: अन्त्येष्टि के मौके पर तो हजारों वकील जुटे, लेकिन अब पसर गया सन्नाटा : कोई भी इस मामले पर खुलेआम बोलने पर तैयार नहीं : दोलत्ती ने तैयार किया है हादसे के दौरान हालातों और कारणों की काल्पनिक कहानी :
कुमार सौवीर
लखनऊ : रमेश चंद्र पांडेय की आत्महत्या ने जन-समाज को भले ही बुरी तरह मथ दिया हो, लेकिन सच बात यही है कि इस हादसे के चंद दिनों में ही यह हादसा खून की पपड़ी की तरह सूखने और उखड़ने लगा है। अत्येष्टि के मौके पर करीब पांच हजार वकीलों का भारी जमावड़ भैंसाकुण्ड में घंटों तक यातायात ठप कर चुका था। लेकिन उसके बाद से ही मामला ठण्डे बस्ती में सिमटने को तैयार है। अब तो चर्चाएं भी होनी बंद हो गयी हैं। लेकिन दोलत्ती समूह इस मामले की छानबीन का काम खत्म नहीं किया है, बल्कि हम उस हादसे और उसके कारक-तत्वों तक का खुलासा करने पर जुटे हैं।
रमेश पांडे की आत्महत्या अभी भी रहस्य ही बनी हुई है। कम से कम आधिकारिक तौर पर तो उसे बनाया ही रहा गया है। मगर विभिन्न सूत्रों, सूचनाओं और अनेक परिस्थितिजन्य तथ्यों के आधार पर दोलत्ती संवाददाता ने इस हादसे का काल्पनिक कथानक तैयार किया है, जो हमारे विश्लेषण के अनुसार सचाई के काफी करीब है। हो सकता है कि हमारे इस विश्लेषण से कई या अधिकांश लोग असहमत या आक्रोशित हो जाएं, लेकिन सच बात तो यही है कि इस हादसे के कारणों की जानकारी सबको है कि हादसा कैसे हुआ, मगर खामोश सभी हैं।
तो आइए, हम बताते हैं आपको कि उस हादसे की शुरुआत कैसे हुई, और उसका अंत कैसे हुआ। इस कथानक को पढ़कर आप को इस हादसे की गुत्थियां सुलझाने में काफी मदद मिल सकती है, और उसके बाद आप मामले की तह तक पहुंच सकते हैं। यह कहानी केवल रमेश पांडे की आत्महत्या भर ही नहीं है बल्कि इससे यह भी साबित होता है कि किन हालातों में कोई व्यक्ति ऐसे कदम उठा सकता है और उसके कारण-कारक कौन है। हमारा मकसद ऐसे कारक-हत्यारों को बेनकाब करना है, ताकि भविष्य में ऐसी दर्दनाक घटनाओं को रोका जा सके। हमारा साफ मानना है कि यह केवल अधिवक्ता समाज अथवा हाईकोर्ट परिसर से जुड़े किसी सदस्य का ही मामला नहीं है, बल्कि इसे हम विशद मानवीय संवेदनाओं के आधार पर देख रहे हैं।
रमेश पांडे अति महात्वाकांक्षी, जोशीले, हंसमुख, जुझारू और व्यवहारशील व्यक्ति थे। ऐसा तो नहीं था कि वे लखनऊ के टॉप 10 वकीलों में से एक रहे हों लेकिन उनकी प्रैक्टिस ठीक-ठाक चलती थी। भाजपा में भी उनका खासा दखल था, यही वजह थी कि रमेश पांडे को मुख्य स्थाई अधिवक्ता जैसी पॉलीटिकल कुर्सी मिल गई थी। हालांकि रमेश पांडे अकेले मुख्य स्थाई अधिवक्ता नहीं थे। लखनऊ हाई कोर्ट में कई मुख्य स्थाई अधिवक्ता इस समय तैनात हैं और हर कोर्ट में आधा दर्जन से ज्यादा अपर मुख्य स्थाई अधिवक्ताओं की तैनाती हो चुकी है। ऐसी हालत में यह कुर्सी बहुत महत्वपूर्ण पद होने के बावजूद राजनीतिक अखाड़े में तब्दील हो गई
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कुछ भी हो, कुछ महीने पहले अपने पैतृक जनपद सुल्तानपुर से फैजाबाद होते हुए लखनऊ लौट रहे रमेश पांडे को एक भीषण कार दुर्घटना में भारी चोट आ गई थी। बताते हैं कि उस दौरान रमेश पांडे उस हादसे से तो उबर गए लेकिन उनके अधिकार अथवा बिल आदि का मामला कुछ फंस गया। अचानक एक दिन कोर्ट के बड़े प्रभावशाली व्यक्ति ने रमेश पांडे को अपने चेंबर में बुरी तरह अपमानित किया। संभवत: उसी दौरान वहां कुछ अन्य अति प्रभावशाली लोग मौके पर मौजूद थे।
यह एक बड़ा झटका था, ऐसा झटका जिसे रमेश सम्भल नहीं पाये और वे उसी समय गम्भीर अवसाद यानी डिप्रेशन में चले गये। उनका इलाज भी शुरू हो गया, दवाएं और सतर्कताओं की सलाह भी उन्हें दी गयी। कुछ दिन तो हालत गम्भीर रही, लेकिन उसके बाद से रमेश पांडेय ने खुद को सम्भाला और वे फिर से मैदान में तैनात जुझारू सैनिक की तरह संग्राम में जूझने के लिए उतर गये।
रमेश पांडे अपने अपमान को उस समय तो पी गए लेकिन उसका विरोध करने का संकल्प कर लिया। नतीजा, उन्होंने सबसे पहले तो मुख्य स्थाई अधिवक्ता की कुर्सी पर लात मार दी और ऐलान कर दिया कि अवध बार एसोसिएशन के अध्यक्ष का चुनाव करेंगे। सूत्र बताते हैं कि संभवत: यह फैसला रमेश पांडे ने इसलिये लिया ताकि क्योंकि वे यह साबित करना चाहते थे कि उन्हें अपने आप और अपने अस्तित्व के लिए मुख्य स्थाई अधिवक्ता की कुर्सी जैसी बैसाखी की कतई आवश्यकता नहीं। और दूसरी तरफ वे चुनाव को जीत कर भी अपने हृदय पर लगे घावों को मलहम लगाना चाहते थे कि वे आज भी खासा और प्रभावशाली दखल और अंदाज रखते हैं।
रमेश पांडे अपनी होने वाली उपलब्धियों की आलीशान इमारत-अट्टालिका बनाकर तैयार कर चुके थे। लेकिन यह सब उनके ख्वाबी पुलाव ही साबित हुए, सब्जबाग या मृगतृष्णा। हुआ यह कि अचानक एक विशालकाय अधिवक्ता चेंबर के अधिपति ने रमेश पांडे की इस इमारत को रेत की इमारत की तरह तब्दील कर दिया। अधिवक्ता चैम्बर-अधिपति ने साफ कर दिया कि वे रमेश पांडे को चुनाव में समर्थन नहीं कर पाएंगे।
यह सुनते ही रमेश पांडे के पैरों तले जमीन खिसक गई। मुख्य स्थाई अधिवक्ता पद के इस्तीफा के दौरान जो दारुण मनोस्थिति से उबरने की कोशिश कर रहे थे रमेश पांडेय, उससे उनके अवसाद पर पेट्रोल पड़ गया। अवसाद भड़क गया। डॉक्टरों ने उन्हें साफ कर दिया था कि वह कभी भी अकेले न रहा करें। डॉक्टरों की सलाह पर उनके परिजनों व साथियों ने ध्यान देना शुरू कर दिया लेकिन एक दिन दोपहर के बाद रमेश पांडे ने खुद को अकेला किया और हादसा हो गया।
( दोलत्ती डॉट कॉम रमेश चंद्र पाण्डेय की आत्महत्या के पूरे कांड की छानबीन कर रहा है। आपको अगर इस बारे में कोई भी जानकारी हो, तो आप हमसे सीधे और बेहिचक सम्पर्क कर सकते हैं। हमारा सेल-फोन 8840991189 और 9415302520 है। विश्वास रखिये, कि आप से हुई कोई भी बातचीत पूरी तरह गोपनीय रखी जाएगी।
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