: जौनपुर के डीएम का सरकारी फोन जब चपरासी फोन उठायेगा, तो समझो हो गया सत्यानाश : भ्रूण-हत्या की खबर साजिशों की खबर देने के लिए डीएम को मेरी बिटिया ने फोन किया, मगर डीएम ने न मोबाइल उठाया, और न लैंड-लाइन :
कुमार सौवीर
लखनऊ : जौनपुर के नये जिलाधिकारी बहुत भावुक हैं, बात-बात पर भावुकता में बह जाते हैं। इतने भावुक, कि दिल पर बात लगी कि नहीं, रो पड़ते हैं। आंसू निकल जाते हैं डीएम साहब की आंखों से। सुबुक-सुबुक पड़ते हैं और फिर अपनी पीड़ा को बर्दाश्त करने का साहस करने और दिखाने के लिए वे अच्छी-खासी सरकारी बैठक छोड़ कर बाथरूम में जाकर अपना चेहरा-हाथ-मुंह धो लेते हैं।
लेकिन इन जिलाधिकारी साहब की यह सारी की सारी भावुकता तब धरी की धरी ही रह जाती है, जब मामला आम आदमी की तकलीफ का होता है। तब वे अपने किसी खासम-खास अपने आत्मीय और अपने किसी प्रेमी के दुख से आहत होकर सहृदय और आर्द्र व्यक्ति दिखायी जाते हैं। मगर जब वे आत्मीय, सौहार्द और प्रेम की सीमाओं से अलग होकर अपने जिले के नागरिक के कष्ट की बात के मंच पर पहुंचते हैं, तो उनका सारा का सारा कष्ट, दुख, व्याकुलता और विहृवलता का आलोप हो जाता है। तब वे एक खांटी अफसर हो जाते हैं, एक औपचारिक और प्रोफेशनल अफसर की तरह।
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आज रविवार की सुबह भी यही हुआ। हुआ यह कि जौनपुर से करीब 45 किलोमीटर दूर पतरहीं कस्बे में एक निजी अस्पताल में गर्भ में पल रही एक बच्ची की हत्या की तैयारी चल रही थी। हालांकि यह बेहद जघन्य अपराध है कि किसी भ्रूण का लिंग-परीक्षण किया जाए, लेकिन जौनपुर में ऐसा हो हो गया। जांच के बाद जच्चा यानी भ्रूण को अपनी कोख में पालने वाली महिला को इस अस्पताल में भर्ती करा लिया गया था। पक्की खबर थी कि आज दोपहर 12 बजे से दोपहर एक बजे के बीच इस कन्या-भ्रूण को पेट में ही मार डालने के लिए जल्लाद आने वाला था।
समाचारों की दुनिया में अपने आप में निहायत अनोखी और बेमिसाल न्यूज पोर्ट यानी मेरी बिटिया डॉट कॉम को आज सुबह-सुबह इस बारे में खबर मिली। इस पोर्टल के प्रति आम आदमी के स्नेह-आस्था-विश्वास का ही प्रकरण था कि पतरहीं के एक मेडिकल स्टोर और उस अस्पताल के एक कर्मचारी ने बाकायदा फोन करके इस नृशंस हत्याकाण्ड की होने वाली खबर बता दी। जाहिर था कि हमारे पोर्टल की टीम का दायित्व था कि वे इस हादसे को रोकने के लिए जन-जागरण करने के साथ ही साथ सम्बन्धित अधिकारियों को भी समय से खबर कर देते।
हम खूब जानते थे कि अगर इस घटना को होने से नहीं रोका जाएगा तो उसके बाद सब खत्म हो जाएगा। एक अजन्मी बच्ची अपने इतिहास को देखने के पहले ही इतिहास बन जाएगी। पूरी नृशंसता के साथ उसके टुकड़े-टुकड़े बिखेर कर उसे किसी कूड़ेघर या सड़क के किनारे चील-कुत्तों के सामने फेंक डाली जाएंगे। इसके साथ ही पूरा हमारा समाज, हमारा प्रशासन, हमारी नैतिकता, हमारे अफसर, हमारी पुलिस, हमारे सामाजिक पहरूआ, हमारे वकील, हमारे पत्रकार, हमारे सामाजिक संगठन, और हमारा कानून चिंदी-चिंदी हो कर बेमानी बन चुकेगा।
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धन्वन्तरि डॉक्टर ! इस बच्ची को बचा लो
खबर थी कि एक महिला को गर्भ है। उसके परिवारीजनों उस महिला को एक अल्ट्रासाउंड सेंटर ले गये। भ्रूण-परीक्षण के लिए। केवल यह जांचने के लिए कि उस महिला के पेट में पल रह भ्रूण नर है या फिर मादा। परीक्षण के बाद पता चला कि यह भ्रूण कन्या का है। अब पेट में पलती बच्ची को नहीं, बल्कि उस परिवार के लोग तो लड़के की प्रतीक्षा में थे, जो कमाये, खिलाये, सेवा करे, बहू लाये, सेवा करे, संतान पैदा करे और वंश बढ़ाये। लेकिन पेट में बच्ची की खबर ने उनके सपनों को ही ध्वस्त कर दिया।
घर में फैसला यह हुआ कि इस कन्या-भ्रूण को खत्म कर दिया जाए। परिवार के लोगों ने हॉस्पिटल के संचालक से बातचीत की। बात तयतोड़ के बाद फाइनल कर दी गयी। पैसा जमा हुआ, और उस महिला को अस्पताल में भर्ती करा दिया गया।
यह स्थानीय मेडिकल स्टोर के एक कर्मचारी ने बताया कि इस बच्ची-भ्रूण को हमेशा-हमेशा के लिए खत्म करने की तैयारियां आज सुबह से ही चल रही थीं। इस बारे में आवश्यक दवाएं मंगवा ली गयी, और एक जल्लाद नुमा डॉक्टर से भी बात हो चुकी जो वह 12 बजे से दोपहर एक बजे तक इस कन्या-भ्रूण का काम-तमाम करता।
हमारे पोर्टल मेरी बिटिया डॉट कॉम की टीम ने यह खबर मिलते ही जौनपुर के जिलाधिकारी को उनके मोबाइल पर फोन किया। चपरासी ने फोन उठाया और बताया कि मोबाइल डीएम साहब के पास नहीं, उसके पास है। उस चपरासी का कहना था कि अगर डीएम साहब से बात करनी हो तो उनके कैम्प में लगे फोन पर बात कीजिए। मैंने लैंड-लाइन पर फोन किया तो जवाब मिला कि आप अपना नम्बर दे दीजिए, आपको बाद में फोन किया जाएगा।
जवाब अब तक नहीं आया है।
अब सवाल यह है कि अगर यह लोक-प्रशासन इसी को कहते हैं, तो भावुकता का नाटक क्यों। भावुकता केवल अपनों के प्रति ही होगी, संवेदनशीलता लोक-जनता के प्रति नहीं होगी, तो फिर सरकारी बदलाव का मतलब क्या होगा।