अखिलेश में ईमानदारी है, शिवपाल खासे खेले-खाये हैं

ज़िंदगी ओ ज़िंदगी

: कभी-कभार मूर्खता को छोड़ दिया जाए, तो अखिलेश पर बेईमानी का एक भी धब्‍बा नहीं पड़ा : एक अकेली जान हैं अखिलेश यादव, जिनके सिर पर महा-मुख्‍यमंत्रियों का भारी गट्ठर है : अपनी सरकार के आखिरी पलों में अब शोक-गीत लिखने पर आमादा है समाजवादी दिग्‍गज : अखिलेश यादव पर कभी भी अपना चारित्रिक लंगोटा ढीला रखने का आरोप नहीं लगा :

कुमार सौवीर

लखनऊ : कितना दुर्भाग्‍यजनक हालातों से दो-चार हो रहे हैं अखिलेश यादव, उसका अंदाजा किसी भी शख्‍स को पिछले तीन दिनों से सतह पर दिखते राजनीतिक बवंडर से अपनी नंगी आंखों से लग सकता है। आज जब यूपी विधानसभा चुनाव के लिए चुनाव आयोग की ओर से प्रशासनिक तैयारियां शुरू हो चुकी हैं, अखिलेश सरकार अब अपनी ही सरकार नहीं, बल्कि अपनी समाजवादी पार्टी भी अपने रसातल की ओर लपक पर कूदे जा रहे हैं। कुछ भी हो, इसके पहले तक अपनी विरोधी पार्टियों को आन्‍तरिक बिखराव पर बड़-बोल फेंकने वाले सपा सरकार के मंत्री और पार्टी के प्रवक्‍ता राजेंद्र चौधरी अपनी पार्टी की इस बदहाली पर लगातार चुप्‍पी साधे बैठे हैं।

हालांकि किसी भी पार्टी और उसकी सरकार के अवसान की प्रक्रिया कोई खास आश्‍चर्यजनक नहीं होती है। वजह यह कि कोई भी संगठन किसी न किसी बिखराव या असंतोष जनक हालातों से ही प्रेशर होता है, लेकिन यह तो हकीकत ही है कि ऐसी अवसान प्रक्रिया उससे जुड़े लोगों के लिए खासी कष्‍टप्रद बन जाती है। खास तौर पर तब, जब हालातों को म्‍भालने का दम भरने वाले लोग भी अपने हाथ मसोस कर बैठे रहें। लेकिन यूपी सरकार में आजकल यही चल रहा है। साफ माना जा रहा है कि समाजवादी पार्टी के लाठीबाजों ने अब अखिलेश सरकार और अपनी पार्टी के आखिरी समय में शोक-गीत लिखना शुरू कर दिया है।

अखिलेश को जानने वाले या उनकी क्रियाविधि को गहरी नजर से देखने में आदी लोगों को खूब पता है कि समाजवादी पार्टी की पिछले तीन दिनों से चली छीछालेदर अकस्‍मात तो नहीं हुई है, लेकिन इतना जरूर है कि सरकार के आखिरी पलों में उसको लगा यह भारी धक्‍का प्रत्‍यक्षदर्शियों को अचम्भित जरूर कर गया है। लेकिन इसके बावजूद अखिलेश समेत कियी भी सपा दिग्‍गज की किसी भी प्रतिक्रिया पर कोई भी अचम्‍भा नहीं हो रहा है। सिवाय इसके अभी तक मुलायम सिंह यादव का लाडला चाकलेटी बेटा अचानक कैसे इतनी बोल्‍ड बैटिंग पर मजबूर हो गया है।

वजह यह कि अखिलेश यादव पर आज तक कभी भी बेईमानी का एक भी आरोप नहीं लगा। बावजूद इसके कि अखिलेश अपने पिता के आदेशों-संकेतों से पूरी तरह गवर्न होते रहें, लेकिन इसके बावजूद उन्‍होंने हल्‍के-फुल्‍के तरीके से अपनी हल्‍की नाराजगियां जाहिर भी की हैं। हां, अखिलेश पर यह आरोप जरूर लगता रहा है कि उन्‍होंने अपनी पार्टी के लोगों को बचाने के लिए कई बार अपराध किये हैं। यह भी आरोप है कि कई अफसरों की तैनाती पर फैसले किये हैं जो उनकी सरकार और उनकी पार्टी के लिए भले ही उचित रहें हों, लेकिन आम आदमी और राजनीतिक नैतिकता के ठीक उलट रहे हैं। ऐसे फैसलों ने अखिलेश पर काढा़ कींचड़ फेंका है।

लेकिन यह भी हकीकत है कि अखिलेश का ऐसे फैसलों में कोई निजी दुर्भाव नहीं रहा है। भले वह शाहजहांपुर के जाबांज पत्रकार जागेंद्र सिंह की हत्‍या में षडयंत्र रचने वाले राममूर्ति वर्मा रहे  हों या फिर मथुरा काण्‍ड का कथानक तैयार में रहे उनके खुद के चाचा शिवपाल सिंह यादव। मुख्‍तार अंसारी के तीनों  भाइयों को उनकी पार्टी समेत समाजवादी पार्टी में शामिल करने के फैसले का सार्वजनिक विरोध करके अखिलेश ने शिवपाल को करारा तमाचा दिया था। हालांकि अपने पिता के इशारे पर उन्‍होंने दीपक सिंहल को मुख्‍य सचिव बना डाला, लेकिन जब दीपक की करतूतें सिर के ऊपर जाने लगीं तो उन्‍होंने तत्‍काल उसे बर्खास्‍त कर दिया। यह जानते हुए भी कि दीपक का रिश्‍ता शिवपाल, मुलायम और खुद अमरसिंह व रामगोपाल यादव से है।

इतना ही नहीं, अखिलेश यादव पर कभी भी अपना लंगोटा ढीला रखने का आरोप नहीं लगा।

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