सिंदूर पर गोरक्षों को मिला नया मुद्दा, मादा-गोलाई तक उतरे विरोधी

बिटिया खबर

: एक सहज सवाल उठा दियाया था पुष्‍पा मैत्रेयी ने, ट्रोल हुईं : ऐन पर्व पर धार्मिक सम्‍बन्‍धी सवाल उठाना अतिवाद है, पुष्‍पा मैत्रेया को समझना चाहिए : गोरक्षक अपनी औकात पर आ गये। बोले, मुक्त व्यभिचारी आंटी सिंदूर का मुक्त 24 घंटे ओपन टू आल का विचार :

कुमार सौवीर

लखनऊ : स्‍त्री की स्‍वतंत्रता जैसे ही मसले आज भी गोरक्षकों की चिंता बने हुए हैं। वे यह नहीं जानना-समझना चाहते हैं कि दुनिया कहां से कहां पहुंच चुकी है। लेकिन नहीं, वे नहीं जानना-समझना चाहते हैं कि सह-अस्तित्‍व की अवधारणा में स्‍त्री की निजता सर्वोच्‍च है। वे उस अधिकार को तत्‍काल दबोच कर मार डालना चाहते हैं कि स्‍त्री क्‍या चाहती है, उसका निर्धारण स्‍त्री स्‍वयं करे। चाहे धर्म की चर्चा हो, या फिर किसी अधिकार, मामला भले हिन्‍दू परम्‍पराओं को लेकर उठे सवालों पर हो, या फिर मुस्लिम रवायतों पर, गोरक्षा-नुमा हिन्‍दू और मुसलमान ठेकेदार फौरन सक्रिय हो जाते हैं। ताजा मामला है अब पूरे देश समेत दो दर्जन से भी ज्‍यादा देशों में सूर्य-षष्‍ठी यानी छठ नामक पर्व का, जिसे उन्‍हें मानने वाले लोग बेहद आस्‍था, पवित्र और पुरातन पर्व के तौर पर सम्‍मान देते हैं। लेकिन इस बार एक मामूली सी टिप्‍पणी के बाद इस पर्व के समर्थक और विरोधियों ने अपने को पूरी तरह निर्वस्‍त्र कर दिया। शैली गोरक्षकों की सी थी, लेकिन इस बार उसमें नारी, सिंदूर, लाज, वात्‍सल्‍य, गोलाई और मादा रक्षा का अभियान शुरू हो गया।

मशूहर लेखिका मैत्रेयी पुष्पा एक फेसबुक पोस्ट की वजह सोशल मीडिया यूजर्स के निशाने पर आ गईं हैं। यूजर्स ने उनकी पोस्ट को हिंदू महिलाओं का अपमान करने वाला बताया है। दरअसल लेखिका ने मंगलवार (14 अक्टूबर) को फेसबुक स्टेटस में लिखा, ‘छठ के त्योहार में बिहार वासिनी स्त्रियां मांग माथे के अलावा नाक पर भी सिंदूर क्यों पोत रचा लेती हैं? कोई खास वजह होती है क्या?’ पुष्पा की इसी पोस्ट पर लोगों ने तीखी प्रतिक्रियाएं दी हैं।

इस हमले से भौंचक्‍का पुष्‍पा मैत्रेयी ने अपनी टिप्‍पणी वापस ले ली, और लिखा कि ‘मेरी सिन्दूर-पोस्ट से छठ वाले लोगों को इतना कष्ट होगा, मुझे अंदाजा ना था कि वे स्त्रियों के सिन्दूर के लिए स्त्रियों को ही बेशुमार गालियां देने लगेंगे। अपमान किसी भी स्त्री का नहीं होना चाहिए। मैंने पोस्ट हटा दी। यहां मैं कोई कमेंट नहीं करना चाहूंगी।’ गौरतलब है कि मैत्रेयी पुष्पा हिन्दी अकादमी दिल्ली की उपाध्यक्ष भी हैं। उन्होंने कई मशूहर साहित्य भी लिखे हैं।

मैं भी मानता हूं कि मैत्रेयी ने यह सवाल गलत वक्‍त उठाया है, लेकिन अगर पुष्‍पा मूर्ख हैं, तो इसका अर्थ यह कैसे हो सकता है कि एक बड़ी भीड़ उन्‍हें गालियां देना शुरू कर दें। बहरहाल, इसके बाद पुष्‍पा के समर्थन में भी कई महिलाओं ने मोर्चा खोला, तो जवाब में उन्‍हें जोरदार गालियां मिलीं। यानी क्रिया की कर्रा प्रतिक्रिया। लेकिन हैरत की बात है कि समाज में पढ़े-समझदार लोग भी इस आग में स्‍वाहा करने बैठ गये। हिन्‍दूवादी लेखक सुमंत भट्टाचार्य ने लिखा कि जब माथै के “सिंदूर” पर “अभिमान” की बजाय “लाज” आए ….., जब “वक्ष” में “वात्सल्य” की बजाय “गोलाई” नज़र आए तो “नारी” की बजाय ख़ुद को “मादा” स्वीकार करने में संकोच ना करें।

जवाब आया कि स्त्री मंदिर नहीं रंडियों का मुजरा है, शर्म आती है ऐसे लोगों पर जो आजादी केवल वासना में देखते हैं। अब देखिये कि किस-किस स्‍तर तक लोग उतर गये इस हवन में आहुति देने के लिए:-

Kumar Sauvir मतलब यह कि अब आप स्‍त्री बनाम मादा के रिटायर्ड प्रवक्‍ता बन गये। अरे, हम कौन होते हैं स्‍त्री को बाध्‍य करने के लिए, कि कोई भी स्‍त्रीलिंग वाला इंसान खुद को क्‍या बनना चाहता है, मां या मादा। मत थोपिये। अगर कुछ करने का ज्‍यादा ही अतिरेक हो तो फिर अपने चिंतन को इतना प्रभावी बनाइये कि आपकी बातें प्रभावशाली हों और इतनी प्रभावशाली बन सकें कि वे आपका अनुसरण करने पर बाध्‍य हों

Rakesh Mishra Kumar मैं आपकी राय की तहे दिल से हिमायत करता हूँ ।मगर हिन्दुत्व के दावेदार इसे नहीं समझेंगे ।

Sachin Tomer कुमार सौवीर जी, अगर किसी स्त्रीलिंग वाला इंसान मादा के रूप में हमारी माँ का अपमान करेगा तो क्या हम उसे उसकी औकात भी नही बता सकते वो भी केवल इसलिए कि वो स्त्रीलिंग है। क्षमा चाहता हूं आप लोगो के इस प्रकार के व्यवहार से ही वो लोग हमारी माँ पर प्रहार पर प्रहार किए जा रहे है।

Kumar Sauvir इकलौती इंसान नहीं हैं आप नृवंश में। हर शख्‍स के पास एक या एकाधिक मां होती हैं। और देश किसी एक संतान की बपौती नहीं होती है। औरत को औरत बनाने की कोशिश कीजिए। हर औरत अगर आपकी मां बन गयी, तो बड़ी दिक्‍कत हो जाएगी।

Sumant Bhattacharya राकेश जी, कुमार साहब, आप उस तर्क को समर्थन दे रहे हैं, जो स्त्री को अलग कर पुरुष को पिता, पुत्र, पति और भाई के दायित्व से मुक्त कर अराजक बनाता है।

LKumar Sauvir नहीं सुमंत जी। ऐसा कत्‍तई नहीं। ऐसा मैं न सोच सकता हूं, और न ही कर सकता हूं। मैं तो केवल चाहता हूं कि कोई भी किसी शख्‍स को अपना विधि-विधान न थोपे। बस्‍स। स्‍त्री क्‍या चाहती है, उसका निर्धारण वह स्‍त्री स्‍वयं करे। सह-अस्तित्‍व की धारा इसी को कहा जाता है।

Sumant Bhattacharya परिवार संस्था को तोड़ना ही तो मकसद है आपका। इस्लाम ने इसे आक्रमकता के साथ ओर सनातन ने संस्कार से इस संस्था को जीवित रखा है। इसीलिए आम बौद्धिक इस्लाम पर चुप ओर सनातन पर वाचाल है।

Kumar Sauvir और आपके ही शब्‍दों में अगर कहा जाए तो पुरूष भी तो अर्द्धनारीश्‍वर सती के आचरणों पर टीका-टिप्‍पणी करकेअपनी सम्‍पूर्ण छवि को तोड़ रहा है सुमन्‍त जी

Kumar Sauvir असहमत। विरोध। आपका यह चिंतन उस दिशा में जा रहा है जहां गोरक्षकों की अराजकता ही संविधान की लकीर बनती है, और मुसलमान एक छोटी-छोटी घटना को इस्‍लामी झंडे पर खतरा मानना शुरू कर देता है। यह दोनों ही बेहद खतरनाक है। हैरत की बात है कि आप इतने गंभीर होने के बावजूद इस को समझने की कोशिश नहीं कर रहे हैं।

Sumant Bhattacharya जारी बहस में नारी ने नारी पर चोट की है। और मैत्रेय जी ने नारी के उस प्रतीक पर प्रहार किया है, जो विवाहित नारी का प्रतीक है। विवाह यानी परिवार। प्रहार परिवार पर हुआ है। तो परिवार के हर सद्स्य को प्रतिरोध का अधिकार स्वत मिल जाता है। दृष्टि सन्तुलित रखिए।

Kumar Sauvir Sumant Bhattacharya आप अपनी बात साबित करने के लिए इस्‍लाम की आक्रामकता का आधार और सहयोग क्‍यों ले रहे हैं। और आप को यह अधिकार किसने दे दिया कि आप केवल आप ही परिवार संस्‍था को सजग चतेरे हैं। अरे हम-सब की अवधारणा पर हम लोग बात करें तो बेहतर होगा। आखिरकार ऐसे चर्चाओं का मकसद केवल मित्रों को विचार-विमर्श करना ही होता है, किसी मित्र पर लांछन लगाना नहीं। आप अपनी बात कहें तो बेहतर होगा, आरोप-प्रत्‍यारोप मत लगायें

Sumant Bhattacharya सौवीर भाई, परिवार संस्था इस्लाम, सनातन ओर यहूदी के पास ही है। क्या वजह है, वामपंथी सनातन के अलावा अन्य पर खामोश हैं भारत में ?

Kumar Sauvir आप अपनी बात कहिये, अपने तर्क रखिये। हम भी अपनी बात कह रहे हैं, आपके तर्क समझ रहे हैं, लेकिन यह निर्देश देना सर्वथा अराजक है कि:- दृष्टि सन्तुलित रखिए।

Kumar Sauvir मैत्रेय जी इकलौती विशेषज्ञ या संविधान-सभा की प्रारूप समिति की अध्‍यक्ष नहीं है सुमंत जी

Kumar Sauvir वामपंथी अगर इतने समझदार होते तो भारत जैसे विभिन्‍न बोलियों-भाषाओं में आयातित कॉमरेड शब्‍द जैसों से अपनी छीछालेदर न कर पाते। और न ही ब्रह्माण्‍ड में उनका सूपड़ा इस तरह न साफ हो चुका होता

Sumant Bhattacharya अब आपका आधार अर्धनारीश्वर पर। मुझे वाकई हंसी आती है वमियों पर। तोहिंगया का मसला हो तो अतिथि देवो भव, इस्लाम का मसला हो तो सर्वे भवन्तु सुखिनः, यानी आधार में सनातन का सिद्धान्त ही चाहिए। यब वामपंथ ओर संविधान की वैचारिकी का महल ढह जाता है। वहां कोई आधार…See more

Sumant Bhattacharya मुझे लगता है, विमर्श को पर्याप्त विस्तार दे दिया है मेने, अब कुछ बचा नहीं कहने को। आपको यह सुविधा कतई नहीं मिल सकती कि आप किसी सभ्यता से अपनी सुविधा से खण्डित अंश का उपयोग करें। विमर्श होगा तो फलक भी व्यापक और तुलनात्मक होगा।

Kumar Sauvir आपकी आखिरी लाइन से साफ स्‍पष्‍ट है कि अब आप बहस नहीं करना चाहते, केवल आरोप लगाना चाहते हैं, और चाहते हैं कि आपकी बात सब लोग मानें, कोई भी शख्‍स आपकी ऐसे आदेशों को अक्षरश: पालन करता रहे। सभी लोग श्रंगाल की तरह भी हुक्‍का-हुआं तक नहीं करें, सब के सब केव…See more

Sachin Tomer मतलब आप स्वतंत्रता के पक्षकार है…. सही है….. तो क्या मैं जान सकता हूँ कि उन मादाओं को किसने अधिकार दे दिया किसी को सिंदूर ना लगाने देने का या उसपर टिप्पणी करके अपमान करने का…..अब उनकी स्वतंत्रता में आपको दिक्कत है…..कोई कैसे किसी की स्वन्त्रता का अपमान कर सकता है ….अब बताइये कुमार जी

Sachin Tomer और हाँ बात रही माँ की तो मैं अपनी संस्कृति और धार्मिक जो वैज्ञानिकता से परिपूर्ण रीतिरिवाज है उनको माँ मान सकता हूँ जिनकी वजह से वजूद है हमारा।

Sumant Bhattacharya जब आपको बहस निजी लगे तो में क्या कर सकता हूँ। जब एक पक्ष के साथ आप खड़े हैं तो आपके दिए आधार पर प्रश्न भी करूँगा।प्रहार भी करूँगा। आधार का आधार भी मांगूंगा। कृपया विषय पर ठीके रहें। दिन रात विमर्श के बीच ही रहता हूँ। समझ है मुझे। ओर अनुशासित भी हैं।इस समय आप एक व्यक्ति या मित्र नहीं, पक्ष है। इसे समझते हैं ?

Sachin Tomer इन्हें केवल उन लोगो की स्वतंत्रता दिखाई देती है जो किसी की परंपराओं पर उंगली उठाते है। लेकिन उनकी स्वन्त्रता पर इनकी बोलती बंद हो जाती है जिन्हें अपने परंपराओं में ही अपना वजूद नजर आता है।

Sumant Bhattacharya हास्यास्पद है बौद्विक विकलांगता की। अब बंगाल भी भारत से बाहर हो गया। जबकि सिंदूर से आगे बढ़ सांस्कृतिक अस्मिताओं पर पदाघात। फिर कहेंगे आप शेव हैं

फिर कहेंगे आओ मुझे की सुमन्त आप शेव ब्राह्मण हैं।

जबकि आपको बंगला भाषा भी नहीं आती। ऐसे में आप बंगाल,पंजाब या मराठा पर बोलने के अधिकृत पत्र भी नहीं।

गजब

Rakesh Mishra Kumar परंपराओं पर उँगली उठाने पर ग़ुस्सा क्यों ?सच तो यह है मित्र कि परंपराओं पर उँगली उठाना ही तो हमारी भारतीयता की अनूठी विशेषता रही है और उज्जवल परंपरा भी ।यह उँगली बहुत महत्वपूर्ण रही है सभ्यता ,संस्कृति ,विज्ञान की तरक़्क़ी के लिए ।इसके पहले कि आप आरोपित करें ,मैं खुद ही बोलता हूँ कि अब्राहमी धर्म संस्कृतियों को मैं अपनी आलोचना से परे नहीं रखता और यह मानता हूँ कि वहाँ उँगली उठाने की गुंजाइश कम और परंपरा कमज़ोर रही ,इसी लिए वहाँ बदलाव के लिए तलवारें उठीं ।क्या मुनासिब नहीं होगा कि

याज्ञवल्क्य ने गार्गी के साथ जो सलूक किया ,वह हम विरोधी विचारों के लिए न करें ।

Sumant Bhattacharya अंगुली उठाने का आधार तो स्पष्ट हो ?

राकेश सर।

में यो इससे भी आगे “कोख पर नारी के अधिकार” कर पक्ष में हूँ। क्या आपमें साहस है, नारी की इस गरिमा को स्थापित करने के मुखर पक्षधर बनें ?

या फिर खारिज कीजिए।

बिभाजन रेखा स्पष्ट होनी चाहिए।

Anjana Saini जिसको कह रहे हो उसका नाम लिख देते तो अच्छा था ••• हमें क्यों गिल्ट फील करा रहे हो ?

Sumant Bhattacharya अंजना, यह एक वैचारिक प्रहार था। इसलिए नाम महत्वपूर्ण नहीं है। नाम लेने से प्रतिरोध सीमित हो जाता है। एक बार पोस्ट लिखी थी मैने, व्यक्ति पर नहीं, विचार पर चोट करो।

इस पर सोच कर देखना।

सुनीता दमयंती उम्रदराज कहानीकारा को किरांति किरांति खेलने की सूझी है। खेलने दें। इतना महत्व देने की क्या जरूरत है ? बेकार एनर्जी वेस्ट !!

Anjana Saini जब इस तरह कटु शब्दों में प्रहार होता है , चोट अपने ऊपर भी महसूस करती हूं ••• आहत सी सोचती हूं ऐसा कहने की जरूरत ही क्यों पडती है। और कह देने से क्या सब ठीक हो जायेगा ? क्या यह बात वहाँ तक पहुंच रही है जहाँ तक जानी चाहिये ?

Sumant Bhattacharya विषाक्त विचार के पौध को अंकुरित होते ही उखाड़ देना जरूरी है। वरना विषबेल फैल जाएगा।

सुनीता दमयंती ये हमेशा से यही करती हैं। यह उनका और उनके गैंग का टाईम-पास है।

Sumant Bhattacharya तो प्रतिपक्ष को जीवित रखना और जरूरी के। ऐसे ही एकोपूज्य को एकेश्वर बता कर धर्मांतरण कराया जाता है। प्रतिरोध ओर विभाजन को जीवित रखने बौद्धिकों का दायित्व है।

सुनीता दमयंती Sumant दा, मेरे विचार से हर मुद्दा इतना विशेष और महत्वपूर्ण नहीं होता कि उस पर समय और ऊर्जा व्यर्थ की जाए। सिंदूर, बिंदी, साड़ी, चूड़ी जैसी बातें आज हमारे परिवेश और परिवार समाज में इतना घुलमिल गयी हैं कि अब रक्त में हैं।

Kamal Manohar दादा एक है मंगलेश डबराल वो सिंदूर को प्रवेश निषेध का प्रतीक मानकर स्त्री आजादी का विरोध मानते शायद उनकी नजर में स्त्री मंदिर नहीं रंडीयो का मुजरा है शर्म आती है ऐसे लोगों पर जो आजादी केवल वासना में देखते हैं

वैसे मुक्त व्यभिचारी आंटी सिंदूर मुक्त 24 घंटे ओपन टू आल का विचार ला ही चूकी है

जल्द वामपंथी काम सेंटर नजर आये तो आश्चर्य नहीं मेरे निजी विचार

अनुपमा गायत्री दादा वो मादा होने में ही अपना गौरव ढूंढ रही है !!

उन्हें जगाना संभव दिख नही रहा !!

Sumant Bhattacharya गौरव नहीं,नारी से पराजित मादा अब हताश हो रही है।

Kumar Anil मन करता है तुलसी 00 के साथ मिक्स करके 24 घँटे चुभलाता रहूं

Subodh Kumar करारा तमाचा बो भी बिना आवाज वाली ।

आजकल इनकी प्रजातियां बढती जा रही है। सिंदूर से इनको लज्जा होने लगी है। पूरी मांग भरने के वजाए एक टीका मात्र करके उसको भी जुल्फों से आजकल ढक दिया जाता है। हाई रे फैशन

DrShobha Pandey Sahi kah rahi hain Anjana Saini Ji…….ye to samuhik iljam laga diya aapne….

Avadhesh Kumar Saraswat शानदार। लाज तो नारी का भूषण है। इन मादाओं के लिए कोई नये शब्द की रचना करनी पड़ेगी।

Subodh Kumar दादा कह रहे है कि ऐसे पर्व-त्योहारों के मौके पे जब सुहागन औरतें अपने नाक से लेकर पूरे मांग तक जब सिंदूर लगती है तो उनकी सुंदरता देखते बनती है। सर गर्व से ऊंचा हो जाता है और यही तो अपनी परंपरा है फिर इसमें संकोच कैसा?

Vijay Kumar बाजारवादी नारी !

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