कांग्रेस बेरोजगार, सपा मूर्ख और भाजपा में पवित्रता का पाखण्ड

मेरा कोना

: न्यूज चैनल “इण्डिया न्यूज” में इसी पर चली जोरदार बहस : बलिया में कुकिंग सिलेंडर बांटना पूर्वांचल के विकास के दावे का माखौल : गैस नहीं, ठोस रोजगार और जीवन-यापन का सहारा थमाइये पूर्वांचल को :

कुमार सौवीर

लखनऊ : कांग्रेस तो पिछले पचीसों बरस से बेरोजगारी से इस तरह त्रस्त है, कि उसके पास कुछ सोचने-करने तक की हैसियत नहीं बची। यूपी में काबिज सपा सरकार का नरेंद्र मोदी सरकार पर गुस्सा इस बात पर भड़का रहता है कि वे उसने पूर्वांचल में जपानी इंसेफेलाइटिस जैसी महामारी बीमारी का निदान क्यों नहीं किया, पेयजल का समाधान क्यों नहीं किया गया और क्यों इस पूरे इलाके में सड़कें इतनी बर्बाद-तबाह हैं। लेकिन सपा के लोग यह आरोप लगाते वक्त भूल ही जाते हैं कि स्वास्‍थ्‍य पानी और सड़क के मसले केंद्र सरकार के नहीं, बल्कि सीधे प्रदेश सरकार का मसला है। उधर भाजपा के लोग अपनी पीठ तो ठोंकते हैं कि बलिया में थाली के बजाय कमल के पत्तों पर भोजन करना उनकी पवित्र परम्पराओं में से एक है।

अब यह सवाल सीधे भाजपा से कि अगर पत्तल पर भोजन करना आपकी पवित्र परम्पराओं में से एक है, तो फिर पहली मई को नरेंद्र मोदी जी बलिया में कुकिंग गैस वितरण की योजना क्यों प्रारम्भ कर रहे हैं? अगर पत्तल श्रेष्ठ परम्परा है तो फिर गोबर के उपले-कण्डों पर भोजन पकाना भी तो हमारे भारतीय ग्रामीण परिवेश में पवित्रतम कर्म क्यों माना जाता है। फिर कुकिंग सिलेंडर की क्या जरूरत है?

लेकिन नहीं, आपको अपनी बात कहने में तर्क चाहिए। वह यह कि भोजन पकाने में हरे-भरे वृक्षों की भारी कटाई होती है, पर्यावरण तबाह होता है, लकड़ी जलती है तो धुंआ निकलता है। भाजपा के एक मीडिया प्रवक्ता ने दावा किया है कि एक चूल्हे से एक बार भोजन पकाने से चार सौ से ज्यादा सिगरेटों का धुंआ निकलता है। क्या बेवकूफी हो रही है? तो फिर सबसे पहले सिगरेट को बुझाओ न। मेरा दावा है कि कोई भी ग्रामीण भोजन के लिए हरा वृक्ष का संहार नहीं करता। उसमें इतना ही साहस नहीं है। वे हरे पेड़ को काटना अपने पूत-संतान की हत्या के बराबर मानता है। सपने में भी वह हरा पेड़ नहीं काट सकता। और आप लकड़ी की बात कह रहे हैं? खैर चलिए, मान किया कि आपको लकड़ी की चिंता है तो पूरे देश भर में सिलेंडर मुहैया कराओ। केवल बलिया में ही क्यों।

लेकिन नहीं, आप ऐसा नहीं कर पायेंगे। इसलिए, क्योंकि यूपी में चुनाव अब सिर पर है। आपको बुंदेलखंड पर चल रही समाजवादी पार्टी की तत्परता के सामने एक नया पहाड़ खड़ा करना ही है। वरना आप पिछड़ जाएंगे। अब चूंकि आप इस पूरे अति आर्थिक पिछड़ेपन से शिकार पूर्वांचल के बलिया में कोई आजीविका की कोई योजना, उद्योग या कोई उपक्रम खड़ा नहीं कर सकते हैं, तो आपके लिए सबसे आसान तरीका केवल सिलेंडर बांटना ही है, जिसका झेल पाना बलिया के 99 फीसदी ग्रामीणों के वश की बात नहीं।

आप उस घटना को पूरी तरह भूल चुके हैं जब पड़ोसी जिले गाजीपुर के गहमर गांव के निवासी और प्रथम लोकसभा के सदस्य विश्वनाथ सिंह गहमरी ने संसद में पूर्वांचल की बदहाली कुछ इस तरह बतायी कि इस पूरे इलाके में गरीब लोग अपनी भूख मिटाने के लिए बैल-गोरू के गोबर से बीन कर अन्न जुटाते और उसे पका कर खाते हैं। यह घटना बताते वक्त गहमरी फूट कर रो पड़े थे। हालात ऐसा बना कि नेहरू जी भी रो पड़े और पूरी की पूरी संसद फफक कर रो पड़ी थी। लेकिन पूर्वांचल की बदहाली आज तक नहीं मिट पायी।

न्यूज चैनल “इण्डिया न्यूज” में आज मैंने यह बात कही और पूरी शिद्दत के साथ कही।

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