उसका दाखिला करा पाने में सफल नहीं हो पाया है।
पीड़ित बच्ची के मौसा ने बताया कि नेत्रहीनता के कारण उसको स्कूल प्रवेश देने पर टालमटोल कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि पढ़ाई के संबंध में अभी तक किसी भी सरकारी संस्था ने संपर्क भी नहीं किया है। वहीं राजेन्द्र प्लेस स्थित नेत्रहीन स्कूल की प्रधानाचार्य से मुलाकात भी हुई। लेकिन अभी तक सिर्फ उन्होंने आश्वासन ही दिया है।
बच्ची के चेहरे से हंसी गायब हो गई पीड़ित बच्ची के मौसा ने बताया कि बच्ची अपनी मां के साथ मध्य दिल्ली के करोलबाग इलाके में रहती है। बचपन में बीमारी से उसकी आंखे चली गई। चार साल पहले पिता की कैंसर से मौत के बाद परिवार के खर्च की जिम्मेदारी मां पर आ गई। फिर अचानक इसी साल जनवरी माह में घर में अकेली बच्ची से पड़ोसी ने दुष्कर्म किया।
दुष्कर्म के बाद पुलिस ने आरोपी को तो पकड़ लिया, लेकिन बच्ची के चेहरे से हंसी गायब हो गई। हादसे के कुछ दिन बाद बच्ची ने पढ़ने की इच्छा जाहिर की तो मां और मौसा ने स्कूलों के चक्कर लगाने शुरू किए। लेकिन अभी तक प्रवेश नही मिला। जागरण.काम