: जो खुद पर हुए अन्याय के खिलाफ नहीं लड़ पायी, उसके खून में राजनीति चख रही हैं रिपोर्टर स्वाति माथुर : तथ्यों पर नहीं, किसी डीएनए विशेषज्ञ सरीखा व्यवहार करते हैं हिन्दी अखबारों के रिपोर्टर : एक भी तथ्य नहीं हैं, बस लिख मारा खर्रा :
कुमार सौवीर
लखनऊ : लखनऊ की पत्रकारिता वाकई किसी के भी दिमाग को चरखी तरह नचा सकता है। खास तौर पर हिन्दी पत्रकारिता के पत्रकारों को तो आंय-बांय लिखने में अपनी शेखी बघारना ज्यादा पसंद है। निरर्थक शब्द-संयोजन के अधकचरे ज्ञान के बल पर इन पत्रकारों में से ज्यादा की हालत किसी अधकचरे शख्स सरीखी ही होती जा रही है। अब तो हालत तो यहां तक पहुंच चुकी है कि जिस रिपोर्टर को जो भी उल्टा-पुल्टा समझ में आता है, पूरा का पूरा खर्रा तक लिख मारता है।
ताजा मामला है नवभारत टाइम्स का। जिसमें अमेठी विधानसभा में चल रहे त्रिकोणीय चुनाव का जिक्र किया गया है। इस खबर की रिपोर्टर है स्वाति माथुर। स्वाती ने लिखा है:- राजनीति में अपना डेब्यू करेंगी।
यहां तक भी होता तो भी समझ में आता था। लेकिन इस रिपोर्टर ने तो अमेठी के पूर्व राजघराने की विवादित तलाकशुदा रानी गरिमा सिंह के डीएनए तक का विश्लेषण कर लिया। 70 साल पहले भारत से विदा हो चुकी राजशाही को आज भी मान्यता देते हुए इस रिपोर्टर ने राजघराने के राज-सत्ता की शौर्य-स्तुति करते हुए लिखा है कि गरिमा सिंह के खून में ही राजनीति है। कहने की जरूरत नहीं कि पिछले बीस सालों में गरिमा सिंह को अपना हक नहीं मिल पाया है। ऐसे में जब गरिमा खुद अपना हक नहीं हासिल कर पायीं, तो अमेठी के लोगां की क्या सेवा कर पायेंगी। इस बारे में सवाल उठाने के बजाय इस अखबार ने इस मसले पर एक तरह से फैसला ही जारी कर दिया है।
रविवार को कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के बीच गठबंधन की खबर जहां सुर्खियों में थी, वहीं बीजेपी ने एक मास्टर स्ट्रोक चलकर सबको हैरान कर दिया। बीजेपी ने अमेठी जिले से रानी गरिमा सिंह को उम्मीदवार घोषित कर दिया, रानी बीजेपी के टिकट पर राजनीति में अपना डेब्यू करेंगी।
रानी गरिमा कांग्रेस प्रचार कमिटी के अध्यक्ष व राज्य सभा सांसद संजय सिंह की पत्नी हैं। हालांकि रानी राजनीति में काफी देर बाद अपनी किस्मत आजमाने उतर रहीं हैं, लेकिन राजनीति उनके खून में है। गरिमा सिंह पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह की भतीजी हैं और शाही परिवार से ताल्लुक रखती हैं। पति के दूसरी महिला से विवाह के बाद से उनके साथ अमेठी के स्थानीय लोगों का भरपूर समर्थन है।
कांग्रेस का गढ़ मानी जाने वाली अमेठी सीट से रानी की चुनावी दावेदारी के साथ कई जटिलताएं जुड़ी हैं। पारिवारिक झगड़े और जिले के राजनैतिक हालात के बीच इस सीट से जीत हासिल करना आसान नहीं होगा। लंबे समय तक अमेठी से बाहर रहने के बाद गरिमा जुलाई 2014 में परिवार के भूपति भवन लौटीं। अब तक दूसरी पत्नी अमीता से संजय सिंह के बच्चों और रानी गरिमा, उनके बेटे अनंत विक्रम, बेटियां महिमा और शैव्या परिवार पर कंट्रोल की लड़ाई लड़ रहे हैं।
एक तरफ कांग्रेस ने जहां इस शाही परिवार के अंदरूनी झगड़े से दूरी बनाए रखी, बीजेपी ने इसे राजनैतिक मौके की तरह देखा और 2016 में रानी गरिमा के बेटे विक्रम और बेटी गरिमा सिंह को बीजेपी में शामिल करने में कामयाब रही। हालांकि पहले रानी राजनीति में उतरने की इच्छुक नहीं थीं, लेकिन अब वह भी तैयार हो गईं। 2017 के विधानसभा चुनाव रानी की किस्मत पलटने वाले साबित होंगे तो बीजेपी उन्हें मैदान में उतारकर 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए लंबा दांव चल रही है। पार्टी की नजर तीन बार से अमेठी से सांसद राहुल गांधी पर है, जिन्हें रानी के जरिए मात देने की तैयारी की तरह देखा जा रहा है।
लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी से टक्कर लेने के लिए बीजेपी ने स्मृति इरानी को उतारा था, लेकिन वह सीट पर कब्जा नहीं कर पाईं। हालांकि रानी के लिए यह राजनीति के शुरुआती दिन हैं और यह स्थानीय लोगों के लिए रानी-बनाम-रानी की लड़ाई होगी।
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