: बड़े सरकारी वकील हैं शैलेंद्र चौहान : अपने चैम्बर में वकील युवती को नशीला पेय पिला कर किया था बलात्कार : अब गिरफ्तारी ही इकलौता विकल्प, हाईकोर्ट का आदेश खारिज :
कुमार सौवीर
लखनऊ : आप रहे होंगे हाईकोर्ट में सरकार के तौर पर तैनात मुख्य स्थाई अधिवक्ता यानी सीएसएसी, तो इससे क्या फर्क पड़ता है ? हाईकोर्ट ने आप पर बलात्कार के मामले में आपकी गिरफ्तारी पर चार हफ्तों के लिए स्टे दिया होगा, तो इससे क्या फर्क पड़ता है ? लेकिन फर्क तब जरूर पड़ता है कि जब हाईकोर्ट के आदेश में उच्चतम न्यायालय हस्तक्षेप कर दे और हाईकोर्ट के फैसले को खारिज करते हुए एक नया आदेश जारी कर दे। ऐसी हालत में तो कानून के शातिर से शातिर किसी भी खिलाड़ी के लिए खासा संकट खड़ा आ जाता है। यूं कहिये कि तुषारापात या फिर पहाड़ ही टूट जाता है।
लखनऊ हाईकोर्ट में अपनी जोरदार हनक बनाये रखने वाले और हाईकोर्ट में सरकार की ओर से तैनात मुख्य स्थाई अधिवक्ता यानी सीएससी शैलेंद्र सिंह चौहान पर ही आज कुछ ऐसा ही बीता है। लखनऊ में हुए एक आरोपित बलात्कार के मामले में शैलेंद्र सिंह चौहान को हाईकोर्ट से मिली चार हफ्ते की मोहलत को आज सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है।
आपको बता दें कि लखनऊ हाईकोर्ट में एडीशनल सीएससी यानी मुख्य स्थाई अधिवक्ता शैलेंद्र कुमार सिंह चौहान पर नेहा (काल्पनिक नाम) नामक एक महिला अधिवक्ता युवती ने आरोप लगाया था कि शैलेंद्र सिंह चौहान ने उसे अपने चैम्बर में नशीला पेय पिलाया था। इसके बाद शैलेंद्र चौहान के चैम्बर में ही नेहा बेहोश हो गयी। इसके बाद शैलेंद्र सिंह ने उसके साथ बलात्कार कर दिया। इस मामले की रिपोर्ट नेहा ने गोमती नगर पुलिस थाने में दर्ज करायी थी। उसके बाद से ही शैलेंद्र चौहान फरार हैं। लेकिन बाद में उनकी ओर से एक याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट की एक दो जजों की बेंच ने शैलेंद्र चौहान की गिरफ्तारी पर चार हफ्तों तक रोक का आदेश जारी कर दिया था।
कल सर्वोच्च न्यायालय में इस मामले की सुनवाई हुई। सुनवाई के बाद जस्टिस आरएफ नारीमन और जस्टिस नवीन सिन्हा ने इस मामले में दो-टूक आदेश जारी कर दिया। उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि इस मामले में चार हफ्ते तक शैलेंद्र चौहान की गिरफ्तारी न किये जाने सम्बन्धी हाईकोर्ट के आदेश का कोई औचित्य नहीं है। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के उस आदेश को रद कर दिया। हालांकि दोलत्ती संवाददाता को उस आदेश की प्रतिलिपि नहीं मिल सकी है, जिसमें इस आदेश का ब्योरा दर्ज है। लेकिन जैसे ही यह आदेश की प्रति दोलत्ती को मिल जाएगी, हम आप तक वह तत्काल पहुंचा देंगे।
लेकिन इसके बावजूद अब तय हो गया कि दांवपेंचों से शैलेंद्र चौहान अब बच नहीं सकते। उनके बच जाने के सारे रास्ते-गलियारे सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के बाद से पूरी तरह बंद हो चुके हैं। अब तो किसी भी कीमत पर शैलेंद्र सिंह चौहान को पुलिस या तो गिरफ्तार करेगी, या फिर अधिकतम यह होगा कि शैलेंद्र चौहान किसी अदालत में अपना आत्मसमर्पण कर बैठेंगे। लेकिन इसके बावजूद पुलिस जांच-पड़ताल और पूछताछ के लिए शैलेंद्र चौहान को पुलिस-रिमांड जरूर लेगी।
कुछ भी हो, शैलेंद्र सिंह चौहान पर लगे बलात्कार के मामले ने न्यायिक जगत में हाहाकार तो मचा ही दिया है। इसके साथ ही यह भी साबित हो गया है कि अब तक निहायत नैतिक और शुचिता का क्षेत्र माने जाने वाले न्यायालय परिसर और उसके पैरवीकारों की असलियत सिर्फ इतनी ही नहीं है, जितना सामान्य तौर पर सार्वजनिक रूप से समझा और देखा-सुना जाता है। बल्कि ऐसी घिनौनी करतूतों का ग्राफ शायद दीगर क्षेत्रों के मुकाबले ज्यादा ही है। शर्मनाक ही तो कहा जाएगा कि शैलेंद्र सिंह चौहान पर उसकी ही एक युवा महिला अधिवक्ता ने षडयंत्र के तहत बलात्कार का आरोप लगाया है।
मेरे विचार से हाईकोर्ट लखनऊ के जिन दो जजों की बेंच ने ऐसे बलात्कारी वकील की गिरफ्तारी पर विधि-विरूद्ध तरीके से चार हफ्तों की रोक लगाई गई थी , वास्तव में सवालिया निशान तो उनपर ही लगता नज़र आ रहा है !!!
सर्वोच्च न्यायालय को ऐसे जजों के खिलाफ भी यथोचित आदेश पारित करने चाहियें।
ऐसे वकीलों और जजों ने ही इस देश की कथित न्यायपालिका को कटघरे में खड़ा करने का कुकृतय किया है । इसी वजह से आज जनमानस में न्यायपालिका पर भरोसा नहीं रह गया है।
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