अपनों पर से भरोसा उठना, मतलब सुसाइड। जैसे बस्‍तर का डीएम

सैड सांग

: ऐसी दर्दनाक, लेकिन साहसी आत्‍महत्‍या के लिए कारण भी बेहद मजबूत ही होते हैं : ऐसे फैसले केवल उन घनिष्‍ठ रिश्‍तों से जुडी भावनाओं को लेकर होते हैं : बक्‍सर का डीएम ट्रेन के सामने कूदा, लेकिन सवाल तो अब मौत के बाद उठेंगे :

कुमार सौवीर

पटना : आईएएस में जुम्‍मा-जुम्‍मा पांच साल की नौकरी की थी इस युवक ने। कुल 9 दिन पहले ही उसे बक्‍सर के जिला में कलेक्‍टर की पहली पोस्टिंग मिली। और दो दिन पहले ही इस युवक ने गाजियाबाद में ट्रेन के सामने कूद कर आत्‍महत्‍या कर ली। सहज तौर पर यह एक सामान्‍य आत्‍महत्‍या का मामला है। लेकिन इसके बाद से ही अब खुलेंगे किसी मेधावी और घोर तपस्या के बाद आईएएस बने युवक की परिवरिश का आधार, वैवाहिक और सम्‍बन्‍धों को लेकर उमड़े तूफानों की लहरों की शिनाख्‍त, जिसने इस शख्‍स को इतनी दर्दनाक लेकिन बेहद साहसी मौत अंगीकार करने का रास्‍ता मजबूत किया। बिहार के बक्‍सर दर्द बीवी से मिला। क्‍या वाकई?

सन-12 के बैच में आईएएस चुने गये मुकेश पांडे की पहली नियमित पोस्टिंग भागलपुर में हुई थी, जहां मुकेश उप विकास आयुक्‍त के पद पर तैनात हुए थे। चूंकि किसी शीर्ष प्रशासनिक सेवा से जुड़े अफसर की यह पेशागत जरूरत होती है कि उसके रिश्‍ते राजनीतिक लोगों से हों। मुकेश के भी हुए। बक्‍सर के भाजपा सांसद अश्विनी कुमार चौबे ने मुकेश को पसंद किया और पूरी कोशिश करके उन्‍हें भागलपुर से बक्‍सर में जिलाधिकारी के तौर पर तैनात करवा दिया। आपको बता दें कि यही भाजपा सांसद इसकेपहले भागलपुर शहर से पांच साल तक विधायक भी रह चुके हैं। लेकिन इसी बीच सांसद बनने के लिए उन्‍होंने बक्‍सर सीट चुन ली, जो ब्राह्मण-बहुत हैं।

लेकिन इस नयी पोस्टिंग के छह दिन ही बाद मुकेश दिल्‍ली गया और उसने आत्‍महत्‍या कर ली। आत्‍महत्‍या भी ऐसी कि सुनते ही लोगों का दिल हलक में फंस जाए। बताते हैं कि उसने पहले तो किसी ऊंची इमारत से कूद कर आत्महत्‍या का इरादा बनाया था, लेकिन उसके अचानक बाद वह गाजियाबाद गया, और सीधे रेलवे लाइन पर गुजरती ट्रेन के सामने कूद कर उसने अपनी इहलीला खत्‍म कर दी।

पटना के एक पत्रकार बताते हैं कि बक्‍सर से ही मुकेश ने भागलपुर में अपने एक सहयोगी अधिकारी को वाट्सऐप पर संदेश भेजा था कि चूंकि उसके मामा की तबियत बहुत खराब है, इसलिए वह मामा से मिलने दिल्‍ली जा रहा है। लेकिन यह सच नहीं था। मुकेश का कोई भी रिश्‍तेदार उस समय दिल्‍ली या आसपास नहीं था। यानी मुकेश ने अपनी दिल्‍ली यात्रा का मकसद झूठ ही प्रचारित किया। हालांकि अब यह पता नहीं चल पाया है कि बक्‍सर छोड़ने की इजाजत लेते वक्‍त मुकेश ने अपने अधिकारियों को अर्जी में क्‍या कारण दिया था।

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बड़ा बाबू

लेकिन असल सवाल तो यह है कि आखिर मुकेश ने झूठ का सहारा क्‍यों लिया। कोई भी आईएएस अफसर अपनी पहली कलेक्‍टरी को पहले तो सारा कामधाम छोड़ कर समझना चाहता है, फिर सात दिन बाद ही मुकेश कैसे अपने मोर्चे से भाग निकला। अपने को खत्‍म करने के लिए उसने सीधे दिल्‍ली की राह क्‍यों पकड़ी। वह उसकी किसी रणनीति का हिस्‍सा था या उसकी बिगड़ी मानसिक हालत के चलते ऐसा हुआ।

और सबसे बड़ी बात तो यह है कि अपने मां-पिता, भाई-बहन समेत पूरे परिवार से भी ऊपर अपनी ढाई महीने की बेटी तक को छोड़ कर हमेशा-हमेशा के लिए अनन्‍त यात्रा पर निकल जाने का मकसद क्‍या था। वह कौन से कारण थे जिनके वशीभूत होकर मुकेश ने जीवन का अपना सर्वाधिक बड़ा और अंतिम फैसला कर लिया।

मेरे पूरे जीवन के अनुभव बताते हैं कि ऐसे फैसले केवल उन घनिष्‍ठ रिश्‍तों से जुडी भावनाओं को लेकर होते हैं, जहां विश्‍वास पर अचानक ही पूरी वैवाहिक इमारत भरभरा कर ढहती है, और फिर किर्च-किर्च बिखर जाती है। मुकेश ने अपने अंतिम वाट्सऐप पर यही संदेश भेजा था, जिसका मकसद था कि वह विश्‍वास के संकट से जूझ रहा था।

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