बड़े पत्रकारों ! तुम्‍हारे सवाल प्रायोजित हैं, या तुम्‍हें इत्‍ती भी समझ नहीं

बिटिया खबर
: सुभाष मिश्र और प्रांशु मिश्र ने जो हरकत की, वह थी बेहद शर्मनाक : सपा-बसपा की संयुक्‍त प्रेस-कांफ्रेंस में ने सो-कॉल्‍ड बड़े पत्रकारों ने मूर्खतापूर्ण सवाल उठाये, जबकि बाकी पत्रकारों के सवालों के लिए जगह तक नहीं छोड़ी :

कुमार सौवीर
लखनऊ : छोटे पत्रकारों के हक छीनना बड़े पत्रकारों की आदत है या फिर उनका पेशा, यह सवाल इधर बहुत शिद्दत के साथ उछलने लगा है। कई मामलों में यह साफ दिखने लगा है कि लखनऊ के बड़े पत्रकार प्रायोजित यानी स्पांसर्ड सवाल उठाने लगे हैं। खास कर विगत दिनों सपा-बसपा की संयुक्त प्रेस-कांफ्रेंस में पत्रकारों ने जिस तरह हरकतें कीं, वह उन पर मंडरा रहे ऐसे सवालों की जमीन मजबूत ही कर रही है।
हाल ही एक संवाददाता-सम्मेलन में ठीक कुछ यही सब हुआ। अपने-अपने पसंदीदा पत्रकारों के माध्यम से बड़े नेताओं ने कई सवाल बुने, लेकिन अब यह पांसा गलत पड़ गया या फिर पत्रकार ही लगातार मूर्खतापूर्ण व्यवहार करने लगे, पता ही नहीं चला। मगर इस पूरी कवायद में इतना जरूर हुआ कि खास-पत्रकारों की ऐसी करतूतों के चलते आम पत्रकारों की हक-तलफी हो गयी। और शर्मनाक बात यह हुई कि इसका जिम्मेदार लोगों में वह बड़े पत्रकार भी शामिल रहे, जो कभी मान्यताप्राप्त संवाददाता समिति के सर्वेसर्वा हुआ करते थे और आज भी जबतब हस्तक्षेप कर पत्रकार राजनीति में अपनी टांग फंसाये रहते हैं।
आपको बता दें कि मायावती और अखिलेश यादव ने विगत दिनों राजनीतिक गलबहियां कीं, और उसके बाद अपने इस बहु-चर्चित राजनीतिक बुआ-भतीजा रिश्तों को निभाने के लिए तयशुदा शर्तों को सरेआम करने के लिए प्रेस-कांफ्रेंस आयोजित की थी। प्रेस-कांफ्रेंस में मायावती और अखिलेश यादव से सवाल पूछने के लिए पत्रकारों को सिलसिलेवार आमंत्रित करने का जिम्मा उठाया था बसपा के ब्राह्मण-पोस्टर सतीश चंद्र मिश्र ने। जाहिर है कि लहजा ठीक वही था कि, अंधा बांटे रेवड़ी, फिर-फिर अपने को दे। यह तब हुआ जब ताज होटल के छोटे से क्रिस्टल हॉल में पत्रकारों की भारी भीड़ उमड़ी थी और इस गठबंधन को लेकर बेशुमार सवालों की गठरी बांधने तैयार थे वे पत्रकार।
मगर सतीशचंद्र मिश्र ने पहली बांग दी एबीपी न्यूज के पंकज झा को, कि वे पहला सवाल पूछें। खैर, पंकज झा उस वक्त काफी पीछे बैठे थे, और वहां तक माइक पहुंचने में खासा वक्त लगने लगा। मगर इसके बावजूद पंकज ने पूछा और बेहतर सवाल पूछा। मगर इसके बाद प्रांशु मिश्र ने एक निहायत सतही सवाल उठा लिया कि सन-19 के बाद यह गठबंधन मजबूती के साथ बना ही रहेगा या फिर नहीं। जाहिर है कि यह एक अनावश्यक और बेहूदा सवाल था। इसके बाद सतीश चंद्र मिश्र ने सुभाष मिश्र ने अपना लहजा कुछ ऐसा बनाया जैसे वो कोई बहुत गंभीर सवाल उठाने वाले हैं जिसे सुनकर मायावती और अखिलेश भौंचक्के हो जाएंगे।
सुभाष ने पूछा कि प्रस्तावित प्रधानमंत्री के लिए आपका कौन व्यक्ति होगा। धत्त तेरी की। लगा जैसे किसी खास फूले गुब्बारे की सारी हवा एक झटके से फुस्स हो गयी और गुब्बारा गोल-गोल नाचता हुआ आसमान की ओर उड़ने लगा। यह सवाल तो कुछ ऐसा ही रह कि न सूत न कपास, जुलाहों में लट्ठामलट्ठा।
साफ लगा कि मानों बड़प्पन की कलई ही उतर गई।
लेकिन इससे भी बदतर हालात तो तब हुई जब सतीशचंद्र मिश्र ने ऐलान कर दिया कि चूंकि किसी पत्रकार के पास कोई सवाल नहीं है, इसलिए यह प्रेस कांफ्रेंस समाप्त की जा रही है। यह तब हुआ जब हॉल में मौजूद कई पत्रकार अपना सवाल पूछने की आपाधापी में थे, लेकिन इस समापन-घोषणा से उनके सवालों की भ्रूण-हत्या ही हो गयी।
शर्मनाक बात तो यह रही कि किसी भी बड़े पत्रकार अथवा पत्रकार नेता ने इस अचानक समापन-घोषणा पर कोई भी ऐतराज नहीं जताया। बल्कि वहां मौजूद बडे पत्रकार बाकी नेताओं के पास बतियाने, फोटो खिंचवाने में व्यस्त हो गये। जबकि बाकी पत्रकार मायूस हो गये।

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