भरे चौराहे फालूदा बन गया ब्‍यूरो-चीफ की इज्‍जत का, बीवी साथ में थी

सैड सांग

: एक बड़े अखबार के ब्‍यूरो चीफ ने लगायी ठेलेवाले से शर्त, लेकिन जब करारा जवाब मिला, तो खींच कर तमाचा रसीद कर दिया ठेलेवाले को : हादसे पर एकजुट हो गये ठेलेवाले, पुलिस भी लाचार बनी रही, हरदोई में पहली बार ऐसी सनसनीखेज वारदात :

मेरी बिटिया डॉट कॉम संवाददाता

हरदोई : यह तो कोई बात नहीं। अरे माना कि आप बड़े पत्रकार हैं, बड़े पत्रकार से जुड़े हैं, लेकिन इसका यह मतलब कैसे हो सकता है कि आपकी हर अभद्रता को हर शख्‍स बर्दाश्‍त ही करता रहे। अगर किसी ठेलेवाले से आप बेवजह हुज्‍जत कर रहे हैं, और उसने पूरी शालीनता के साथ आपकी बात का खंडन कर दिया, तो इसका मतलब यह तो नहीं कि आप अपने पत्रकारीय-धौंस में किसी गरीब ठेलेवाले को भरे चौराहे पर तमाचा रसीद कर देंगे?

बहरहाल, किस्‍सा यह है कि इस मारपीट के बाद चौराहे पर अपना ठेले लगाये सारे दुकानदार एक जुट हो गये। उधर कई पत्रकारों ने पुलिस को फोन कर अपनी धौंस-पट्टी का वास्‍ता दिया। मगर एकजुट हो चुके ठेलेवालों का कुछ भी नहीं उखड़ पाया। हार कर सारे पत्रकार अपना मुंह लटकाये वापस अपने घर चले गये। लेकिन पत्रकार जी के घर बीवी-बच्‍चों में यह हादसा काफी सुलगता ही रहा।

हालांकि यह घटना कुछ दिन पुरानी है, लेकिन इसका सबक खासा गम्‍भीर और काफी दिलचस्‍प है, जो पत्रकारों में अपनी पत्रकारिता की धौंस-पट्टी वाली अराजकता का परिचायक है।

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पत्रकार पत्रकारिता

हुआ यह कि आम का सीजन अपने पूरे शबाब पर था और हरदोई के एक बड़े अखबार के ब्यूरो चीफ अपनी पत्नी के साथ रात करीब 9 बजे सिनेमा चौराहे पर आम खरीदने गए हुए थे। आम के ठेले पर आम विक्रेता दशहरी आम को डाल का बता रहा था, जबकि पत्रकार महोदय का दावा था कि वह पाल के हैं, वो झूठ बोल रहा है।

बात बहस में तब्दील हो गई और पत्रकार महोदय बोले कि शर्त लगा लो आम पाल के ही हैं। आम विक्रेता ने अपनी जेब से नोटों की दिनभर की आमदनी की गड्डी निकाल कर ठेले पर रख दी (लगभग 5000 रहे होंगे) बोला कि आपके पास इतने पैसे हों तो शर्त लगा लीजिए आम डाल के ही हैं। यह सुनकर पत्रकार साहब को गुस्सा आना लाजमी ही था, एक अदना सा ठेलेवाला उनसे इस तरह बात कर रहा है लिहाजा बात बहस से काफ़ी आगे बढ़ गयी, पत्रकार महोदय को गुस्सा आ गया और उन्होंने आम वाले को एक थप्पड़ मार दिया।

यह देख कर आस पास खड़े खोमचे वाले और अन्य ठेले वाले वहां इकट्ठा हो गए और पत्रकार की इस हरकत का विरोध करने लगे। अपने को घिरा देखकर उन्होंने एक दूसरे बड़े अखबार के साथी को फोन कर दिया और चंद ही मिनट में 2-3 पत्रकार वहां मौजूद थे। बीच बचाव करने वाले दूसरे पत्रकार ने ठेले वाले से उनका परिचय देकर और पैर छूकर माफी मांगने को कहा। लेकिन आम का ठेला वाला भी स्वाभिमानी था, उसने माफी मांगने और पैर छूने से साफ इंकार कर दिया।

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हद्दोई

इस बीच पत्रकार महोदय के बुलावे पर घटनास्थल पर पुलिस की 100 नंबर की गाड़ी भी आ गई। मामला चूंकि पत्रकारों से जुड़ा था इसलिए पुलिस उसे कोतवाली ले जाने पर आमादा थी। लेकिन वहां एक दो शरीफ पत्रकार भी पहुंच गए थे जिन्होंने आम वाले की गलती ना होने की बात कह कर पुलिस से मामला रफा-दफा करवा दिया।

इसके बाद का घटनाक्रम बेहद दिलचस्प है- पत्रकार महोदय की पत्नी ने कहा कि छोड़िए झगड़ा और किसी दूसरे ठेले से आम खरीद लीजिए। लिहाजा दोनों दूसरे ठेले पर आम खरीदने पहुंचे लेकिन अब दूसरे फल विक्रेता का भी हौसला देखिए कि दूसरे ठेले वाले ने कहा कि मुझे अगर आप एक हजार रुपए किलो का दाम भी दें तब भी आपके हाथ आम नहीं बेचूंगा।

बेचारे पत्रकार महोदय बिना आम खरीदे ही घर वापस लौट गए, बीवी ने झाड़ पिलाई वो अलग।

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