बड़े महानगरों के रजिस्टर पर दर्ज हैं जोश में बेहोश युवतियों के नाम

ज़िंदगी ओ ज़िंदगी

: शोषण की दहलीज पर गिरीं कई पूजा तिवारी जैसी लाशें, कुछ गिरायी गयीं, तो किसी ने किसी दूसरे को जप लिया : कुछ इतिहास में हैं, कुछ खप गयीं, तो कुछ जिन्दादिल आज भी जिन्दा हैं : यह वे लाशें हैं, जो अपने जोश में बेहोश हो चुकी थीं : उनके हालातों को पहचानिये, और बचा लीजिए जिन्दा बच्चियों को लाश बनने से रोकने से : सपनों पर सवार तितलियां अपने होश बेकाबू हो जाती हैं, श्रंखला- एक :

कुमार सौवीर

नई दिल्ली : आपने जोश में बेहोश हो चुकी युवतियां खूब देखी हैं ना? तो आइये अब आइये, हम आपको ऐसी ही चंद जिन्दादिल युवतियों से आपकी मुलाकात कराते हैं जो अपनी बेलगाम हरकतों के चलते खुद को लाश में तब्दील कर दिया। यह तो कहानी है लाशों की, लेकिन सफलता की दौड़ में अपना होश-हवास खो चुकी महिलाओं में से अगर लाशों को हटा दिया जाए, तो आज ऐसी युवतियों की तादात बड़ी विशाल है जो या तो अपनी बर्बादी में खप गयीं, या फिर उन्होंने मौका का फायदा उठाया और फिर अपनी सफलताओं की शिखर तक पहुंच गयीं।

कहने की जरूरत नहीं कि हमारे देश के बड़े महानगरों में ऐसे तीनों श्रेणी की युवतियों की तादात बेहिसाब है। ऐसे रूपहले राजमार्ग में सपनों के झोंकों पर सवार बेहोश-मदान्ध युवतियां का नाम महानगर की क्रूर-संस्कृति के माथे पर दर्ज हो चुका है। ऐसे सपनों की सवारी या तो इन युवतियों ने चुनी है, या फिर उन्हें जिसने सहारा दिया, उसने उनका पूरा का पूरा मूल्य चुकाया। किसी ने उनके शरीर को खरीदा, किसी ने उनकी देह-यष्टि को बाजारू बना डाला, किसी ने उन्हें मौत की अनबूझ खाई में फेंक दिया। लेकिन कुछ ऐसी युवतियां ऐसी भी रहीं जिन्होंने अपने ऐसे क्रूर-व्यवसायी सहायकों को औकात  में खड़ा कर दिया, या फिर उन्हें रौंद कर अपना रास्ता खुद ही बना डाला।

सफलता की अंधी दौड़ में उछलती युवतियों में कुछ अंधी युवतियां मर गयीं, कुछ खप गयीं, और जो बाकी थीं, वे जीत गयीं। लेकिन समस्या यह है कि जो अपनी हालातों के मकड़जाल को तोड़ नहीं पायीं, और असमय मौत के गले लग गयीं, उनको तो हम आसानी से जान-पहचान जाते हैं, लेकिन जिन्हें हालातों ने तोड़ा लेकिन इसके बावजूद वे जिन्दा हैं, उनके बारे में हम खुल कर बयान तक नहीं कर सकते। वजह यह कि उनका ब्योरा खुलासा कर देने का मतलब यह होता है कि हम उन्हें आत्महत्या के लिए मजबूर करें। और जाहिर है कि हम या आप ऐसा कभी भी नहीं कर सकते। गलती या स्वप्न में भी नहीं।

तीसरी श्रेणी की उन युवतियों की है, जिन्होंने किन्हीं भी आधार पर अपने शोषण और शोषक का पिण्‍ड छुड़ाया और अपना अलग अस्तित्व और पहचान दिला दे दिया। कई ऐसी भी महिलाएं ऐसी हैं जो अपने शोषण करने वालों का धुआं निकाल चुकीं और फिर बाकायदा किसी विश्व विजेता की तरह आज सिर पूरे गर्व के साथ उठाये घूम रही हैं। लेकिन ऐसी युवतियों में अधिकांश ने अपनी जीत तो दर्ज कर ली, लेकिन इसके बावजूद वे अपने अतीत को अपने साथ झटक कर बिलकुल अलग पायदान पर खड़ी हो गयीं। वे अब हरगिज नहीं चाहती हैं कि उनके अतीत का कोई भी दाग या रिश्ता उनके साथ चस्पां हो सके।

पिछले कुछ बरसों में ऐसी युवतियों की तादात खासी इजाफा कर चुकी हैं। पिछड़े या छोटे परिवारों से निकली इन युवतियों में जोश तो बेहिसाब होते हैं, लेकिन साधन बिलकुल नहीं। उनकी इसी हालत के बंजर खेत में कैसे सावन के तौर पर अवतरित होते हैं सुहाने झोंके, आइये, अगले एक हफ्ते तक हम लोग इसी पर विचार-विमर्श और चिंन्‍तन करें। इस बारे में आपकी जानकारियां, आपके सुझाव और आपका सक्रियता आपके-हमारे इस अभियान को बेहिसाब सफलता दिला सकता है। बशर्ते हम एकजुट प्रयास करें और कुछ ठोस नतीजे तक पहुंच सकें। (क्रमश:)

यह लेख कई खण्डों में सिलसिलेवार चलेगा। इस लेख में शामिल aras lonut 2013 का फोटो

उपलब्‍ध कराने के लिए हम अपनी पाठिका, बेटी आशु चौधरी के आभारी हैं और उसकेे भावपूर्ण सहयोग के लिए ऋणी हैं।

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बेटियों के सपने बन चुके हैं बेहोश तितलियों के पंख

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