लम्हों ने खता की, सदियों ने पाई सजा
: बेगम का जन्म सन-21 में हैदराबाद में हुआ : शिक्षा-दीक्षा के बाद पिता के साथ लखनऊ आईं : यहीं सन-38 में मेजर जनरल हबीबुल्ला से निकाह :
साशा सौवीर
लखनऊ : चेहरे पर झुर्रियां, कंपकंपाती आवाज, धुंधली याद्दाश्त, लेकिन आंखों में गजब की चमक और मन में युवतियों को आगे बढ़ते देखने ललक। कुछ ऐसी है की शख्सियत। 90 वर्ष की उम्र में भी वह स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान हुए रक्त पात को याद कर क्रोधित हो उठती हैं। महात्मा गांधी का जिक्र आते ही भावुक हो उठती हैं और याद करती हैं, कैसे वह कई-कई दिन तक अनशन पर बैठ जाते थे, अपने लिए नहीं, उन लोगों के लिए जिनको थी आजादी की आस।
बीती बातों को याद कर उनकी आंखें भर आती हैं। हौले से कहती हैं, भारत-पाकिस्तान एक ही हैं। उस दौर में कुछ लोगों से ऐसी गंभीर खता हो गई कि हंसता-खेलता मुल्क दो टुकड़ों में बंट गया। वहां से पनपा आक्रोश, हुई मार काट और नजर लग गई देश की सुख-शांति को। आज तक लोग उस अपराध की सजा भुगत रहे हैं और आगे भी भुगतते रहेंगे। महात्मा गांधी के बाबत कहती हैं, जीवन में सुधार उन्हीं से सीखा। वह दिन था और आज का दिन है, कभी भी उठने का समय नहीं बदला। उम्र के इस पड़ाव में भी बेगम सुबह पांच बजे बिस्तर छोड़ देती हैं।
पांच वक्त नमाज न पढ़ पाने का मलाल है। कहती हैं कि कुछ वर्ष पहले तक एक भी नमाज नहीं छोड़ती थीं। अल्लाह को इस जीवन के लिए धन्यवाद देना उनकी दिनचर्या का हिस्सा था, लेकिन कुछ समय से तबीयत खराब होने के चलते हर दिन पांचों वक्त की नमाज तो नहीं हो पातीं हां, सुबह की नमाज कभी नहीं छूटती।
उतार फेंकी थी टोपी
बेगम बताती हैं कि वह महज पांच वर्ष की थीं जब उन्होंने महात्मा गांधी को विदेशी कपड़ों के खिलाफ आंदोलन करते देखा। उस वक्त कुछ समझ ही नहीं आया, खुद को ऊपर से नीचे तक देखा और केवल टोपी को ही विदेशी पाया। फिर क्या था वहीं टोपी उतार कर फेंकी। दादा अंग्रेजों के करीबी थे, इसलिए इस हरकत पर काफी नाराज हुए थे।
आत्मनिर्भर बनें महिलाएं
बेगम हमीदा की एक ही ख्वाहिश है कि महिलाएं अपने पैरों पर खड़ी हों। वह कहती हैं कि इसके लिए महिलाओं को घूंघट या बुर्के से बाहर आने की जरूरत नहीं है, अपनी मर्यादा में रहकर ही वह काम करें। कढ़ाई, सिलाई, बुनाई महिलाएं घर में ही कर सकती हैं।
हालातों ने बनाया मजबूत
बेगम कहती हैं कि महिलाओं के लिए काम करने की प्रेरणा हालातों से मिली। हैदराबाद में माहौल अच्छा था। थोड़ी बड़ी हुई तो देखा कि कितनी ही महिलाएं पुरुषों की कठोरता का शिकार हैं। पुरुषों को कैसे बदलती, तो महिलाओं में ही आत्मविश्वास जगाने की अलख जगा दी। शादी हुई तो सास पढ़ी-लिखी नहीं थीं, पर अपनी बेटियों की शिक्षा के प्रति बहुत सजग थीं, उनसे भी प्रेरणा मिली।
जहर है जातिवाद
बेगम हमीदा का कहना है कि जो गलती वर्षो पहले हो गई थी वह दोहराई न जाए। सभी सियासी दल यदि नफा-नुकसान को परे रखकर आमजन के लिए काम करेंगे तभी देश संपन्न हो पाएगा। जातिवाद एक ऐसा जहर है जो सबको ले डूबेगा। इससे दूर खड़े रहकर सबके बारे में सोचें।
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बेगम हमीदा हबीबुल्लाह से उनकी यह बातचीत आज दैनिक जागरण में प्रकाशित हुई है। साशा सौवीर दैनिक जागरण के लखनऊ संस्करण में रिपोर्टर के पद पर कार्यरत हैं। वे मेरी बिटिया डॉट कॉम की संस्थापक भी रह चुकी हैं। साशा से sashasauvir@yahoo.com अथवा sashasauvir@ymail.com से सम्पर्क किया जा सकता है।