अनुशासनहीन फ्री-सेक्‍स का जो ज्ञान आप बांट रहे हैं न, वह है उच्‍छृंखलता

बिटिया खबर

: स्वतंत्रता के पुजारियों ने एक स्त्री के जीने की स्वतंत्रता छीन ली : कानून के दायरे में रहकर सामाजिक मूल्यों का ख्याल रखिए : नारी विमर्श के नाम पर इस तरह के अधिकार का ज्ञान बांटना बंद कीजिए :

अरुण कुमार दीक्षित

लखनऊ : फ्री सेक्स को ही नारी स्वतंत्रता का केंद्र बिंदु और सबसे बड़ा अधिकार समझने-समझाने वाली, इसको ही नारी विमर्श का नाम देने वाली विद्वान नारियों के साथ उनका समर्थन करने वाले विद्वान पुरुषों को भी नमस्कार! देखिए, आप समाज को कहां पहुंचा रहे हैं। ऐसा नहीं कि जब आप नहीं थे तब ऐसा नहीं होता था लेकिन अब जबकि आप कइयों की प्रेरणा हैं तो अपने इस अमूल्य योगदान के लिए धन्यवाद तो ले ही लीजिए…।

तीन दिन पहले रोहिणी में एक पति ने अपनी पत्नी की हत्या कर दी। पति के छह-सात नारियों से संबंध थे और पत्नी आड़े आ रही थी। यह वही पुरुष है जो सेक्स से अधिक नहीं सोचता और वे छह-सात वहीं स्त्रियां हैं जो उसे ही अपनी स्वतंत्रता समझती हैं। इन स्वतंत्रता के पुजारियों ने एक स्त्री के जीने की स्वतंत्रता छीन ली…।

कल, ताइक्वांडो का दो-दो साल नेशनल चैंपियन रह चुका एक लड़का पकड़ा गया। उसकी छह-सात गर्ल फ्रेंड्स हैं। सबके खर्चे उठाने के लिए वह लूट करने लगा। हाईकोर्ट के वकील का बेटा है। घर वालों का कहना नहीं माना तो आजिज आकर घर से निकाल दिया परिजनों ने। अब वह जेल में रहेगा…। वह छह-सात लड़कियां अब कोई और ‘शिकार’ करेंगी…।

यह प्रेम तो कतई नहीं है। हवस पुरुष का हो या स्त्री का वह अधिकार नहीं है। इतनी स्वतंत्रता किसी की भी ठीक नहीं, वह चाहे लड़की हो या लड़का। इसलिए नारी विमर्श के नाम पर इस तरह के अधिकार का ज्ञान बांटना बंद कीजिए। जिस हवस के कारण कुछ पुरुष आदमी से दानव बन गए, उनकी बराबरी करने के लिए यह कहकर लड़कियों को प्रेरित न कीजिए कि जब पुरुष करते हैं तो स्त्री क्यों नही? स्त्री हो या पुरुष, एक का पतन दूसरे के पतन की कहानी लिख देता है इसलिए समाज को स्त्री-पुरुष में बांटकर ज्ञान बांटना बन्द कीजिए। सबकी स्वतंत्रता जरूरी है लेकिन संयम भी जरूरी है। सभी युवाओं के अधिकार हैं लेकिन उनके माता-पिता के भी अधिकार हैं उन्हें गलत-सही पर डांटने-बोलने का। हर बात में अभिभावकों का अधिकार यह कहकर न छीनिए कि लड़का-लड़की बालिग हैं। कानून के दायरे में रहकर सामाजिक मूल्यों का ख्याल रखिए। जब किसी को स्वतंत्रता का ज्ञान बांटिए तो यह भी जरूर समझाइए कि स्वतंत्रता के साथ आत्म संयम, अनुशासन कितना जरूरी है वरना इस पाप में आप भी भागी हैं क्योंकि आप अनुशासनविहीन स्वतंत्रता का ज्ञान आप बांट रहे हैं जो वास्तव में उच्छृंखलता है।

क्या इस लेखिका को फादरो के गाऊनो, जोकर जैसी टोपी, बकर दढ़ियल विद्वानों, किट्टी पार्टियो, टैटू अंकित डुडॉ और दुद्नियों पर भी विचार करने की ज़रूरत नही है।

( यह आलेख मूलत: मृत्‍युंजय त्रिपाठी पाठी का है, जिसे हमने अरूण कुमार दीक्षित जी की वाल से हासिल किया है। )

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